धर्म-कर्म: इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि ईमानदारी मेहनत जो करता है उसी में बरकत मिलती है, वही तरक्की करता है।आध्यात्मिक विद्या परा विद्या का ज्ञाता होने से भारत विश्व गुरु कहलाता था। जहां यह दुनिया, धरती की विद्या खत्म होती है वहां से आध्यात्मिक विद्या की शुरुआत होती है। वह विद्या तब मिलती है जब कोई जानकार‌ मिलता है। अच्छा मास्टर स्कूल मिलने पर बच्चा पढ़ लिख ले जाता है, ज्ञानी वैज्ञानिक हो जाता है, अच्छे ओहदे पर जाता, कलेक्टर कमिश्नर बन जाता है, देश सेवा करने लगता है। इसी तरह से आध्यात्मिक ज्ञान, आध्यात्मिक विद्या है। उसकी जानकारी होने पर सब कुछ, सारी चीजे संभव हो जाती है। सबसे पहले संस्कृत विद्या ही थी। पूरे विश्व में केवल संस्कृत विद्या का ज्ञान लोगों को रहता था। बाकी भाषा तो बाद में बनी है। जैसे अंग्रेजी इस समय ज्यादातर देशों में चलती है। ऐसे संस्कृत के जानकारों के उपदेश का जो पालन करते थे, वही सुखी कहलाते थे। आध्यात्मिक विद्या का ज्ञान कैसे होगा? इस शरीर से ही होगा। इसी में सारी विद्या सारा ज्ञान, सारा खजाना, इस मनुष्य शरीर में ही सब कुछ भरा हुआ है। इसलिए इस मनुष्य शरीर को देव दुर्लभ शरीर कहा गया है। इसके लिए देवता 24 घंटे प्रार्थना करते रहते हैं कि थोड़े समय के लिए हमको मिल जाता तो हम अपना काम बना लेते हैं। क्योंकि मुक्ति और मोक्ष का रास्ता इसी मनुष्य शरीर के अंदर है। उनके (लिंग शरीर के) अंदर वह रास्ता नहीं है इसलिए इसको वह मांगते रहते हैं। मनुष्य शरीर को परमात्मा भगवान बनाते हैं।

दिव्य दृष्टि खुलने पर कैसा लगता है:-

दो नाक बाहर (शरीर में) और एक नाक अंदर (जीवात्मा में) में है। बाहर के नाक से बाहर की खुशबू लेते हैं और अंदर की नाक से ऊपरी लोकों की खुशबू मिलती है। खुशबू की लहर, तरंगे चलती है। तरह-तरह की खुशबू आती है जब यह जीवात्मा शरीर से निकलती है, ऊपरी लोकों में जाती है। अलग-अलग लोकों की अलग-अलग खुशबू, आंनद, सुंदरता, दृश्य है। उपर बहुत से लोक हैं। जहां आप रहते हो यह तो मृत्यु लोक है। इसी लोक को आप पूरा इन आंखों से नहीं देख पाते हो तो ऊपर का क्या देखोगे? वो तो जब आपकी दिव्य दृष्टि, तीसरी आंख खुलेगी, कर्म के पर्दे जो लगे हैं, हटेंगे, जब आँख खुलेगी, देखोगे तब आनंद मस्ती आएगी, तब पता चलेगा। उपाय बताता हूं आपको खोलने का। बैठो, अब आपको नामदान दूंगा।

साधना में अंतर में दिखने वाले नजारे:-

जब ध्यान लगाओगे, ऊपरी लोकों में जाओगे, जब स्वर्ग, बैकुंठ, देवलोक, सूर्य, चंद्र लोकों में जाओगे, उससे आगे, परे के लोको में जाओगे, वहां का दृश्य नजारा देखोगे, जो यहां कभी नहीं देखे हो। देखो यहां (मृत्युलोक के) पेड़ फलते हैं, नारियल के पेड़ में नारियल, आम में आम, संतरे में संतरा आदि लगता है। तो यह फल अलग है लेकिन वहां पेड़ों में रूहों के, जीवात्माओं के फल है। इतने ऊंचे-ऊंचे पेड़, इतना सुंदर बगीचा। वहां के सूरज चंद्रमा इस तरह से दिखते हैं जैसे जमीन पर बिछे हुए हैं। वह तो आपने देखा ही नहीं तो जब देखोगे इन चीजों को, मणियों-मोतियों के जड़े हुई चबूतरे, सीढ़ियां, निर्मल जल, अमृत का कुंड जब देखोगे तब बर्दाश्त नहीं कर पाओगे। दूसरे को बताने लग जाओगे। और जैसे बताओगे तैसे ही वह बंद कर देगा। फिर वह तो न तो दिखाई पड़ेगा न वो मस्तानी आकाशवाणी आवाज सुनाई पड़ेगी। इसलिए बताना मत किसी को, जो कुछ भी दिखाई सुनाई पड़े, किसी को भी मत बताना। और इन पांच नाम को भी किसी को मत बताना। आप बता दो तो उसका कोई फायदा नहीं होगा और यह नाराज हो गए तो नुकसान हो जाएगा। इसलिए ध्यान रखना। वक़्त के गुरु के मुंह से सुनना जरुरी होता है।

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