धर्म कर्म: पूरे समर्थ गुरु का महत्त्व, महिमा अनिवार्यता को समझाने वाले, निगुरा यानी बिना गुरु किये हुए अपना समय व्यर्थ न करने की शिक्षा देने वाले, जिनके रूप में प्रभु अभी आये हुए हैं, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कैसा गुरु चाहिए? शब्द भेदी गुरु चाहिए, जिसको शब्द की जानकारी हो ऐसा नाम बताने वाला चाहिए कि – राम-राम सब कोई कहे नाम न जाने कोय। नाम चीन्हा जो गुरु मिले नाम कहावे सोय।। ऐसे गुरु जिनको उस प्रभु के ध्वन्यात्मक नाम की पहचान हो, ऐसे गुरु करना बनाना चाहिए, ऐसे गुरु से ही काम बनता है। जो शब्द का ज्ञान, जानकारी रखते हो, शब्द का बोध करा दें, अंदर में शब्द को प्रकट करा दें, वह गुरु होना चाहिए। ऐसा गुरु होना चाहिए जो वो नाम बता दे जिसके लिए कहा गया- नाम लेत भव सिंधु सुखाही, नाम लेते ही यह भवसागर, जिसमें आप पड़े हुए हो, डूब रहे, उतरा रहे हो, जन्म ले रहे हो, मर रहे हो, दु:ख-सुख अनुभव कर रहे हो, बीमारी झेल रहे हो, इस भवसागर से पार करा दे, यहां फिर न आना पड़े। मान लो ऐसी कोई नदी है जिसे पार करना ही पड़ता है, जिसमें जल के बड़े खूंखार जानवर हैं, उसको एक बार पार करने के बाद कोई फिर वापस फंसने के लिए नहीं आता, तो वो नदी एक बार पार हो जाये, जैसे किसी बीहड़ जंगल में हिंसक जानवर रहते ही रहते हैं तो किसी तरह से अगर वह जंगल पार कर जाए तो फिर वापस नहीं आता.
इसी प्रकार इधर इस दु:ख के संसार में कौन दु:ख झेलने के लिए आएगा जब वो सुख के सागर में पहुंच जाएगा। तो ऐसा गुरु खोजना चाहिए, ऐसा गुरु को करना चाहिए। जब तक गुरु मिले नहीं सांचा। तब तक करो दस पांचा।। दस पांच गुरु कर लो कोई दिक्कत नहीं लेकिन गुरु बनाना जरूरी है क्योंकि- गुरु बिन भव निधि तरे न कोई। जो विरंच शंकर सम होई।। चाहे ब्रह्मा शिव के समान होगा, कोई बिना गुरु के पार नहीं हो सकता है, गुरु तो बनाना ही पड़ता है। देखो सुखदेव बिना गुरु के साधना करते थे, तरक्की हो गई थी। इस पिंड से जीवात्मा को निकाल लेते थे और अंड लोक में जाती थी, फिर ब्रह्मांड की तरफ भी बढ़ने लग जाती थी लेकिन आगे नहीं बढ़ पाती थी, लेकिन वह विष्णु लोक में नहीं प्रवेश कर पाते थे। कारण क्या था? गुरमुख नहीं थे, गुरु नहीं किए हुए थे। वहीं से लौटा दिए जाते थे। इसलिए गुरु जरूरी होते हैं, गुरु बनाना जरूरी होता है। परमात्मा प्रभु के सब जीव हैं। सकल जीव मम उपजाया। सबसे अधिक मनुज मोहि भाया।। मनुष्य पर उनकी ज्यादा दया होती है।
न जाने कितने युग बीत गए जीव अपने निज घर नहीं पहुंच पाए
यह जीवात्मायें मृत्यु लोक में फंस गई हैं। निकल नहीं पाई। करोड़ों जन्म बीत गए। कितनी बार कछुआ, मछली, पक्षी आदि की योनि में, जमीन के नीचे के कीड़े बने, कितनी बार मां बेटी बनी, बेटी पत्नी बनी, भाई बाप बना, बाप बेटा बना, यह आपको नहीं मालूम है। यह जीव फंस गए। जीवात्मा फंस गई। जब इन जीवात्माओं को सतलोक से भेजने को हुआ तब यह घबराई थी तब उन्होंने (सतपुरुष ने) वादा किया था, कहा था, तुमको घबराने की जरूरत नहीं है। मैं सन्तों को भेजूंगा, मैं खुद आऊंगा तुमको निकालने के लिए। वो पिता खुद आता है, समझ लो आप।