धर्म-कर्म : परमार्थ के लिए ही इस धरती पर आये हुए, लोगों की तकलीफों के मूल कारण और उपाय को जानने-बताने वाले, अज्ञानता में लोगों द्वारा अपने उपर लादते जा रहे भारी पाप कर्मों से सावधान करने वाले, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि मानव की हत्या होने न पावे। मानव हत्या और आत्महत्या भी बहुत बड़ा पाप होता है। क्योंकि जिस काम के लिए मनुष्य शरीर मिला, उसे आपने पूरा नहीं किया और बीच में ही मौत को गले लगा लिया, फांसी पर लटक गए, जहर खा लिया, ट्रेन के नीचे कट करके मर गए। तो काम जब पूरा नहीं हुआ तो पाप हुआ तो प्रेत योनि में जाना पड़ जाता है। प्रेत की योनि में बहुत परेशानी होती है। पेट बहुत बड़ा, मुंह बहुत पतला होता है, पेट ही नहीं भरता। वो दाल चावल, मेवा मिष्ठान, दूध घी कोई भी चीज हो, उसकी खुशबू लेते हैं। तो पेट बड़ा रहे, नाक से खुशबू कम जाए तो भूख बराबर बनी रहती है तो वो परेशान रहते हैं, चिड़चिड़ा स्वभाव हो जाता है। जैसे चाहे आदमी हो या औरत हो, जब भूख लगती है तो सबको गुस्सा आता है, काम करने का मन नहीं कहता। ऐसे ही उनका चिड़चिड़ा स्वभाव हो जाता है तो वह लोगों को परेशान करते हैं और (अपनी) जान बचाते हैं।

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बाबा जी ने कहा कि, आप जितना (अपनी) जान नहीं बचाते, मार खाने से नहीं बचते हो, उतना वह मार खाने से बचते हैं। किससे? वो भी अपने से ताकतवर प्रेतों से बचते हैं। इनमें भी जबरदस्त और कमजोर प्रेत होते हैं। तो उनके अंदर तो कोई मानवता इंसानियत होती नहीं है कि भाई इन पर दया करो। उनके अंदर दया नाम की तो चीज ही नहीं होती है। जैसे यमराज के अंदर कोई दया होती है? वह तो इसीलिए बनाए गए हैं कि कर्मों की सजा सबको देनी है। जो जस किन्ही सो तस फल चाखा। उनको उसी (अपने-अपने कर्मों के) हिसाब से वो सजा देते हैं। तो प्रेतो में भी दया नहीं होती है। तो प्रेत, प्रेत को बहुत मारते हैं। और जब मारने लगते हैं तो 100-100 कोस तक चिल्लाने की आवाज जाती है। कोई सुनवाई करने वाला, बचाने वाला नहीं है। उनका एक अलग राज्य (लोक) है। अकाल मृत्यु से प्रेत की योनि में चला जाना पड़ता है। चाहे खुदकशी कर ले, खुद मर जाए, दूसरे आदमी को कोई मार दे, वो मर जाए, कहीं दुर्घटना में बगैर मौत के मर जाय, खत्म हो जाए तो प्रेत योनि में जाना पड़ता है। आजकल देखो प्रेतों की संख्या बहुत हो गई।

जब एक-एक के उपर दस-दस प्रेत लगेंगे तो चैन की रोटी खा पाओगे? शाकाहारी बनो और बनाओ

घर-घर में प्रेत लगे हुए हैं। एक-एक घर में कई-कई प्रेत और कहीं-कहीं घर में तो यह भी देखने में आता है कि परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर प्रेत लगे हुए हैं। क्योंकि प्रेतों की संख्या बहुत हो गई। तो कहां जाएंगे? कहां खाएंगे? वो तो उन्हीं के सिर पर सवार होकर के, उन्ही के शरीर से, उन्हीं से खिलवाते हैं। और जो खुशबू उनको मिलती है, उसी से वह जीते, अपना पेट भरते हैं, एक तरह से। एक तरह से एक समय ऐसा आएगा कि एक-एक के ऊपर दस-दस प्रेत लगेंगे, अगर हिंसा-हत्या, अकाल मृत्यु, जीवों का कटना बंद नहीं हुआ, यह मुर्गा, भैंसा, बकरा, आदमी का कटना बंद नहीं हुआ तो कोई कितना भी करोड़पति, लखपति बन जाये, ऊँचे औहदे पर पहुंच जाए, उसको शांति नहीं मिल सकती है। इसीलिए तो कहता हूं कि भाई शाकाहारी रहो, शाकाहारी का प्रचार करोगे। लोग शाकाहारी हो जाएंगे तो जीवों का कटना बंद हो जाएगा क्योंकि मांस खाने वालों के लिए ही वो जानवर काटे जाते हैं। उसी का व्यापार लोग कर लेते हैं। तो (उनकी वजह से हुई) मृत्यु के पाप के भागीदार हो जाते हैं। अगर आप मांस न खाओ तो पाप के भागीदार नहीं बनोगे क्योंकि जानवर आपकी वजह से काटे जाते हैं, पाप लगता, पाप बंट जाता है। जो जानवर को मारता, काटता, लाता, पकता, खाता, खिलाता है सबको बराबर पाप लगता है क्योंकि पाप एक जगह से कई जगह बंट जाता है।

मलिक को पाने के लिए सभी आत्माओं से प्रेम करना पड़ेगा:- 

आजकल जो बहुत ज्यादा चलन में आ रहा है जातिवाद, भाईवाद, भतीजावाद, एरियावाद, भाषावाद, आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद आदि तमाम वाद पैदा हो गए। इन वाद में मत फंसना। आप मानववाद में रहना। मानववाद यानी- सियाराम में सब जग जानी, करुं प्रणाम जोर जुग पानी। सबके अंदर उस मलिक की आत्मा है तो मलिक को पाने के लिए सभी आत्माओं से आपको प्रेम करना पड़ेगा। बाप के जितने भी बच्चे रहते हैं, बाप तब ही खुश रहता है जब सब बच्चों का आपस में प्रेम, मिलाप रहता है। तो सबसे प्रेम करना और शाकाहारी रहना।

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