Mayawati Birthday: मायावती, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली नेता रही हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उनके राजनीतिक करियर पर सवाल उठ रहे हैं। आज, 15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन है, और इस मौके पर उनके समर्थक प्रदेश भर में कार्यक्रम आयोजित कर रहे है। मायावती की राजनीति की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी, जब उन्होंने बसपा के संस्थापक कांशीराम से प्रभावित होकर सियासत में कदम रखा था। वे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और दलित वोट बैंक पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती रही है।
हालांकि, पिछले कई चुनावों में मायावती का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा एक सीट पर ही सिमट गई, और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उनका खाता नहीं खुल सका। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि मायावती की राजनीतिक पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। 2024 के चुनाव में उन्होंने अकेले दम पर चुनाव लड़ने की कोशिश की, लेकिन बसपा को केवल 9.39% वोट मिले, जो पार्टी के गठन से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था।
2012 के चुनाव से कमजोर पड़ीं मायावती
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मायावती और उनकी पार्टी बसपा के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ था। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) ने 224 सीटों के साथ प्रचंड जीत दर्ज की और प्रदेश में सरकार बनाई। वहीं, बसपा को केवल 80 सीटों पर संतोष करना पड़ा, जो कि पार्टी के लिए एक बड़ी गिरावट थी। भाजपा को 47 सीटें मिलीं और कांग्रेस ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की।
बसपा का 2012 में इस तरह से सिमटना मायावती की सियासी ताकत के लिए बड़ा आघात था। चुनावी नतीजों ने यह साबित कर दिया कि उनका दलित वोट बैंक पहले की तरह मजबूत नहीं रहा था, और इसके बाद से ही मायावती के राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। इस हार के बाद मायावती की सियासी स्थिति कमजोर पड़ी, और उनके लिए आगामी चुनावों में अपनी सियासी ताकत फिर से स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो गया।
मायावती के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि अगर इस चुनाव में वे अपनी ताकत नहीं दिखा पातीं, तो उनके सियासी वजूद पर संकट खड़ा हो सकता है। उनका दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वोट बैंक पहले की तरह उनके साथ नहीं दिख रहा, और वे किसी अन्य राजनीतिक दल से गठबंधन करने के लिए भी तैयार नहीं दिखतीं। ऐसे में, मायावती को अकेले दम पर अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. अगर मायावती इस चुनौती को पार करने में असफल रहती हैं, तो उनका राजनीतिक करियर संकट में पड़ सकता है, और उनका सियासी अस्तित्व खतरे में आ सकता है।
सियासी वजूद पर मंडराने लगा खतरा
अभी तक मायावती युवाओं को अपनी पार्टी से जोड़ने में विफल साबित हुई हैं। दलित-मुस्लिम वोट बैंक भी उनसे छिटकता हुआ नजर आ रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि यदि मायावती 2027 के चुनाव में अपनी ताकत नहीं दिखा सकीं तो उनका सियासी वजूद खतरे में पड़ जाएगा। चुनाव के दौरान मायावती की निष्क्रियता पर भी पहले से ही सवाल उठते रहे हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में मायावती अपनी ताकत दिखाने में कहां तक कामयाब हो पाती हैं।Mayawati Birthday: चार बार संभाली यूपी की कमान मगर अब सियासी वजूद बचाने की चुनौती