Baba Jai Gurudev Satsang: विश्व विख्यात निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बाराबंकी में दिए सतसंग संदेश में बताया कि उस प्रभु की जीव पर जब बहुत बड़ी अनुकम्पा हो जाती है, तब भाग्य से ये सतसंग की बातें सुनने को मिलती हैं। सत्य का संग करने की जानकारी होती है। यहां इसका उपाय बताया और समझाया जाता है।
सत्य किसको कहते हैं ?
जिसको लोगों ने अंतर में देखा, दर्शन किया, ब्रह्म को ही सत्य बताए, बाकी ये जगत मिथ्या बताया। लेकिन ऊपरी लोकों के और ऊपर जो सतलोक है, जिसे संतो ने “जयगुरूदेव” लोक भी कहा, उसके नीचे के सारे लोक, वास्तव में नष्ट होने वाले होते हैं। इस दुनिया – संसार को मिथ्या बताया गया जिसमें एक दिन सबको अपना-अपना कहने वाली चीज़ों को छोड़कर जाना पड़ता है। मिथ्या अर्थात खत्म होने वाली चीज़ें। इस परिवर्तनशील संसार के अलावा वो ऊपरी स्थान, सतलोक जहां सभी स्थिर हैं, उसकी जानकारी जहां होती है उसी को सतसंग कहा जाता है।
सतसंग का अर्थ क्या है?
उस प्रभु, परमात्मा के रूप में जो वास्तविक सत्य इस दुनिया संसार में है, उससे मिलने का तरीका जहां बताया जाता है, और मिलवा भी दिया जाता है, वही सतसंग कहलाता है। सतसंग भी बड़े भाग्य से मिलता है। ये भवसागर आसानी से पार हो जाए इसे ही अपना भाग्य समझना चाहिए। जहां पर आप रहते हो, थोड़े समय के लिए ही सुख – दुख के पलों का अनुभव आप लोग करते हो, रोज का खाना – पीना, मल – मूत्र त्यागना, जहां कोई आपका अपमान किया तो कोई सम्मान किया , जहां पैदा होते हैं, वहीं मरते हैं, जहां सभी का रोना – धोना लगा ही रहता है, यही कहलाता है – भवसागर।
भवसागर से निकलोगे कैसे ?
अगर उपाय मालूम हो जाए तो बिना प्रयास के ही ये जीव निकल सकता है। जब उस प्रभु की दया हो जाती है, उसकी ही कृपा के सहारे, जब वह प्रभु सतसंग सुनने का मौका दे देता है, तब ये जीव इस भवसागर से निकल सकता है। जब प्रभु को दीन भाव से, साफ अंतरात्मा से, सच्चे माध्यम से “याद” करोगे तो “दया” हो जाएगी।