लखनऊ : विधाता रचित कर्मों के बहुत ही गहरे विधान को पूरी तरह से जानने समझने की वजह से इसे बायपास करने, इसके प्रभावों से बचने का रास्ता भी जानने और अपने भक्तों को बता कर उन्हें बचाने वाले, अध्यात्म के साथ-साथ भौतिक शारीरिक लाभ पाने के सूत्र बताने वाले, इस समय के प्रभु के जगे हुए, मालिक की पूरी ताकत वाले नाम जयगुरुदेव के दुरुपयोग से सावधान करने वाले, स्वामी जी महाराज (बाबा जयगुरुदेव) जिनमें समा कर जिनके माध्यम से अब सबकी संभाल कर रहे हैं, ऐसे पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने दईजर आश्रम, जोधपुर (राजस्थान) में दिये संदेश में बताया कि स्पर्श का विषय थोड़ा गहन, कठिन होता है। जैसे आंखों से आंखें मिली, एक रेंज आंख से निकली, दूसरी रेंज को स्पर्श किया, कोई बोलता है तो कानों के परदे के ऊपर उसकी आवाज स्पर्श करती है, कोई किसी को छूकर के जगाता है, बच्चों को मातायें पीठ को सहला करके सुलाती है। हालांकि पीठ को सहलाने से कम फायदा होता है, हल्का-हल्का थपकी देने से बच्चे का दूध पच जाता है।

जयगुरुदेव बोलकर गलत काम करोगे तो उसी दिन पकड़े जाओगे:-

महाराज जी ने प्रातः जोधपुर आश्रम (राजस्थान) में बताया कि गुरु महाराज ने कहा कि यह जयगुरुदेव नाम मुसीबत में बोलोगे तो जान की रक्षा करेगा लेकिन यह भी बताया कि अगर जयगुरुदेव नाम बोल करके चोरी, व्यभिचार, कत्ल करने जाओगे तो अभी तक तो बचते रहे लेकिन उसी दिन पकड़े जाओगे।

शाम को भोजन करने के बाद धीरे-धीरे टहलना चाहिए:-

कोई बच्चा दूध ज्यादा पी लेता है, मुंह से फेकने लगता है तो यह मातायें जो समझदार होती है, जो बहुएं अपनी माताओं की सेवा करती है, खुश रखती है तो वह बताती है कि बच्चा दूध फेंके तो बच्चे को कंधे पर रखकर थपकी दे। दूध निकलना बंद हो जाता है यानी पचाव शुरू हो जाता है। भोजन के बाद अगर कोई पीठ के बल लेट जाए और ऐसे हल्का-हल्का (पीठ) दबा दे तो फिर ज्यादा आराम की जरूरत नहीं रहती है। फिर तो 2-4 मिनट पीठ दबवा कर चल पड़ो तो भोजन का पचाव शुरू हो जाता है नहीं तो भोजन के बाद टहलना पड़ता है। शाम को भोजन के बाद धीरे-धीरे चलो। सुबह खाली पेट चलो, घूमो तो तेज चलो। यह सब एक तरह से सिस्टम को स्वस्थ रखने के लिए बना दिया गया जो गुरु के पास लोगों के जाने पर गुरु बता दिया करते थे।

स्वास्थ्य कब खराब होता है:-

कहते हैं- अति का भला न बरसना, अति का भला न धूप, अति का भला न बोलना, अति का भला न चुप। कोई चीज की जब अति हो जाती है और मन यह अति करा देता है, जो खाने-खाने की ही आदत डाल लेते हैं, उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है। जो बहुत ज्यादा लालची हो जाते हैं कि पैसा ही कमाना है, दिन-रात जग करके पैसा ही लाना है, बड़ा आदमी बनना है तब उनके ऊपर भी असर आता है। जो विषयों के भोगी हो जाते हैं, आदत बन जाती है, उनका भी स्वास्थ्य खराब, शरीर मन बुद्धि कमजोर हो जाती है। चीजें तो सब बनी है, खाओ भी, इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मेहनत भी करो, जिससे इस शरीर के लिए रोटी-कपड़े का इंतजाम होता रहे, बच्चा भी पैदा करो लेकिन उसमें फंसो नहीं। यह भी बताया गया।

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