लखनऊ : निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, दुःखहर्ता, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि गुरु महाराज का बताया सुमिरन ध्यान भजन भी त्याग में ही होता है। भोगी भजन नहीं कर पाते हैं। उनका मन खाने-पीने, मौज-मस्ती में ही लगा रहता है।
रुखा-सूखा खाने वाले, सादा जीवन बिताने वाले का मन साधना में जल्दी लग जाता है। नाम दान लेने से नहीं होता है, करने से होता है। अवतारी शक्तियां सन्त महापुरुष सब मनुष्य शरीर में ही थे। सन्तमत में सन्त सच बोलने में कोई भी कसर नहीं रखते हैं। दीनता से कोई चीज मांगते हैं तो वह चीज मिल जाती है। साधना की खुशबू बहुत जल्दी फैलती है। अच्छे साधक अपने को शो नहीं करते हैं।