धर्म-कर्म: अंडा शराब मांस के सेवन से दूर रहकर पाप से बचाने, सुरत को नाम से जोड़ने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त कंज गुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि सभी तरह का अंडा, मछली, किसी भी जानवर का मांस हो, यह कोई पेड़ में नहीं फलता, जमीन से नहीं उगता है, ये जीव की हत्या होने के बाद ही उपलब्ध हो पाता है। तो जिसमें भी हिंसा-हत्या होती है, उस चीज को खाने से पाप लगता है और उसकी सजा भोगनी पड़ती है। एक जन्म में नहीं तो दूसरे जन्म में भोगना पड़ता है। इसके बाद गुरु महाराज ने मछुवारे द्वारा अगले जन्म में ऊंट बनकर तड़प-तड़प कर सजा भोगने वाली कहानी से समझाया कि शाकाहारी बनो और बनाओ।
बार-बार शरीर में गंदगी डालोगे तो फिर दोबारा साफ नहीं किया जाएगा
मनुष्य शरीर का मौका उस मालिक ने एक बार हमको-आपको दिया है। यह साधना का घर, पूजा का मंदिर है। तो पूजा साफ-सुथरी जगह से कबूल होती है। जैसे अगर कोई मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा में गंदी चीज डाल दो तो उसमें कोई पूजा, नमाज, ग्रंथ का पाठ नहीं करेगा। क्यों? कहेगा गंदी जगह है। इसको साफ करके किया जाएगा। सफाई करना जरूरी है। ऐसे ही ये अंदर में (कर्मों की) गंदगी जमा होती है। जैसे शरीर पर गोबर मिट्टी कालिख आदि लगने पर इसकी सफाई करते हो, ऐसे ही अंतरात्मा की सफाई होती है। अंदर में ये जो गंदगी है, उसको साफ करना पड़ता है। अब एक बार मान लो, कोई साफ करने वाला मिल गया और उसने साफ कर दिया और कहा कि अब गंदा मत करना। तब तो उसको गंदगी से आपको बचाना पड़ेगा। और अगर फिर आपने गंदा कर दिया, तो वो फिर दोबारा न तो सफाई करेगा और समझो न आपको कुछ देगा। इसलिए इसको साफ सुथरा रखना, इस मनुष्य शरीर में आप मुर्दा मांस मत डालना। यह भगवान के मिलने, बैठने की जगह है, हर घट में उसका स्थान है।
कन फूंका गुरु नहीं बल्कि कंज गुरु ही सुरत को शब्द से जोड़ते हैं
धार्मिक किताबों में लक्षण लिखे हैं। राम चरित मानस यानी राम का चरित्र जो अंदर मानस में हो रहा है, उसको गोस्वामी जी ने लिखा। उन्होंने सब पहचान बता दिया है। उन्होंने, बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि, उन्होंने कंज गुरु की बात कही है। कंज गुरु किसको कहते हैं? जिसकी दिव्य दृष्टि खुली हुई होती है, जो दिव्य दृष्टि खोलने का तरीका बताता है। और कन फूंका गुरु कौन होते हैं? कान में नाम बता दिया कि यह भगवान का नाम है। लेकिन (जीवात्मा को) नाम से जोड़ नहीं पाते। जोड़ो री कोई सुरत शब्द से। सुरत को शब्द के साथ वह नहीं जोड़ पाते हैं। गोस्वामी जी ने तो कंज गुरु की पहचान भी बता दिया- श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती। दिव दृष्टि किसको कहते हैं? इन्हीं दोनों आंखों के बीच में (जीवात्मा में) एक तीसरी आंख है जिसको दिव्य दृष्टि, तीसरी आंख, फकीरों ने रूहानी आंख कहा, स्पिरिचुअल मास्टर ने थर्ड आई कहा, तो गुरु की दया से वो खुल जाए, उस पर जमी कर्मों की मैल हट जाए तो वो वास्तव में गुरु होता है। तो जब गुरु मिल जाते हैं, गुरु के आदेश का पालन किया जाता है। गुरु फिर अपने आदेश से क्या कराते हैं? कर्मों को जलवाते, कटवाते हैं। उनको सब तरीका मालूम होता है। कौनसा तरीका? इस शरीर से बने कर्मों को शरीर से सेवा करवा कर कटवाते, खत्म करा देते हैं। कुछ वह अपने आप काटता है और जो नहीं काट पाता है, गुरु उसको अपने ऊपर लेकर के, उनके कर्मों को जलाते हैं। गुरु उसके शरीर से सेवा लेकर के उसके अंदर का अच्छा गुण, बुरा गुण सब खत्म करके गुणातीत कर देते हैं। धन से बने पाप को भूखे-दुखे को खिलवा कर कटवा देते हैं, लेना-देना पूरा करवा देते हैं।