धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, सच्ची भक्ति करने की प्रेरणा देने वाले, लक्ष्मी को घर में रोकने के उपाय बताने वाले, अपने प्रेमियों को समय-समय पर जरुरत के अनुसार देखने में साधारण लगने वाले लेकिन गहरे रहस्य वाले विशेष आदेश दे कर आने वाले बड़े खराब समय में बचत का इंतजाम करवाने वाले, लोक और परलोक दोनों बनाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, लोकतंत्र सेनानी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने लखनऊ में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देखकर के लोग बदल जाते हैं। गुरु महाराज भी पोस्टर लगवाते, लिखाई करवाते, पर्चा बंटवाते थे तब यह संगत दिखाई पड़ रही है। उनकी दया से ही है। आप लोग अपने-अपने स्तर से ही सही, सतयुग लाने, ह्रास होते धर्म की स्थापना के लिए, उसे पुनः लाने के लिए अपने-अपने स्तर से मेहनत करो। यदि तन मन की सेवा नहीं कर पाते हो, धन में ही मन लगा हुआ है तो उसमें से निकाल करके लगा दिया करो। परचा छपवा दो, प्रचार में खर्च कर दो, कैसे भी हो, बाह्य भक्ति करो। और आंतरिक भक्ति जो की जाती है, गुरु के आदेश का पालन, यही सुमिरन ध्यान भजन, प्रेमियों बराबर करते रहना। जिनको नामदान नहीं मिला है, आज (सतसंग में) नाम दान दे दिया जाएगा।

अच्छे काम में खर्च करने से लक्ष्मी आपके चूमेगी कदम

जब से गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) शरीर छोड़े और हमने उज्जैन में आश्रम बनाया तब से लगातार भंडारा का कार्यक्रम होता रहा है। कोरोना की वजह से आपको बताया गया कि हर त्रयोदशी को अपने-अपने जिले में भंडारा, ध्यान भजन सुमिरन करो। कोई जो समझा लेता है, गुरु के मिशन के बारे में, बताओ। भंडारे आप लोग बराबर चलाते रहो। अभी चला रहे हो, कोई दिक्कत नहीं है। आपको कोई कमी नहीं होने पाएगी। लक्ष्मी की कमी अच्छे काम में होती ही नहीं है। जो अच्छे काम में लक्ष्मी को लगाता है, उसके साथ लक्ष्मी हमेशा रहती हैं, कदम चूमती हैं। उसके पास रुपया पैसा की कमी नहीं होती है। माया तो है राम की मोदी सब संसार, जाको चिट्ठी उतरी सोइन खर्चनहार। वह (प्रभु ही) तो देता है। और जो लक्ष्मी को शराब-मांस की भट्टी, दुकान पर फेंक कर आया, वैश्या के पैरों के नीचे नोटों को रौंदाया, जुए में लगाया, चोरी करके लाता है उसके पास लक्ष्मी नहीं रुकती है, इसीलिए तो चोर बार-बार चोरी करता है। धर्म के धन न घटे जो सहाय रघुवीर, स्वामी पक्षी के पिए घटे न सरिता नीर।। पक्षी के पीने से नदी का नीर (पानी) नहीं घटता है, बढ़ता ही जाता है। ऊपर से नहीं बरसता है तो नीचे से (भूमिगत स्रोत) से पानी आ जाता है। ऐसे ही धर्म के काम में भूखे को रोटी खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना आदि यह गृहस्थ का धर्म बनता है। इसमें खर्च करने से कम नहीं होता है, इसको तो चलाते रहना।

प्रेमियों नया आदेश शुरू हो गया

अब एक नया काम शुरू हो गया है। आप त्रयोदशी पूर्णिमा के दिन लोगों को भोज कराते हो। अभी बहुत सी जगहों पर आपके और भी बहुत से भंडारे चल रहे हैं, तीर्थ स्थानों पर, दार्शनिक स्थानों पर। गरीब, असहाय लोग आते हैं। असहाय, गरीब ही नहीं होते हैं और भी होते हैं जैसे तीर्थ स्थानों पर गए, रात को 11 बजे पहुंचे, होटल बंद है, कहां खाएं? तो ऐसे करोड़पति लोग भी असहाय हो जाते हैं बेचारे। उनको भी भोजन कराना पुण्य का काम होता है। कहीं लंगर लगा हो या रोड़ के किनारे पैकेट बंट रहा हो तो धनी पैसे वाले लोग उसको नहीं खाते हैं। लेकिन सम्मान के साथ अगर उनको बुलाया जाए, हाथ जोड़ कर प्रेम से बैठाया जाए। प्रेम बहुत बड़ी चीज होती है, कहा है- आवत ही हर्षय नहीं, नैनन नहीं स्नेह, स्वामी तहां न जाइए, कंचन बरसे मेह। जहां आपने आते ही खुशी न हो, प्रेम स्नेह न हो, पानी प्रेम से न पिलाओ, प्रेम से बैठाओ भोजन न कराओ तो वहां नहीं जाना चाहिए। गांव में कहते हैं- आवत ही हरषै नहीं, जाति न दीन्हा हठ, यही में दोनों गए, काहुन और गृहस्थ। कहते हैं दोनों की मर्यादा खत्म हो जाती हैं।

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