धर्म कर्म: सब लोगों की चाह यही रहती है कि आनन्द मिले इसलिए लोग धन-दौलत जमा करते हैं, महल-कोठियां बनवाते हैं, परिवार बसाते हैं, फिर भी आनन्द नहीं मिलता। इसलिए लोगों को सोचना चाहिए था और इसकी जानकारी करनी चाहिए थी कि आनन्द कहां मिलेगा। संसार की इच्छा बुझती नहीं। जितना ही उसको पाने की कोशिश करो उतनी ही बढ़ती है जैसे आग में घी पड़े। यह बनावटी और क्षणभंगुर संसार है, यहां सूरज निकलेगा और डूबेगा, दिन होगा और रात्रि होगी। इससे परे दूसरा देवलोक है वहां न सूरज निकलता है और न डूबता है। वहां अंधेरा नहीं है। वहां प्रकाश ही प्रकाश है। उस सृष्टि की रचना अद्’भुत है। ये जल, मिट्टी, वायु वहां नहीं। वहां का वर्णन नहीं हो सकता। वह आंतरिक जगत है, दिव्य जगत है जिसे जीवात्मा-सुरत-रूह की आंख से देखा जा सकता है। बाहर की दो आंखों से दिखाई देने वाला यह जगत मिथ्या है और वह आंतरिक जगत प्रकाशमान है पर आप इसको जानते नहीं और इसी मिथ्या जगत में बुद्धि की कसरतबाजी करते रहते हो पर मिलता कुछ नहीं। अंततोगत्वा तुम फना हो जाते हो और सब कुछ यहीं छूट जाता है।

मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह हर चीज में आनन्द खोजता है आनन्द को पाने के लिए वह जीवों को मारता है, काटता है, खाता है किन्तु आनन्द नहीं मिलता। क्षणिक स्वाद का आनन्द मिलता है। सुन्दर वस्तुओं को देखता है और प्राप्त होने पर उसमें आनन्द ढूंढता है, किन्तु उसे स्थाई आनन्द प्राप्त नहीं होता। स्त्री में, बच्चे में, आनन्द की खोज करता है तो वहां भी उसे निराशा हाथ लगती है. वास्तव में आनन्द का भंडार हमारी आत्मा में है। आत्मा आनन्द का, प्रेम का रूप है। आत्मा जब दोनों आंखों के मध्य के रास्ते से ऊपर के लोगों में स्वर्ग बैकुंठ आदि में पहुंचती है तब उसे वहां अमृत पीने को मिलता है। आत्मा जब उस अमृत को पीती है तब उसे वास्तविक आनन्द मिलता है।

इस नाशवान संसार में आप सुख, शांति, आनन्द, ज्ञान की खोज कर रहे हो जब वह चीजें यहां है ही नहीं तो मिलेंगी कैसे ? तुम किसी महात्मा से मिलकर पूछते तो वह बता देते। सच्ची सुख शांति का रास्ता बाहर कहीं नहीं, इसी मनुष्य मंदिर में मिलेगा। दोनों आंखों के मध्य भाग में जहां जीवात्मा की बैठक है, आज्ञा चक्र, छठा चक्र, भृकुटि विलास कहते हैं। वहीं जीवात्मा के निज घर (सत्तलोक) का रास्ता गया है। ऊपर कैसे-कैसे बाजे बज रहे हैं क्या राग रागनियां हो रही हैं कैसी सुगंधी है उसका यहां पर जरा सा जर्रा भी नहीं है। जब जीवात्मा उसको पाती है तब उसको प्रत्यक्ष अनुभव होता है।

आप यहां के सुख चाहते हो पर यह अस्थाई और क्षणिक है। यहां आपको सुख कहीं नहीं मिलेगा। आप धन दौलत इकट्ठा कर लो, मान-सम्मान पा लो, फौज-फाटे रख लो पर सुख नहीं मिलेगा। जो आपके अन्दर छिपा हुआ सुख है जिसे आप बाहर ढूंढ रहे हो उसे महात्मा जानते हैं। उन्होंने खुद पाया और आपको भी रास्ता बताएंगे। इसलिए आपको ऐसे महात्मा के पास जाना चाहिए।

तुम सब लोग अंधकार में सुख का अनुभव कर रहे हो तुम्हें कदापि सुख प्राप्त नहीं होगा। सुख धन, सुख मान, सुख हुकूमत में, सुख पुत्र में, सुख जवाहरात में, सुख सोना-चांदी में, सुख खानपान में, सुख देखने-सुघंने में, सुख भोग में नहीं है। तुम्हारी अल्पज्ञता है जो तुम तलाश करते हो। सुख आत्मानुभव और परमात्मा की प्राप्ति में है। जब थोड़े ही दिनों में शरीर त्याग कर देना है तो तुम आत्म सुख की खोज क्यों नहीं करते हो। सुख तुम्हारे अंदर छिपा है। इस सुख को बख्शने वाले महात्मा होते हैं।

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