लाइफस्टाइल: रक्षाबंधन का त्योहार हिंदुओं का पर्व होता है। जो हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार के दिन सभी बहनें सज-सवरकर अपने भीई को टीका लगाकर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं, जिसके बाद अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, उसके लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं। इस मौके पर हर भाई अपनी बहन की रक्षा करने का उन्हें वचन देता हैं, राखी का ये खूबसूरत त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता हैं। ये प्रेम हर रिश्तों से अनोखा होता है। इस बार राखी का ये त्योहार 19 अगस्त सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। लेकिन, भाई-बहन के प्यार भरे इस बार के रक्षाबंधन त्योहार पर भद्रा का साया बना रहेगा। ये वो भद्रा काल होता है जिसमें हिंदु धर्म में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताते है भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती है राखी, साथ ही इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की क्या हैं पौराणिक कथाएं।

जानिए क्यों नहीं बांधी जाती हैं भद्राकाल में राखी

राखी के इस त्योहार को मनाने के लिए शुभ समय और दिन का महत्वपूर्ण होना जरूरी होता है। इसलिए हिंदु मान्यताओं के अनुसार, रक्षाबंधन के इस त्योहार को श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाने का नियम है। इस बार राखी का ये पर्व 18 अगस्त 2024 की रात 2 बजकर 21 मिनट से भ्रदा काल शुरू हो जाएगा, इस भद्रा काल में शुभ कार्य करने से बचा जाता है, अगर किसी ने अनजाने में भी इस काल में शुभ कार्य कर लिया, तो इसका परिणाम उसके लिए काफी हानिकारक होता है। यहीं कारण है कि राखी बांधने से पहले हर कोई इसका शुभ मुहूर्त जानना जरूरी समझता हैं। राखी के त्योहार पर लगने वाला भद्रा काल 19 अगस्त 2024 की दोपहर 1 बजकर 24 मिनट पर खत्म हो रहा हैं, इस भद्रा काल के समाप्त होने के बाद से ही सभी बहनें अपने भाई को राखी बांध सकेंगी, क्योंकि 1 बजे के बाद से ही राखी बांधने का शुभ मुहूर्त ज्योतिषों के अनुसार बताया जा रहा हैं। साथ ही कई और खास मुहूर्त भी लग रहे हैं, जिसमें शुभ संयोग भी बनते नजर आ रहे हैं। 1 बजकर 24 मिनट के बाद राखी बांधी जाएगी,  जिसके बाद लगने वाला शुभ संयोग में  रवि योग, शोभन योग के संगम के साथ ही सिद्धि योग का भी निर्माण बनता देखा जा रहा है।

ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, रक्षाबंधन के त्योहार पर पड़ने वाला भद्रा काल का वास पाताल लोक में रहने वाला है, ऐसे समय में इस काल को कुछ ज्यादा अशुभ नहीं माना जा रहा हैं, क्योंकि इसके पीछे एक कारण हैं और वो है भद्रा के पाताल या फिर स्वर्ग लोक में होने पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन फिर भी इस काल में शुभ कार्य करने से काफी बचा जाता है, यहीं कारण है कि इस भद्राकाल के समाप्त होने के बाद से ही इस बार राखी बांधने का शुभ समय माना जा रहा हैं।

राखी के धागे का क्या है महत्व

रक्षाबंधन का त्योहार हर बहनों के लिए बड़ा ही प्रिय पर्व होता है, राखी का ये अनमोल सा धामा देखने में तो सिर्फ एक धागा है, मगर इसका महत्व भाई-बहन के रिश्ते को बहुत मजबूत बनाता है, बहन द्वारा बांधी गई राखी का ये प्यार भरा धामा भाई को हर मुसीबत से बचाता हैं, ये धागा जो रक्षाबंधन का त्योहार आते ही मार्केट में भी महंगे दामों में बिकने लगता है। इन दामों का मोल कितना भी हो, मगर हर बहन अपने भाई के लिए बड़े ही प्यार के साथ राखियां चुनकर खरीदती हैं। इस त्योहार के लिए मार्केट भी सजधजकर तैयार हो जाता है, जहां रंग बिरंगी राखियां की खरीदारी के साथ-साथ दुकानों पर मिठाईंया के लिए लोगों की लंबी-लंबी लाइने भी देखने को मिलती है, ये नजारा बड़ा ही चहल-पहल सा होता हैं। जिसके चलते हर तरफ राखी त्योहार की रौनक नजर आती है।

जानिए राखी त्योहार की कैसे हुईं शुरुआत

रक्षाबंधन के इस त्योहार की शुरुआत को लेकर कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं हैं। जिनको लेकर कई प्रचलित कहानियां भी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु द्रौपदी को अपनी बहन मानते थे, एक बार भगवान विष्णु की उंगली अचानक कट जाती है। ये देखकर द्रौपदी रोने लगती है और खून रोकने के लिए अपनी साड़ी के आंचल का एक टुकड़ा चीरकर उनकी चोट वाली उंगली पर बांध देती है। इस भाव को देख भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए, और इसी कारण उन्होंने हमेशा द्रौपदी की रक्षा करने का उन्हें वचन दिया, ये वचन उन्होंने हस्तिनापुर के शाही दरबार में अपमानित हो रही द्रौपदी की लाज बचाकर पूरा भी किया। ऐसा माना जाता है कि, तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता हैं।

बता दें, रक्षाबंधन त्योहार को मनाने के पीछे इन कथाओं में एक कथा ये भी है, कि महाभारत में एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण भगवान से पूछा कि मैं किसी भी संकटों को आसानी से पार कर सकूं, इसके लिए मुझे कोई उपाय बताइए, जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधे, तब जाकर संकटों से पार हो सकोगे। ये सुनकर युधिष्ठिर ने अपनी पूरी सेना को रक्षा सूत्र बांधा था, जिसके चलते युद्ध के दौरान युधिष्ठिर की सेना को विजयी मिली थी। इसी के चलते रक्षा सूत्र को एक बड़ा महत्व दिया गया है।

देवी लक्ष्मी और राजा बाली की कहानी

रक्षाबंधन से जुड़ी कई पौराणिक कहानियों में राजा बलि की भी कहानी जानी जाती है, जो  भगवान विष्णु के परम भक्त थे, इसलिए भगवान विष्णु ने राजा बलि की रक्षा करने का उन्हें वचन दिया था, इस वचन को निभाने के खातिर बलि की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु बलि के द्वारपाल बनकर रहने लगे थे। जिसके चलते माता देवी लक्ष्मी वैकुंठ में अकेले रह रही थीं। ऐसे में अपने पति को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी ने एक साधारण स्त्री का रूप धारण किया और राजा बाली के पास आश्रय लेने गईं। भक्त बालि ने उन्हें अपने महल में रहने की जगह दे दी। फिर क्या उसके घर में देवी लक्ष्मी के आने से सुख-समृद्धी की बढ़ोतरी होने लगी, जिसके बाद सावन मास में पड़ने वाले पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर एक धागा बांधा और उसके सुखी जीवन की कामना की। जिससे खुश होकर बाली ने माता लक्ष्मी से मनचाही कामना मांगने को कहा, ये मौका देख माता ने द्वारपाल बने भगवान विष्णु की ओर इशारा कर दिया और अपने लक्ष्मी रूप में सामने आ गईं। जिसके बाद भगवान विष्णु ने भी अपना असली धारण कर लिया। वहीं राजा बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ वैकुंठ जाने के लिए कहा। तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। ये थी रक्षाबंधन त्योहार के पीछे की पौराणिक कथाएं, जिसकी मान्यताओं के कारण हिंदु धर्म में ये त्योहार बड़े ही धूम-धाम और हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता हैं।

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