धर्म-कर्म : पर्व और त्योंहार मनाने के पीछे छिपे असली उद्देश्य और संदेश को सरल शब्दों में बताने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, रावण के अहंकार ने उसकी विद्वता, शक्ति, तपस्या का नाश कर विनाश करवा दिया। महाराज जी ने कहा, रावण बड़ा विद्वान, बलवान, बड़ी शक्ति ताकत वाला था। पूजा भक्ति करते-करते शिव की शक्ति रावण के अंदर आ गयी थी। रावण हवा को रोक देता था।
वरुण, कुबेर, सुरेश, समीरा।
रण सन्मुख धरि काहूँ न धीरा।।
लेकिन उसको राक्षस क्यों कहा गया? उसका सर्वनाश क्यों हुआ? 

रावण के विनाश का कारण:-

बाबा जी ने कहा कि, रावण के अंदर प्रमुख रूप से तीन बुराइयां आ गई थी- मांस खाता था, शराब पीता था और दूसरे की मां-बहन को गलत नजर से देखता था। जब मांस खाया, शराब पिया वैसे ही बुद्धि हो गई। जब बुद्धि भ्रष्ट हुई, तब दूसरे की मां-बहन को अपनी पत्नी समझने लगता, और पाप कर देता था। कोई उससे जीत नहीं पता था जिसके चलते उसमे अंहकार बढ़ने लगा और इसी अहंकार ने उसका सर्वनाश कर दिया।

रावण वाला कर्म करोगे तो, हश्र भी रावण जैसा ही होगा:-

महाराज जी बताया कि, अगर आप लोग भी रावण वाले कर्म करोगे तो पापी बन जाओगे। अगर आपका मन भी उसकी तरह कामी, क्रोधी हो गया, आप भी दूसरे की औरत, बच्चियों, पुरुष को गलत नजर से देखने लग जाओगी तो सजा जरूर मिलेगी, पाप का अंत तो होता ही है। पाप जब बहुत बढ़ जाता है तब धर्म की स्थापना होती है।

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