धर्म-कर्म : समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, जिसने सब कुछ बनाया, जो सबका मालिक, सबका सृजनहार है उसी को भूल जाते हो। जब सतसंग मिलता है तब या दु:ख तकलीफ अपमान गरीबी आती है तब उसकी याद आती है। लेकिन अगर हमेशा उस प्रभु को याद रखो, उसे सामने रखो तो तकलीफ नहीं होने देगा। आप तो ऐसे को याद करते हो, पिता, बेटे, पत्नी, दोस्तों, जाति, बिरादरी, समाज के लोगों को याद करते हो कि यह हमारी मदद कर देंगे। तब वह कहता है, ठीक है, ठीक है, अब इनको कर लेने दो, देख लेने दो। फिर जब हमको याद करेंगे तब हम इनकी मदद करेंगे। अगर प्रभु को बराबर याद करते रहे तो प्रभु हमेशा आपकी मदद करता रहे और आपके सामने रहे। वास्तव में पूछो तो प्रभु को (जीते जी) पाने के लिए ही मां के पेट में हमने-अपने वादा किया था।

प्रभु की दया हो जाती है तो भजन ध्यान साथ में बन जाता है:- 

आप गांव के लोग हो। दिन में कमाते हो और मेहनत ईमानदारी का खाते हो तो आपका मन तो (साधना में) लगेगा ही लगेगा। आप लोगों को (साधना) करने की जरूरत है। सुमिरन ध्यान भजन, पूरा यह तीनों चीज करना। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि सुनाई पड़ जाता है तो भजन करने का ही मन कहता है। लेकिन ध्यान भी लगाना जरूरी है। भजन भी जरुरी है। कभी दया हो जाती है तो भजन ध्यान साथ में बन जाता है। तो करोगे तो आराम मिलेगा।

तड़प जगाने, याद दिलाने, इच्छा पैदा करने के लिए सतसंग सुनाया जाता है:- 

जब जीवात्मा को अपने असली घर, वतन, पीहर, अपने पति, अपने भगवान पिता याद आते हैं तब यह जीवात्मा वहां पहुंचने के लिए, उनको देखने के लिए व्याकुल हो जाती है, तड़प पैदा हो जाती है। सतसंग इसलिए सुनाया जाता है कि मालिक से मिलने के लिए थोड़ी तड़प तो जगे, सुमिरन करने की, ध्यान करने का याद तो आवे, इसीलिए सतसंग सुनाया जाता है। तो इच्छा पैदा होती है तब वह सुमिरन करता है। तो सुमिरन में दुनिया को भूलना रहता है। दुनिया में रहते हैं तो दुनिया जल्दी भूलता नहीं है। जैसे लड़की शादी हो करके आई और वहां पर अपने परिवार में रहती है और अपने पिता को भूल जाती है। लेकिन जब पिता किसी को भेजते हैं कि जाओ, याद दिलाओ, हमारी बेटी को लेकर के आओ। तो जब अपने घर को छोड़ती है तो भी घर याद आता रहता है लेकिन जब आगे बढ़ जाती है तब वह धीरे-धीरे भूल जाती है। ऐसे ही अपने वतन, अपने मालिक को याद करना पड़ता है और दुनिया को थोड़े समय के लिए भूलना पड़ता है। कहते हैं, मर जाना पड़ता है। मर जाना मतलब- शरीर को भी भूल जाना पड़ता है। तो शरीर को इतनी देर के लिए भूल जाओ कि हमारा शरीर भी है। चाहे सुमिरन हो, चाहे ध्यान हो, चाहे भजन हो, इतने समय के लिए आप भूल जाओ। आप अपने पिता, पति परमेश्वर को आप याद करो, जहां आपको जाना है, जहां से आपको वापस नहीं आना है, इस दु:ख के संसार में, दु:ख बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, टेंशन झेलने के लिए यहां आना नहीं है, वहां की याद करो।

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