धर्म-कर्म: रूहानी दौलत लुटाने वाले, उपर वाले का इस वक़्त का पैगाम सुनाने वाले, रूहानी इबादत कर गरीब परवरदीगार को खुश कर अंदर में हाजिर नाजिर करने का इल्म देने वाले, इस दौर के कामिल मुर्शिद, आला फ़क़ीर, पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन के बाबा उमाकान्त जी महाराज BabaUmakant Ji Maharaj ने बताया कि रूहानी इबादत किसको कहते हैं? रूह यानी जीवात्मा। इबादत कहते हैं पूजा पाठ साधना को। एक होती है जिस्मानी इबादत और एक होती है रूहानी इबादत। फकीरों ने कहा है- जिस्मानी इबादत से रूहानी इबादत की लज्जत नहीं मिल सकती है। अपने लोगों ने अभी रूहानी इबादत किया, अपनी रूह से मालिक को मिलने का प्रयास कोशिश किया। रूह को निजात दिलाने के लिए यह करना पड़ता है। रूह जब कुल मालिक हक में समा जाती है, जब यह जयगुरुदेव लोक सतलोक पहुंच जाती है तब मीरा ने कहा- तब मेरी पीर बुझानी, तब यह दुनिया का, जीवात्मा का दर्द खत्म होता नहीं तो यह हमेशा दु:खी रहती है।

रूह का दुःख दूर करने लिए जिस्मानी नहीं रूहानी इबादत करो:-

सन्त महात्मा फ़क़ीर जब धरती पर आए तो रूहों की गति चाल को देखा जो इस मनुष्य शरीर में बंद होकर दु:ख पा रही है। तब उन्होंने कहा- सुरत तू महादु:खी हम जानी। हमको मालूम है कि तू बहुत दु:खी है लेकिन शरीर से इन्द्रियों के घाट पर कर रहे पूजा पाठ से तेरा कल्याण होने वाला नहीं है। इसलिए जब तक रूहानी इबादत, आंतरिक पूजा नही होगी तब तक तुझको मुक्ति-मोक्ष नहीं मिल सकता है। उन्होंने दु:ख समझाने के साथ-साथ उसे दूर करने का तरीका भी बताया। जैसे हमको-आपको गुरु महाराज ने बताया। जब सुरत को शब्द के साथ जोड़ोगे, जीवात्मा शब्द को पकड़ कर सतलोक जाएगी, जब नामी के पास पहुंचकर नाम में समाएगी तब इसको सुकून शांति मिलेगी। नहीं तो यह जन्मती-मरती रहेगी, इस दु:ख के संसार में बार-बार आकर के दु:ख झेलती रहेगी। जिस्मानी इबादत से शरीर को लाभ मिलता है रूह जीवात्मा को नहीं। जैसे उपवास, रोजा, व्रत करने से, कम खाने से शरीर को लाभ मिलता है लेकिन रूह को इससे कोई फायदा नहीं होता। रुह को फायदा तो तब मिलता है जब रूहानी इबादत किया जाय, जो अभी अपने लोगों ने किया है।

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न जानकारी में लोग मृगा की तरह इधर-उधर भटक रहे, सुकून-शांति नहीं मिल रही:-

बाहरी पूजा पाठ, जो भी मंदिरों में जाते हैं, जिनको यह जानकारी इल्म नहीं मिली है, जो आप लोगों को मिली है, हमको गुरु महाराज ने दया करके दिया है, जिनको यह नहीं मालूम है वह लोग मंदिरों में, तीर्थ में जाते हैं। लोगों में धार्मिक भावना तो है लेकिन उनको यह नहीं मालूम है कि असल और नकल क्या है। लोग नकल में ही, नकली दुनिया में इधर-उधर फंसे हुए हैं, सुकून-शांति, मुक्ति-मोक्ष चाहते हैं, भगवान से मिलना भी चाहते हैं लेकिन – कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे वन माहि। ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखत नाही।। जैसे न जानकारी में मृगा कस्तूरी की तलाश में वन में भटकता रहता है, ऐसे ही इसी घट में, शरीर में राम-कृष्ण, देवी-देवता, समुद्र, हीरा-मोती हैं। जिनको नहीं जानकारी रहती है वह बेचारे बाहर घूमते तलाश में रह जाते हैं। (ऐसे गुरु को खोजना चाहिए जो उसका सच्चा रास्ता बता दे।

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