धर्म कर्म: सर्वनाश के मूल कारण शराब, मांस और पर स्त्री गमन से सावधान करने वाले, दुखहर्ता, उज्जैन वाले हर तरह से समरथ सन्त सतगुरु, बाबा उमाकान्त महाराज जी ने  उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव सतसंग में बताया कि रावण इतना विद्वान, बलवान था कि वह तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर लिया था। रावण से डरते थे, पता नहीं कब आ जाए, कब्जा कर ले, कौन चीज ले जाए इसके राक्षस लोग, औरत, आदमी, धन कुछ भी ले जाए। सकल धर्म देखे विपरीता, कह न सके रावण भय भीता। सब लोग, सब धर्मलंबी रावण से डरते थे। कुबेर से लड़कर पुष्पक विमान जीता था। दस खोपड़ी जितनी अक्ल बुद्धि उसमें थी। लेकिन उसकी अक्ल खराब होती थी जब वह पाप करता था। जीव हत्या करना बहुत बड़ा पाप होता है। जीव हत्या करता था, करवाता था। उनके मांस को खाता था, खून बेमेल होता था तब उसकी बुद्धि खराब हो जाती थी। उस वक्त पर जो क्षमा भावना होना चाहिए, विद्या बुद्धि से जो सीख मिलती है, सब खत्म, सारा बड़प्पन खत्म हो जाता था। जानवरों का गर्म खून उसके दिमाग पर पहुंचता था, गुस्सा करता था। ताकतवर तो था ही, मार काट देता था। अहंकार में दूसरे का सामान, दूसरे की औरत सीता को ले गया जब उसे पता चला कि वन में सुंदर औरत आई है। बुद्धि खराब थी, शराब पिए, मांस खाये था। शराब गांजा भांग के नशे में आदमी को जो जुनून सवार हो जाता है, वही दिखाई पड़ता है। उसी तरफ वह चल पड़ता है। रावण को कामवासना की सनक सवार हो जाती थी। उसी में नजर दौड़ाता था।

शराब, मांस के सेवन से अवगुण आने में देर नहीं लगती, हो जाता है जूनून सवार

उसी के लिए आज प्रार्थना किया जा रहा है। घर-घर रावण जो पैदा हो रहे हैं, रावण जो यह बनते चले जा रहे हैं। न देख-रेख में यह बच्चे रावण का काम पर कर रहे हैं। बच्चियों तुम्हारी देख-रेख, शिक्षा नहीं होती है, तुम्हारे पति बिगड़ते चले जा रहे हैं, यह अवगुण तुम में बच्चियों आ रहा है। इसलिए कहा जा रहा है कि यह अवगुण आने में देर नहीं लगती है। तुरंत बुद्धि खराब होती है। चाहे कोई औरत हो या आदमी, शराब पी ले, मांस खा ले तो उसी तरह का भाव उसके अंदर पैदा हो जाता, उसी तरह का खून उसके अंदर बन जाता है, जैसे जानवर होते हैं। जानवर को क्या होता है? जानवर को तो उस वक्त पर कोई भी मिल जाए ऐसी हविश काम वासना पैदा हो जाती है।

अपने-अपने स्तर से ही लोगों को समझाओ तो बहुत से जीवों की जान बच जाएगी

मनुष्य अगर चाहे तो इस असर को कम कर सकता है। आप अपने बच्चों को या किसी को समझाओगे तो मान जाएगा क्योंकि उसके बुद्धि विवेक है। अगर चाहो तो इनको हैवानियत से इनको बचा सकते हो, इनको समझा सकते हो। परिवार वालों को, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, मिलने-जुलने वालों को, दोस्तों को, जिससे आपका संबंध है, जिससे आप सामान खरीदते-बेचते हो, जहां नौकरी करते हो, आपके सहकर्मी हैं। किसान, किसान को आदि, आप उन्हीं को समझा ले जाओ तो बहुत से जीवों की रक्षा हो जाए, बहुत से लोग पाप से बच जाएं, बहुत से लोग रावण जैसे कर्म जो कर रहे हैं, उससे बच जाए, उनका विनाश न हो, नहीं तो विनाश अवश्यंभावी।

 हम-आप तो यही काम करने के लिए बनाये गए, समझो भेजे गए हैं

जब आदमी की बुद्धि ख़राब हो जाती है, दिल-दिमाग काम नहीं करता है तब प्रकृति विनाश करती है। वह विनाश करने वाले अलग होते हैं। और जब आदमी की बुद्धि काम नहीं करती है, आद्र भाव से उस प्रभु को पुकारते हैं तो मदद करने वाले भी रहते हैं। कौन मदद करते हैं? यह महात्मा, समरथ गुरु मदद करते हैं। प्रभु किसी न किसी को बहाना बनाकर के मदद करा दिया करता हैं। इस धरती पर हर तरह की व्यवस्था उसने कर रखी है। लेकिन यही काम जब दूसरे लोग कर ले जाएंगे तो आप क्या करोगे? अरे! हम-आप तो यही काम करने के लिए बनाये गए, समझो भेजे गए हैं। और लोग तो पटाखा छोड़ रहे हैं, बढ़िया मोमबत्ती, लाइट जला रहे कि लोग कहेंगे कि बड़े शौकीन है, बड़े आदमी है, बहुत से लोग ताश फेंट रहे हैं, जुआ में दिवाली का दिवाला निकल जा रहा और आप यहां घर छोड़कर के यहां (सतसंग कार्यक्रम में आये हो), बैठे हुए हो जमीन में, जली-भूनी रोटी जो भी भंडारे में मिल जाए, खा रहे हो और वो लोग माल काट रहे (खूब व्यंजन खा-पी रहे) हैं, तो आप में और उन में अंतर है कि नहीं है? है। वृक्ष कबहु न फल भखे नदी न संचय नीर, परमार्थ के कारणे संतन धरा शरीर। सन्त दूसरों की मदद के लिए ही आते हैं। यह इतिहास बता रहा है कि जितने भी महापुरुष सन्त आए, सब लोगों ने अपने प्रेमियों से ही सहयोग लिया है। प्रेमियों के कर्मों को काटा है। प्रेमियों का इतिहास बनाया है। इसलिए भागीदार तो हमको-आपको होना ही है।

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