धर्म-कर्म : कर्मों के विधान को और उसकी अटलता को पूरा समझाने वाले, अपने भक्तों की तकलीफ को दूर करने के लिए उनके कर्मों का बोझा अपने उपर ले कर भुगतने वाले, परोपकार करने में दिन-रात व्यस्त, निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के सच्चे सपूत, आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि कर्म के बारे में आपको नहीं मालूम है कि हमसे क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा हुआ। कर्मों की वजह से ही महापुरुषों को भी तकलीफ झेलना पड़ा था। कर्मों की सजा मिलती ही मिलती है। किसको? जो भी इस मनुष्य शरीर में इस धरती पर आता है, चाहे ऋषि-मुनि हो, चाहे योगी-योगेश्वर हो, चाहे वह सन्त हो।
निराश होने की जरूरत नहीं रहती है:-
महाराज जी ने बताया कि निराश होने की जरूरत नहीं रहती है। जो सपूत होते हैं, उस मालिक पर भरोसा और विश्वास करके आगे निकल पड़ते हैं। तो कहा गया है, अच्छे लोगों का, धर्मनिष्ठों का, महापुरुषों का, पवन और पानी सब साथ देते हैं। गोस्वामी जी ने लिखा है, जहां जहां चरण पड़े रघुराया, तहां तहां मेघ करे नभ छाया। जहां-जहां वह आगे बढ़ते गये, वहां अगर छाया की जरूरत पड़ी तो छाया उनको मिलती रहेगी। धूप गर्मी यह जो प्रकृति है, यह महापुरुष के हाथ में होती है। महापुरुषों के अनुसार चलती है। महापुरुषों के अनुसार ही होता है। गुरु महाराज के जीवन में बड़ा संघर्ष आया लेकिन संघर्ष को झेलते हुए आगे बढ़ते चले गए। रुके नहीं। और जीवों पर बहुत बड़ा उपकार किया।