लखनऊ। तनाव, चिंता, डिप्रेशन से पुरुष और महिलाएं दोनों ही ग्रस्त होते हैं। जबकि महिलाओं की तुलना में पुरुष अपनी मेंटल कंडीशन को दूसरों से शेयर करने से कतराते हैं। अपने इमोशन्स और स्ट्रेस की वजहों पर पुरुष खुलकर बात नहीं कर पाते क्योंकि आज भी समाज में ये एक टैबू की तरह है।ओनलीमाईहेल्थके अनुसार, कोरोना महामारी के दौर में महिलाओं के साथ पुरुषों में ऐसे मेंटल हेल्थ इशू देखने को मिले, जिसमें वे अंदर ही अंदर घुटते रहे और अपनी परेशानियों को दूसरों से शेयर करने से बचते रहे। स्ट्रेस और डिप्रेशन से ग्रस्त कई पुरुषों ने अपनी परेशानियों को शेयर करने की बजाय अपनी जिंदगी समाप्त करना बेहतर समझा। ऐसे हालात में पुरुषों के मेंटल हेल्थ की समस्या अब ग्लोबल मुद्दा बन गया है जिसमें पुरुषों के मेंटल हेल्थ के मिथों और रिऐलिटीज पर बात की जा रही है। यहां हम कुछ ऐसे मिथ के बारे में बता रहे है जो पुरुषों पर थोप दी गई है जबकि सच्चाई कुछ और है।
पुरुष कभी नहीं रोते
बचपन से ही पुरुषों को यह सिखाया गया है कि लड़के नहीं, लड़कियां रोती हैं. जबकि सच्चाई कुछ अलग है। रोना दरअसल एक मानसिक अनुभूति है जो तनाव को कम करने का काम करती है। लेकिन जब इंसान नहीं रोता है और नेचर के विपरीत जाकर तनाव के बावजूद खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश करता है तो दरअसल वह अंदर से प्रेशर महसूस करता रहता है और बेचैन रहता है। ऐसे में जरूरी है कि वो अपनी फीलिंग्स को कहीं शेयर करें और मेडिटेशन का सहारा लें।
पुरुष इमोशनल नहीं होते
हर इंसान की तरह पुरुष भी इमोशनल हो सकता है। यह कहीं से कमजोरी का लक्षण नहीं होता है। साइकोलोजिस्ट और डॉक्टर्स पुरुष का इमोशनल होना पूरी तरह से सामान्य स्थिति बताते हैं। ऐसे में पुरुषों को भी हक है कि वे अपने इमोशन्स का व्यक्त करें और हर तरह की फीलिंग्स को शेयर करें।
मेंटल सपोर्ट की नहीं होती जरूरत
लोगों में आम धारणा है कि पुरुषों को मेंटल सपोर्ट की जरूरत नहीं होती पर ऐसा नहीं है। पुरुषों को भी मेंटल सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। ऐसा करने से खुद को अकेला नहीं महसूस करते और बेहतर तरीके से जी पाते हैं।
अधिक गुस्सैल होते हैं पुरुष
गुस्सा आना किसी के लिए भी एक सामान्य बात है। अगर इंसान मानसिक रूप से परेशान है और अपनी बात नहीं शेयर कर पा रहा या मानसिक रूप से थका हुआ है तो कोई भी इंसान गुस्सा कर सकता है। फिर वह पुरुष हो या महिला। https://gknewslive.com