धर्म कर्म: गुरु से कैसा प्रेम किया जाए कि वो खुश हो जाए, ये बताने समझाने वाले, जिनसे देने वाले भी पूछ कर ही देते हैं, ऐसे सब कुछ सब जीवों की दाता, प्रभु की दया लेने का तरीका सिखाने वाले, लोगों का मन बदल कर अच्छे काम में लगाने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, लोकतंत्र सेनानी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बरसात के महीने में स्वाति नक्षत्र आता है तो उस बूंद का अलग-अलग असर होता है। हाथी के कान में गिर जाए तो गर्भमुक्ता हो जाए और सीप में गिर जाए तो मोती बन जाए। ऐसे ही उसका बड़ा महत्व होता है। तो (पपीहा) उसी पानी को पीता है। कबीर साहब जा रहे थे। तो देखा पपीहा नदी में गिर गया, प्यास से तड़प रहा है लेकिन नदी का पानी नहीं पिया, इंतजार कर रहा। इतना प्रेम है स्वाति की बूंद से। तो समझ लो, प्रेम होना चाहिए गुरु से। और जब प्रेम किसी से किसी को हो जाता है तब उसका चेहरा नजरों में बस जाता है, उसकी बातें बराबर याद आती रहती है, बराबर उससे मिलने की इच्छा तड़प होती रहती है। ऐसा प्रेम गुरु के प्रति बनाना, बढ़ाना चाहिए।

दाता से मांगते रहना चाहिए

बाब उमाकान्त जी ने  हेड़ाखेड़ा (हरियाणा) में बताया कि प्रेमियों, साधकों को मालिक की मौज पर रहना चाहिए, दरवाजे पर बैठते, मांगते रहना चाहिए क्योंकि वह दाता हैं। दाता हमेशा देता ही है। अब लेने का तरीका जिसको मालूम हो जाता है, वह ले लेता है। कोई ज्यादा ले लेता है, कोई कम लेता है। देखो दो बच्चे होते हैं, एक बड़ा जिद्दी, हमको देओ देओ देओ। तो देगा तो थोड़ा-थोड़ा देगा और गुस्सा जाएगा तो नहीं देगा। और एक बच्चा बड़े प्यार से ले लेता है। ऐसे ही लेने का तरीका जब मालूम हो जाता है तो उसको ज्यादा मिल जाता है। तो वह तो दाता है। तो मांगते रहना चाहिए लेकिन दुनिया की चीज नहीं मांगनी चाहिए। दुनिया की चीज मांगोगे तो इसमें फंसते चले जाओगे क्योंकि इस चीज को हमेशा याद रखो, न तो कोई चीज लेकर के आए हो और न कोई चीज आप उधर ले जाओगे।

खाली हाथ आए हो और खाली हाथ जाना पड़ेगा। तो अब आप इस दु:ख के संसार में और दु:ख क्यों पैदा करते हो? नहीं मिलता है तब रोते हो, मांगते हो। और मिल जाता है तो नुकसान हो जाता है, सड़ गल जाता है, चोर ले जाता है, गिर जाता है, इधर-उधर चला जाता है तो रोते हो। तो रोने-धोने का काम क्यों करते हो? मालिक पर ही क्यों न भरोसा करो, आपकी जैसी मौज हो, जैसी आपकी रजा हो, उसके हिसाब से हमको रहना है। हम तो आपके गुलाम हैं। आप हमको जो खिलाओगे, हम खाएंगे और जो पहनाओगे, हम पहनेंगे और जैसे रखोगे, हम रहेंगे। हम तो आपके गुलाम हैं। गुलाम की कोई ख्वाहिश, इच्छा नहीं होती है। आप मेरे दाता हो और मैं आपका भिखारी हूं। आपको मेरे लिए जो जरूरत हो, वह चीज आप हमको दे दो। ऐसा भाव सतसंगी को अपने अंदर बनाने की जरूरत है, साधकों को बनाने की जरूरत है।

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