Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि कल से शुरू हो चुके है. नवरात्रि में देवी मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है। दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है जो देवी दुर्गा का ब्रह्मचर्य रूप है। यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है।
नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रम्ह्चारिणी रूप की पूजा होती है। इस रूप में देवी को समस्त विद्याओं का ज्ञाता माना गया है। देवी ब्रम्ह्चारिणी भवानी माँ जगदम्बा का दूसरा स्वरुप है। ब्रम्ह्चारिणी ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली। ब्रह्माण्ड को जन्म देने के कारण ही देवी के दूसरे स्वरुप का नाम ब्रम्ह्चारिणी पड़ा। देवी के ब्रम्ह्चारिणी रूप में ब्रम्हा जी की शक्ति समाई हुई है। माना जाता है कि सृष्टी कि उत्पत्ति के समय ब्रम्हा जी ने मनुष्यों को जन्म दिया। समय बीतता रहा , लेकिन सृष्टी का विस्तार नहीं हो सका। ब्रम्हा जी भी अचम्भे में पड़ गए। देवताओं के सभी प्रयास व्यर्थ होने लगे। सारे देवता निराश हो उठें तब ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है।
भोले शंकर बोले कि बिना देवी शक्ति के सृष्टी का विस्तार संभव नहीं है। सृष्टी का विस्तार हो सके इसके लिए माँ जगदम्बा का आशीर्वाद लेना होगा ,उन्हें प्रसन्न करना होगा। देवता माँ भवानी के शरण में गए। तब देवी ने सृष्टी का विस्तार किया। उसके बाद से ही नारी शक्ति को माँ का स्थान मिला और गर्भ धारण करके शिशु जन्म कि नीव पड़ी। हर बच्चे में 16 गुण होते हैं और माता पिता के 42 गुण होते हैं। जिसमें से 36 गुण माता के माने जातें हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा विधि…
देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें। इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें। देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसंद है उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें
ब्रह्मचारिणी मंत्र …
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।