धर्म-कर्म: गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने और गौ हत्या पर फांसी की सजा का प्रावधान बनाने की प्रार्थना करने वाले, गौ सेवक, गाय ही नहीं सभी पशु-पक्षियों की हत्या को रोकने के लिए दृढ़ संकल्पित, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन के बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, हमेशा गाय रही हैं। देखो कृष्ण भगवान ने गाय चराया। गौ की सेवा किया। गौ पालते थे। गौपालक इनको कहां गया, गोपाल इनका नाम पड़ा। आज जैसे कृष्ण भक्त पहले नहीं थे। ये कृष्ण की पूजा भी करते हैं, कृष्ण को मानते भी हैं, जन्माष्टमी भी मनाते हैं और गौ का मांस खाते हैं। राम नाम पर मरने-मिटने के लिए भी तैयार हो जाते हैं लेकिन एक बार गऊ का मांस जब टेस्ट में आ जाता है तब कहते हैं वही लाओ, वही बीफ लाओ। ऐसे लोग पहले नहीं थे।
उद्धार कैसे मिलेगा इसकी सही जानकारी लोगों को कराना जरुरी है
कितनी जन्माष्टमी आपने निकाल दिया लेकिन कृष्ण को समझने की कभी कोशिश किया? समझने की जरूरत है। वह भी हमारे आपके जैसे मनुष्य शरीर में ही थे, दाढ़ी बाल था, खाते-पीते थे, वह भी उम्रदराज होकर, बुड्ढे होकर के दुनिया से गए थे। ज्यादातर उनका बाल रूप का ही फोटो, मूर्तियां मिलती हैं। लेकिन तारीफ करने वालों ने उनकी अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर के ऐसे पेश किया कि जिनके मन में उनके प्रति श्रद्धा विश्वास नहीं था, उनके मन में भी पैदा हो गया। अब उनके नाम पर रासलीला करो, मूर्ति मंदिर बनाओ, पूजा-पाठ करो, जन्मदिन मनाओ आदि, इसी में आदमी अपना जीवन का कीमती समय निकाल दे रहा है। समझो, इस म्रत्युलोक में मनुष्य शरीर में आने वाले सभी को जाना पड़ा, ये मकान खाली करना पड़ा।
कौरव जो कहते सुई की नोक के बराबर जमीन नहीं देंगे, सोचो कुछ लेकर गए
कृष्ण को भी शरीर छोड़ना पड़ा था। हमेशा कृष्ण के साथ रहने वाले, जिनको कृष्ण ने उपदेश किया, समझाया, बताया उन पांडवों को भी जाना पड़ा। ग्यारह अक्षौहिणी सेना वाले, बाहुबली, धन-दौलत परिवार से सम्पन्न कौरवों को भी जाना पड़ा। कर्मों के अनुसार उनको भी सजा मिली। उनके शरीर को भी सजा मिली, मरने के बाद भी शरीर सड़ता रहा। इतने लोग मरे थे कि गिद्ध कौवा भी इतना नहीं खा पाते थे। सोचो, क्या आप इस संसार में हमेशा रहोगे? हमारा भी समय पूरा होगा, जाना पड़ेगा। जैसे अहंकार में सुई के नोक के बराबर जमीन देने के लिए नहीं तैयार होने वाले कौरव चले गये तो सोचो वो महल अटारी खजाना कुछ लेकर के गए? कुछ नहीं लेकर के गए। सब यही छोड़कर जाना पड़ा।
दु:खी लोगों को सुख शांति का रास्ता बताना जरूरी है
आदमी यही सोच लेता है कि खाओ पियो मौज करो, जन्माष्टमी, रामनवमी मना लो, मूर्तियों को प्रसाद चढ़ा दो, मंदिर तीर्थों में चले जाओ तो उद्धार कल्याण हो जाएगा तो लोगों को जानकारी कराना जरूरी होता है। भारत देश सन्त महात्माओं का देश रहा है, इतिहास सन्तों से भरा पड़ा हुआ है। उनकी जीवन लीला को, बातों को सुख शांति का रास्ता पाने के लिए दु:खी लोगों को बताना जरूरी है। कृष्ण जी ने गीता में चौथे स्कंध के 34वें श्लोक में कहा, समरथ सन्त सतगुरु के बिना जीवात्मा का उद्धार नहीं हो सकता।