धर्म कर्म: सबको बराबर मानने वाले, सबको अपना समझने वाले, सबसे प्रेम करने वाले, दुखहर्ता, पूरे सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने सतसंग में बताया कि देखो प्रेमियों! अब इस समय ठंडी आने वाली है। ठंडी के महीने में आप लोग गरीबों को कंबल-टोपा बांटते हो। लेकिन मालिक ये चाहते हैं कि सामान उन तक पहुंचे जिनको जरूरत है। जिनके पास है, उनके पास तो है ही। जिनके पास नहीं है, उनको देने की जरूरत है। वहां आप पहुंच नहीं पाते हो, आलस्य कर जाते हो, वहां पहुंचो।

झोपड़ पट्टियों में देख लो, जिसके पास नहीं है, उसको दो

अब लोग कहते हैं शहर में तो सब कमाते, खाते हैं। बात तो सही है। शहर और गांव का रहन-सहन इसीलिए बदल जाता है क्योंकि वहां मेहनत मिलती है। मेहनत करते हैं तो मजदूरी, तनख्वाह अच्छी मिलती है। दफ्तर वहीं पर है, बड़ी-बड़ी एजेंसियां, बड़े-बड़े व्यापारी हैं। वो लोग पैसा कमाते हैं तो पैसा देते हैं। तो उनका रहन-सहन तो अच्छा है लेकिन वहीं पर घर बनते हैं, वहीं पर नाला बनता है, वहीं पर सरकारी काम होता है। तो वहां पर मजदूरी करने के लिए कौन जाता है? बेचारा गरीब आदमी जाता है। फटी पुरानी हालत में रहने वाला आदमी, पेट के लिए घर छोड़ करके वहां जाता है। तो कहां रहता है? वो दस-पचास हजार रुपया के होटल में रहता है? या 4-10 करोड़ के फ्लैट में रहता है? वो तो बेचारा झुग्गी-झोपड़ी में, कहीं भी जगह मिल गई, वहीं पर बना के रह जाता है। घर-कॉलोनी बनाने का ठेका लिया हुआ ठेकेदार जहां जगह दे देता है, जो भी टीन शेड़ बनवा देता है, उसी में रहता है। तो वहां चले जाओ। उधर झुग्गी-झोपड़ी की तरफ, शाम के टाइम चले जाओ। देखोगे, उनका कोई दरवाजा, लॉकर या अलमारी होती है? वो तो वहीं सब रखे रहते हैं।

ऐसे को दो जिसकी आत्मा को सुख मिले

उसको दो, उसको टोपा पहनाओ। और जो कार चलाने के लिए कपड़ा बांधा है, कार से जाता है, अपना कार छोड़ देता है और साहब का कार चलाता है, उसको जब आप दोगे तो क्या करेगा? वो ओढ़ेगा? अरे वो तो बिछाएगा। क्योंकि वो तो साहब जो दस हजार रुपये का कंबल दे दिए, उसको वो ओढ़ता है। वो तुम्हारा दिया ये कंबल थोड़ी ओढ़ेगा? वो तो जमीन में बिछाएगा। तो उसका उपयोग होना चाहिए। तो ऐसे को दो जिसकी आत्मा को सुख मिले, मन को आराम मिले, उसको दो।

 

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