लखनऊ। बच्चों के बीच तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल की आदत धीरेधीरे एक लत में तब्दील होती जा रही है। हालि में अध्ययन में दावा किया गया है कि इससे बच्चों का आईक्यू स्तर प्रभावित हो रहा है। निष्कर्ष में पाया गया कि समय से पैदा हुए बच्चों के लिए ये अधिक नुकसानदेह साबित हो सकता है। इससे बच्चों की याददाश्त पर असर होने की संभावना व्यक्त की गई है। 6 और 7 साल की आयु के बच्चे जो गर्भावस्था के 28 सप्ताह से पहले पैदा हुए और दिन में 2 घंटे से अधिक समय मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीन पर बिताते हैं। उनका आईक्यू स्तर कम हो सकता है।

ध्यान केंद्रित करने की होती है समस्या
साथ ही ऐसे बच्चों में आवेग नियंत्रण, ध्यान और समस्या समाधान कौशल में कमी होने की संभावना अधिक होती है। अध्ययन राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा वित्त पोषित है। अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन बच्चों के बेडरूम में टेलीविजन या कंप्यूटर था उनमें ध्यान केंद्रित करने की समस्या की संभावना ज्यादा थी।शोधकर्ताओं ने कहा कि अधिक समय तक स्क्रीन टाइम, सामान्य और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की याददाश्त के लिए नुकसानदेह हो सकता है। और ऐसे बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्या बढ़ सकती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि निष्कर्ष के आधार पर चिकित्सकों को समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों और उनके परिवारों के साथ स्क्रीन समय के संभावित प्रभाव पर चर्चा करने की आवश्यकता है।

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414 बच्चों पर हुआ शोध
वहीं पूर्व अध्ययन में व्यवहारिक और अन्य समस्याओं को पूर्णकालिक रूप से जन्म लेने वाले बच्चों के बीच अत्यधिक स्क्रीन टाइम से जोड़ा गया था। वहीं अब 28 हफ्ते या उससे पहले पैदा बच्चे के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया। 414 बच्चों में से 238 बच्चे ऐसे थे जिनका प्रतिदिन स्क्रीन समय 2 घंटे से ज्यादा था। और 266 ऐसे थे जिनके बेडरूम में टीवी या कंप्यूटर था। हर दिन कम स्क्रीन समय वाले बच्चों की तुलना में रोजाना स्क्रीन पर अधिक समय बिताने वाले बच्चों से की गई। अधिक वक्त बिताने वाले बच्चों ने वैश्विक कार्यकारी फंक्शन परसेंटाइल स्कोर में लगभग 8 अंकों की औसत कमी हासिल की। आवेग नियंत्रण पर लगभग 0.8 अंक कम रहे, और असावधानी पर 3 अंक अधिक रहे।https://gknewslive.com

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