YOUTH DAY: शायद किसी ने सच ही कहा है कि, कुछ लोग जीते जी मर गयें तो कुछ लोग मर के भी अमर हो गयें उसी में से एक स्वामी विवेकानंद जी हैं। जिनके सूत्र आज भी युवाओं को जोश से भर देते हैं। स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरुष थें। जिनके भाषण से पूरा शिकागो अचंभित हो गया था। जिनका पूरा जीवन राष्ट्रप्रेम के लिए समर्पित था। आईये जानते हैं उनकी जयंती पर उनसे जुड़े कुछ अंश……. जिसको भारत में युवा दिवस के रूप में माया जाता है।
स्वामी विवेकानंद का लालन पालन
12 जनवरी 1863 में स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे और उनकी मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे। उनकी पढ़ाई में रूचि थी। साल 1871 में 8 साल की आयु में उन्होंने स्कूल जाने के बाद 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इस परीक्षा में उन्हें पहला स्थान मिला। कहा जाता है कि, परिवार में माता-पिता के पढ़े-लिखे होने के कारण ही, स्वामी जी अध्यात्म की तरफ आकर्षित हो गयें।
रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और शिकागो का भाषण
1888 में स्वामी जी की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद स्वामी जी के जीवन के जीने का महत्व ही बदल गया। 25 साल की उम्र में विवेकानंद जी ने सबकुछ त्याग कर सन्यासी का रूप धारण कर लिया। उनके तेज बुद्धि होने के कारण स्वामी जी नाम विवेकानन्द पड़ा। वहीं जब अमेरिका के शिकागो में विश्व के सभी धर्मों का सम्मेलन रखा गया था। तब भारत की तरफ से स्वामी विवेकानंद गए थें। बेहद ही साधारण वस्त्र पहने हजारों की संख्या के बीच में स्वामी जी सबसे अलग नजर आ रहे थें। भारत को प्रस्तुत करने के लिए 2 मिनट का समय मिला था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों से की, जिसके बाद शिकागो की संसद में बैठें सभी व्यक्ति दंग रह गये थें । आगे बढ़ते हुए स्वामी जी कहते हैं कि, मुझे गर्व है कि, मैं ऐसे धर्म से हूँ जिसने पूरी दुनिया के धर्मों को स्वीकारा है, और सार्वभौमिक, सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया है। हम विश्व के सभी धर्मो को एक सम्मान देते हैं। हमने इजरायल की यादों को भी संजोकर रखा है। जिस तरह से विश्व की सारी नदियां अलग-अलग जगह से बहती हैं, लेकिन आखिकार वो समुन्द्र में जाकर एक ही हो जाती हैं ठीक वैसे ही इंसान भी अपनी-अपनी मर्जी से जीने का रास्ता चुनता है। लेकिन आखिरी में वह ईश्वर के पास निहित हो जाता है।