UP NEWS: साहिबाबाद में रहने वाले राजू का 7 साल की उम्र में अपहरण हो गया था। 30 साल बाद बदमाशों के चंगुल से बच के वह पुलिस स्टेशन पहुंचा जहाँ पुलिस ने उसके घर का पता लगाया और उसे घर पहुँचाया हालाँकि उसके पिता ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया है जिसके चलते राजू के रिश्तेदार उसे अपने घर ले गए।
मामला गाज़ियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र के शहीद नगर का बताया जा रहा है जहाँ 30 साल पहले 1993 में एक बच्चे का अपहरण हो गया था। उस समय राजू की उम्र महज़ 7 साल थी। अपहरणकर्ताओं ने परिवार से चिट्ठी भेज के 7.40 लाख की फिरौती भी मांगी थी लेकिन उसके बाद कोई वार्तालाप नहीं किया। राजू ने बताया की 30 साल तक बदमाशों ने उसे अपने चंगुल में रखा। दिन में उससे भेड़-बकरी चरवाते थे और रात होते ही खेत के पास बनी एक झोपड़ी में उसे कैद कर के हाथ और पैरों में बेड़ियाँ बाँध देते थे। खाने के लिए उसे रोटी और थोड़ी सी चाय मिलती थी। बदमाशों की दरिंदगी बताते हुए राजू ने कहा की यदि कोई भेड़ या बकरी खो जाती थी तो उसे पेड़ से बांधकर मारा जाता था और खाना भी नहीं दिया जाता था।
किसी तरह राजू अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकलकर भागा और अपने घर पहुंचा तो पिता ने उसे बेटा मानने से ही इनकार कर दिया जिससे उसकी ख़ुशी ग़म में बदल गयी। हालाँकि राजू से मिलने पहुंची उसकी दो बड़ी बहनो ने उसकी पहचान बर्थ मार्क द्वारा की है। राजू ने भी उन्हें उनके बचपन के नाम से पुकारा तो बहनो ने उसे गले से लगा लिया। बुधवार शाम उसके चाचा भोज राज और अन्य परिवारजन मिलने थाने पहुंचे जहाँ थोड़ी बहस के बाद रिश्तेदार उसे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गए।
राजू ने बताया की राजस्थान में उसके साथ बहुत बुरा सलूक होता था। 30 साल पहले अपनी बहन के साथ स्कूल से आते वक़्त एक ऑटोचालक ने उसे किडनैप किया और आगे जाकर एक ट्रक वाले को सौंप दिया। ट्रक चालाक उसे राजस्थान के जैसलमेर ले गया जहाँ उसे बहुत मारा पीटा जाता था और उससे मजदूरी करवाते थे। हाल ही के दिनों में एक सरदार कारोबारी को उसपे तरस आया और राजू की कहानी सुनने के बाद उसे चुपके से भेड़ों के साथ ट्रक में चढ़ा के दिल्ली ले आया। दिल्ली पहुँचने के बाद उसे एक चिट्ठी के साथ गाज़ियाबाद बॉर्डर पर यह लिख के छोड़ दिया की वह दिल्ली का रहने वाला है और उसका अपहरण कर लिए गया था। कई दिनों तक थाने में भटकने के बाद भी उसकी सुनवाई नहीं हुई जिसके बाद वह खोड़ा थाने पहुंचा जहाँ पुलिस ने उसकी सहायता की। तीन दिनों के अंदर पुलिस ने राजू के परिवार की तलाश कर ली। साहिबाबाद थाने में 8 सितंबर 1993 को उसके अपहरण का मुकदमा भी दर्ज है। यह मुकदमा भीम सिंह (पिता) की ओर से दर्ज करवाया गया था।