धर्म कर्म: वक़्त के पूरे सन्त दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अगर थोड़ी देर के लिए आप अपने को, अपनी धन-दौलत, विद्या-बुद्धि को भूल जाओ, बिल्कुल यह सोच लो कि हमारे पास कुछ है ही नहीं और उस समय पर आप अगर गुरु को याद करो, याद करने के लिए केवल गुरु ही आपके पास रहे, जब भजन ध्यान सुमिरन में बैठो, थोड़ी देर के लिए उनको सब समर्पित कर दो तो इसी में वह आपके वश में हो जाएंगे। कहते हैं भक्त के वश में है भगवान। वह गुरु भगवान जिनको कहा गया, वह गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, वह अभी आपके वश में हो जाए, आपके प्रेम में, भाव में सराबोर हो जाए। तो जो काम शक्ति से नहीं होता है, प्रेम से हो जाता है। जो चाहे सो ले लो, तो जो चाहो सो कराओ, वह तो भरे भंडार है, दाता केवल सतगुरु, देत न माने हार, धरणी जहलो देखिए, तहलो सबै भिखार, तो इससे खुश होंगे।
भाव, भक्ति, प्रेम से खुश होते हैं
गुरु तो भाव भक्ति प्रेम और आज्ञा पालन में खुश होते हैं। आदेश के पालन को ही गुरु मुखता, भक्ति कहते हैं। तो भक्ति करनी चाहिए। भक्ति, एक दिखावे की भक्ति होती है और एक अंदर की भक्ति होती है। तो गुरु दिखावे की भक्ति कम पसंद करते हैं। बहुत से लोग बातों से ही पेट भर देते हैं, बातों से ही उसके ऊपर प्रभाव जता देते हैं और करते कुछ नहीं है। और कुछ लोग करके दिखा देते हैं, उस पर लोगों को ज्यादा विश्वास हो जाता है। नहीं तो एक-दो बार बातों से पेट भर दो तब तो कहता है यह तो ढपोर शंख है, तो विश्वास हट जाता है। और अगर किसी से एक बार कह दो, और वह आपका काम कर दे तब तो कहेगा कि यह व्यक्ति ही असली शंखिया है, यह ढपोरशंख नहीं है।
काम जो करो, उसको दिखाने की कोशिश मत करो
भक्ति अंतर से की जाती है और करके दिखाया जाता है। भक्ति ऐसे कीजिए ज्यों मेहंदी का रंग। जैसे मेहंदी में रंग रहता है लेकिन वह अपने में छिपाये रहती है। पत्ती को पीसने पर ही रंग निकलता है ऐसे ही जब गुरु चाहे तब ही आपका काम (आपकी सेवा) दिखाई पड़े। काम जो करो, उसको दिखाने की कोशिश मत करो। गुरु कब चाहते हैं? जब जरूरत होती है तब वह चाह लेते हैं। जैसे आदमी कहीं काम, सेवा करता रहता है, अपने स्तर से ही प्रचार करता रहता है और अंदर बैठ करके, दरवाजे पर बैठ करके रिश्तेदारों में जाकर के समझाता रहता है और 20-30 आदमीयों को तैयार कर लिया, नामदान लेने के लिए जब लेकर आया तो वह जिले के, गांव की जिम्मेदार जब देखते हैं तो (उस भक्त का परिचय) सबसे करा देते हैं कि देखो ये अकेला इतनी नये आदमियों को लेकर आया, इतने आदमी सुमिरन ध्यान भजन करते हैं, यह देखो, इन्होंने यहां सतसंग कायम कर दिया, तो अपने आप वो भक्त हाईलाइट हो जाता है।
सतगुरु किस चीज से खुश होते हैं?
सतगुरु एक चीज से खुश होते हैं। किससे? अंतर का भाव जग जाए- उनके लिए कुछ करने का, उनके मिशन को पूरा करने का। वह जो चाहते हैं, उसको करने का भाव अगर जाग जाए तो- सन्त न देखे चाल-कुचाल, वह परखे अंतर का हाल। तो अंतर का हाल जब वो परख लेते हैं, जब देख लेते हैं कि यह तो हमसे बड़ा प्रेम करता है, यह आदमी सच्चा और अच्छा है, एक-दो बार जब देख लेते हैं कि ये खरा उतर गया तो उससे प्रेम कर लेता है। ऐसे जब उनसे प्रेम हो जाएगा तब बराबर आपका काम होता रहेगा। यह गृहस्थी की गाड़ी अपने आप चलती रहती है। कोई कहे मैं चला रहा हूं, मैं कर रहा हूं तो यही सबसे बड़ा भ्रम और भूल है। कर्ता करे न कर सके, गुरु करे सो होए।