धर्म कर्म: जीवात्मा को भवसागर पार करने के लिए कलयुग में आसान कर दी गयी सुरत शब्द नाम योग साधना का मार्ग बताने, समझाने, चलाने और लक्ष्य की प्राप्ति कराने वाले परफेक्ट स्पिरिचुअल मास्टर, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जीवात्मा के ऊपर जो मैल गंदगी आ गई, सतगुरु उसे साफ कराते हैं। वह शब्द के पकड़ने में साफ होती है। वह नाम जो हम-आप जपते हैं, जो गुरु महाराज ने दिया और उनके जाने के बाद भी प्रेमियो! आपको मिला, आज जो अभी आप नए लोग आए हो, आपको भी दिया जाएगा, इस नाम की कमाई से कर्म धुलते हैं। सुमिरन, ध्यान, भजन करने से जीवात्मा के ऊपर लदे हुए कर्म खत्म होते हैं, धुलते हैं। ये जीवात्मा जब साफ होती है, उसके ऊपर से जब ये कर्म हटते हैं तब यह शब्द को पकड़ पाती है नहीं तो शब्द को यह नहीं पकड़ पाती है। बहुत बाधाएं आती हैं। जैसे जब जीवात्मा यह जगह छोड़ने लगती है, जैसे शरीर में तीसरा तिल, पतला सुराख है जिससे यह (जीवात्मा शरीर में) डाली गई है अंदर में, उसी को पिंडी दसवा द्वार, पिंड लोक का यह दरवाजा है, इस जीवात्मा का इधर पधारने का, आने का। तो जैसे ही गुरु के बताया अनुसार साधना करते हैं, जीवात्मा की शक्ति जो पूरे शरीर में फैली हुई है, यह चक्रों, प्राणों के द्वारा, नसों के द्वारा यह जो शक्ति नीचे की तरफ आ रही है, पैर के अंगूठे की तरफ से यह शक्ति जब खींचती है और ऊपर जाती है और वहां जब पहुंचती है और सफाई जब होती है और इसके खिसकने का जब समय आता है तब उसको कौन रोकता है? जिसको आदेश दिया है, किसने आदेश दिया? इस देश के, शरीर के बनाने वाले ने, जिसको काल भगवान कहा गया, उसने आदेश दिया है, आद्यामहा महामाया शक्ति को, किसी ने शिव शक्ति कहा, किसी ने आद्यामहा शक्ति कहा, किसी ने महामाया कहा, अपने-अपने तरीके से उनका नाम लोगों ने रखा है,

तो वो बाधा डाल देती है, निकलने नहीं देती। जैसे ऊपर जाने को होगा, यहां से नीचे से जैसे सिमटाव होगा और वहां उसके बीच में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, शील, क्षमा, संतोष, विवेक जागृत हो जाती है। कैसे जागृत होती हैं कि जैसे नीचे से खिंचाव हुआ और काम में वो शक्ति आई, काम के सुन्न में (जीवात्मा) आई तो काम वासना बहुत बढ़ जाती है, अपना-पराया का भी पहचान खत्म हो जाता है और वही साधक कामी हो जाता है, वही जो साधना करती है बच्ची, वह कामी हो जाती है। काम का पागलपन सवार हो जाता है। अब वहां पर उससे कैसे बचते हैं? गुरु की दया से। जब समरथ गुरु मिल जाते और उनको हाजिर नाजिर समझते हैं, उनको अपना हाथ पकड़ा देते हैं, उनके छत्र छाया में आ जाते हैं तो गुरु वहां मिल जाते हैं। (गुरु शील के सुन्न में प्रवेश करा देते हैं) कहा गया है- गुरु भक्ति प्रमुख चीज होती है। तो गुरु की भक्ति जब आ जाती है तब शब्द के खींचने में दिक्कत नहीं होती है। नहीं तो कहा है कि बिन गुरु भक्ति शब्द में पचते, सो प्राणी तू मूरख जान, शब्द खुलेगा गुरु मेहर से, खींचे सुरत गुरु बलवान। एक सुन्न में से दूसरे सुन्न में आप नहीं ले जा सकते हो, उसमे पागल हो जाओगे। अच्छे-अच्छे लोग देखो पागल हो गए। श्रंगी को भंगी कर डाला, नारद के पीछे पड़ गए पछाड़, योग करत गोरख जी को लूटा और नैमी को लूटा हलवा खिलाए।

जब ऊपरी लोकों में जीवात्मा रहती है तब खाना-पीना, टट्टी-पेशाब महसूस ही नहीं होता है

जब ऊपरी लोक में जीवात्मा रहती है तब कोई खाने-पीने की इच्छा नहीं रहती, यह सब भूला हुआ रहता है। शरीर में लेट्रिन-पेशाब कुछ महसूस ही नहीं होता है। लेकिन जब वापस आती है तब कितना देर हो गया खाए हुए क्योंकि उस समय लोग बैठते थे, जब ध्यान के लिए, तपस्या के लिए तो 24 घंटा बैठ जाए, 36 घंटा, 48 घंटा बैठ जाए, कोई ठिकाना नहीं। उस समय की तपस्या साधना कठिन भी थी। शरीर को कष्ट देना पड़ता था, मेहनत करनी पड़ती थी। अष्टांग योग, हठ योग, कुंडलियों का जगाना, प्राणायाम का करना, यह होता था और उसमें बहुत समय लगता था। तो जब आँख खोलते थे तो भूख लगती थी। क्या करते थे नैमी ऋषि? जहां बैठे रहते नीम के पेड़ के नीचे, वही (पास में से) थोड़ा सी मिट्टी खा लेते थे तो थोड़ी देर के लिए जान ताकत आ जाती, उधर ध्यान लगाने की भी ताकत आ जाती। और नहीं तो जब शरीर कमजोर हो जाता है तो ध्यान में आँख भी नहीं बंद हो पाती है। हाथ-पैर चलता ही नहीं, कुछ कर ही नहीं सकता है आदमी, जब शरीर कमजोर हो जाता है। तो ताकत आने पर फिर आंख बंद करते, ध्यान लगाते और निकल जाते थे।

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