धर्म-कर्म : मीरा बाई जो गहरी अध्यात्मिक बातें बताती थी वो सब समझाने दिखाने अनुभव कराने वाले, वक़्त के पूरे सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, सत्य जो कभी खत्म नहीं होता है, वही सत्य सतपुरुष है। सच्चाई और निर्मलता से भरे हुए, जिनके अंग पवित्र, विचार अच्छे होते हैं वह सतगुरु कहलाते हैं। गुरु बहुत तरह के होते हैं। गुरु-गुरु में भेद बताया गया लेकिन गुरु के जो अंग है, गुरु का जो शरीर है, गुरु का जो मन बुद्धि चित है वह अलग-अलग होते है। तो सच तो वह सतपुरुष मालिक है बाकी यह सब सपना है।
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गुरु से क्या मांगना चाहिए:-
महाराज जी ने कहा कि, यदि गुरु से कुछ मांगना है तो उन्हें ही मांग लो, जबभी उनसे प्रार्थना करो उनसे कहो- गुरु जी हमको तो केवल आप चाहिए। हम तो आपको चाहते हैं। आप हमेशा हमारे सिर पर सवार रहो। गुरु माथे पर राखिए, चलिए आज्ञा माहि, कहत कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहि। जो गुरु को अपने मस्तक पर रखकर चलते हैं, तीन लोक में उन्हें किसी से डरने भयभीत होने की जरुरत नहीं है। लेकिन इस समय बगैर गुरु की दया के, गुरु को मस्तक पर कोई रख नहीं सकता है। इसलिए गुरु भक्तों को संकल्प बनाना चाहिए, गुरु से ही प्रार्थना करनी चाहिए कि गुरु जी! दया करो। आप मेरे मस्तक पर हमेशा सवार रहो। आपका ही यह मन, तन और धन दिया हुआ है, इससे जो चाहो, आप करा लो। आप हमारे हृदय में बसे रहो। आप हमेशा साथ रहो, हमारा साथ मत छोड़ो। यही मांगना चाहिए।