धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त कंज गुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि एक नाम होता है मुंह से लेने वाला और एक नाम होता है कान से सुनने वाला। इस समय पर मुंह से लेने वाले बहुत से नाम है। जब-जब महात्मा महापुरुष आए, जिनको लोगों ने भगवान कहा, उन्होंने कोई न कोई नाम भगवान का बताया है। वह सब भगवान के नाम हो गए मुंह से लेने वाले नाम। मुंह से जो नाम को बताया कि यह भगवान का नाम है, उसका जो प्रचार किया, लोगों को उस नाम से फायदा भी दिलाया। उस समय लोगों ने उसे भगवान का नाम मान लिया था। जिन्होंने भगवान का नाम जगाया बताया था, वह चले गए तो उनके जो शिष्य थे वह लोगों को वो नाम बताए, फैलाए थे। शिष्यों के खानदान के जो लोग रहे, वह इस नाम को रट रहे हैं, बता रहे हैं, लोगों को, अपने बच्चों को भी यही नाम याद करने के लिए बता रहे हैं लेकिन उससे लोगों को फायदा नहीं हो रहा क्योंकि वह नाम भी नहीं रहा और उस नाम को उस समय बताने वाले महापुरुष भी नहीं रहे। उससे अब लोगों को फायदा नहीं हो रहा।

राम नाम त्रेता का जगाया हुआ नाम है, कलयुग में अलग

बहुत से नाम इस वक्त पर हैं जिन नामों को भगवान का नाम मान करके लोग लेते, जपते हैं। लेकिन जब नाम को जगाया था, बताया था, तब फायदा मिलता था, वह फायदा अब नहीं मिल पा रहा है। इसीलिए जब इतिहास पढ़ते हैं कि पत्थर पर राम नाम लिखकर के डाला गया था, सारे पत्थर तैरने लगे थे, अब लिख करके डालो तो डूब जाएगा क्योंकि न वो रहे न उस नाम में अब शक्ति रही।

समय-समय पर जो महापुरुष आए, नाम बदलते चले गए

नाम इसलिए तो समय-समय पर बदलता रहा। जो महापुरुष आए, मुंह से लेने वाले नाम को वह बदलते चले गए। राम भगवान जब आए तो राम नाम में शक्ति थी। कृष्ण भगवान जब आए तो नाम बदल गया, उन्होंने कृष्ण नाम में शक्ति भरा। आप देखो सतसाहेब नाम में शक्ति रही। वाहेगुरु नाम में, राधास्वामी नाम में शक्ति रही। लेकिन वह शक्ति जगाने वाले के साथ चली गई। कहने को भले कोई कहे।

हम आलोचना नहीं करते, सच्चाई बताते हैं

जो लोग भगवान का नाम मानते हैं, आपको ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। हम बुराई, निंदा, आलोचना नहीं करते हैं। हम तो उदाहरण देकर आपको समझाते हैं, तुलना करते हैं तो आपको नाराज नहीं होना चाहिए। हमारे लिए तो सब बड़े हैं, सब पूज्य हैं, आप भी पूज्य हो जो कम से कम भगवान का नाम तो लेते तो हो। गोस्वामी जी ने कहा- स्वामी जाके मुखन से धोखेहु निकसे राम, ताके पग की पानहीं, मेरे तन की चाम।। वह राम जो सबका सृजनहार है, उसके नाम को उन्होंने कहा, धोखे से अगर उनका नाम किसी के मुंह से निकल जाए तो उसके पैर की जूती और मेरे तन की चाम यानी कहा उसका जूता भी अगर हमको मारे तो हमको स्वीकार है।

दूसरे नाम की जरूरत क्यों पड़ी

हम तो सब का सम्मान करते हैं। हम तुलना करके समझाते हैं कि भाई दूसरे नाम की जरूरत क्यों पड़ी? क्यों फिर उन्होंने इस नाम को जगाया? जब तक महापुरुष का असर रहता है तब तक नाम कुछ दिन तो चलता है जैसे बहुत से गुरु आए, लोगों ने जगह-जगह मंदिर मठ समाधि बना लिया। वहीं पर उन्ही महापुरुषों के नाम पर कीर्तन भजन, साहित्यिक मनोरंजन आदि कार्यक्रम होने लग गए। लेकिन जब तक उनके अपनाये हुए जीव रहे तब तक तो उसका असर रहा। कुछ उनका असर, कुछ जो भजनानंदी जीव थे उनका, जब वह चले गए, दूसरा आया, तीसरा, चौथा आया, उसका असर रहा।

यह सन्तमत का नियम है

देखो गुरु महाराज के जीव हो, जब तक आप रहोगे तब तक गुरु की दया बराबर बरसेगी आपके ऊपर और हमारे ऊपर भी बरस रही है। फिर जब दो-तीन चार पीढ़ी हो जाएगी तब दूसरा, तीसरा आएगा, उसका असर रहेगा, एक-दूसरे का रहेगा। यह इस सृष्टि, धरती का नियम है। महापुरुषों का, सन्तमत का यह नियम है। आप जयगुरुदेव नाम बोल करके सच्चे हृदय से प्रभु को याद करके मदद ले सकते हो। मुंह से जो नाम लिया जाता है वो वर्णनात्मक नाम है। यह समय-समय पर बदलता रहता है। जैसे इस समय पर जयगुरुदेव नाम है। इसमें परमात्मा की पूरी शक्ति भरी हुई है। कभी भी आप जयगुरुदेव नाम बोलकर के सच्चे हृदय से प्रभु को याद करके मदद ले सकते हो। आप श्रद्धा भाव भक्ति से जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोल करके, घर में लोगों से बुलवा करके तकलीफों में राहत पा सकते हो।

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