लखनऊ। कला, संस्कृति के अद्भुत शहर काशी में ऐसे कलाकार जन्में, जिन्होंने काशी ही नहीं बल्कि भारत को विश्व पटल पर एक अलग पहचान दिलाई। ऐसी ही एक कलाकार थीं ठुमरी की महान गायिका स्वर्गीय गिरिजा देवी। 8 मई 1929 को जन्मी गिरिजा देवी आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां और उनकी कला आज भी हमारे बीच जीवित है। आज उनका 92 वां जन्मदिन है। इस मौके पर हम उनको याद करते हुए उनकी एक सबसे प्रिय और खास बात आपको बताने जा रहे हैं कि एक विश्व विख्यात कलाकार की आम जिंदगी क्यों बेहद अलग थी और इतने सालों की गीत-संगीत की शिक्षा और अद्भुत कला से परिपूर्ण होने के बाद भी उनकी सबसे प्रिय सहेलियां कौन थीं?

अप्पाजी की यह सहेलियां थी बेहद खास
अप्पाजी यह वही नाम है, जो पूरे विश्व में ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी के लिए जाना जाता था। भले ही गिरिजा देवी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गाए शास्त्रीय संगीत के गीत और उनकी अद्भुत विधा आज भी उनको औरों से अलग करते हुए हर किसी के जेहन में उनकी तस्वीर को ताजा की हुई है। आज उनके जन्म दिवस के मौके पर उनकी उस अद्भुत और अनूठी जानकारी को हम आपसे साझा कर रहे हैं, जो शायद कम लोग जानते हैं। वाराणसी में रह कर पूरे विश्व पटल पर शास्त्रीय संगीत और बनारस घराने का नाम रोशन करने वाली गिरिजा देवी भले ही वृद्धावस्था में जाने के बाद दुनिया छोड़ गई हों, लेकिन जीवन के अंतिम समय तक उनको गुड़ियों का बहुत शौक था।

अलमारी में बंद है हर देश की गुड़िया
जी हां गुड़िया, यानी छोटी बच्चियों की सबसे प्रिय सहेली, लेकिन एक अद्भुत कलाकार को भी गुड़ियों का बेहद शौक था। पद्म विभूषण गिरजा देवी के करीबी बताते हैं कि जब उन्होंने गाना गाना शुरू किया तो हर अच्छे गीत पर उनके पिता उन्हें एक गुड़िया भेंट करते थे। यह सिलसिला लगातार जारी रहा। इसका सबसे बड़ा असर अप्पाजी की जिंदगी पर भी पड़ा, क्योंकि जब वह गाने का रियाज करती थी। तब अपनी सहेलियों के तौर पर गुड़ियों को पास बैठाती थीं। उनको गाना सुनाती थीं। उनके साथ अपने जीवन के तमाम अच्छे बुरे पल को जीती थीं। कब यह गुड़िया उनकी बेहद खास हो गईं, उन्हें भी नहीं पता चला। यहां तक कि गिरिजा देवी जब भी देश-विदेश में गाना गाने के लिए या किसी कार्यक्रम में परफॉर्म करने के लिए पहुंचती थीं, तब वहां से कुछ खरीदें या ना खरीदें, उस देश की गुड़िया जरूर खरीदती थीं। यही वजह है कि आज भी अप्पाजी के बनारस वाले घर में गुड़ियों का कलेक्शन बहुत लंबा चौड़ा है।

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वर्तमान समय में बनारस के इस घर के एक शोकेस में 100 से ज्यादा गुड़िया मौजूद हैं, जिनमें भारत, कजाकिस्तान, इटली, इंडोनेशिया, जापान, अमेरिका, चीन, तंजानिया समेत अलग-अलग देशों की गुड़िया शामिल हैं। यहां तक कि पहाड़ी इलाकों में मिलने वाली रंग-बिरंगी गुड़ियों का कलेक्शन भी यहां पर आपको देखने को मिल जाएगा। लंबी चौड़ी गुड़ियों के कलेक्शन के साथ अप्पाजी का यह गुड़िया प्रेम आपको आज भी उनके इस घर में जीवित होता दिखाई देगा।

कुछ बनने की चाहत ने बनाया इनको दोस्त
भले ही आज अप्पाजी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका यह अद्भुत शौक आज भी उनके इस घर में संजोकर रखा गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि अप्पा जी के बारे में जानने वाले लोगों का साफ तौर पर कहना है कि वह गुड़ियों का बेहद शौक रखती थीं। बनारस के वरिष्ठ पत्रकार और संगीत प्रेमी अमिताभ भट्टाचार्य का कहना है कि संगीतकारों के अपने-अपने अलग शौक होते हैं और अप्पाजी को गुड़ियों का बेहद शौक था। उनके साथ जीवन जीना उनको अपना संगीत सुनाना, उनको बेहद पसंद था क्योंकि जब कोई बच्चा किसी बड़े काम की चाहत में लिप्त होता है तो वह अपने दोस्त और नजदीकियों को भूल जाता है। ऐसे में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उनके सबसे करीबी हो जाते हैं और अक्सर यह चीजें खिलौने के रूप में होती हैं और अप्पाजी के साथ भी ऐसा ही था कि दोस्त भले ही उनसे दूर थे, लेकिन इन गुड़ियों को ही उन्होंने अपना दोस्त और सहेली बना लिया था। जीवन पर्यंत इनका साथ नहीं छोड़ा। इन गुड़ियों ने भी अप्पाजी को कभी अकेलापन महसूस नहीं होने दिया।https://gknewslive.com

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