धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कबीर साहब ने कहा, गुरु भक्ति करो, गुरु आदेश का पालन करो क्योंकि मनुष्य शरीर दुबारा जल्दी मिलेगा नहीं। जन्मने-मरने की पीड़ा न हो और आदमी भव सागर से पार हो जाए, निकल जाये, उसका रास्ता इस मनुष्य शरीर में ही है। लेकिन जब यह चीज आदमी के समझ में नहीं आएगी या सतसंग बार-बार नहीं मिलेगा, सतसंग के वचनों की चोट जब नहीं पड़ेगी तो वह वाक्य, वह चीजें भूल जाएंगी। इसलिए साप्ताहिक सतसंग, त्रयोदशी और पूर्णिमा के मासिक सतसंग को स्थापित किया गया है। इसमें आप आते रहोगे तो फिर आप उस सतगुरु की दी हुई नाम डोर को पकड़ लोगे, नाम की कमाई होने लगेगी। सतगुरु ने तो भव सागर से पार होने का जहाज लगा ही दिया है। इतना बड़ा जहाज है कि संसार के सभी आदमी उस पर बैठ जाए तो भी जगह कुछ न कुछ जगह खाली ही रहेगी। तो नाव जहाज को खेने वाले चलाने वाले कौन है? कर्णधार, सतगुरु। अभी शरीर भी साथ दे रहा है यानी मौसम अनुकूल है। मौक़ा अच्छा है, निकल चलो। और अगर बुढ़ापा आई हाथ पैर ढीला हुआ तो फिर वह मौसम प्रतिकूल हो जाएगा और पार नहीं हो पाओगे। फिर इसी में डूबोगे उतराआओगे। इसलिए नाम डोर को पकड़ो, नाम की कमाई करो और निकल चलो। जोगिया रंग चलो देशवा वीराना है। यह वीराना (दूसरे का देश) है।
नामदानी सतसंगियों को चेतने की जरूरत है
जो गुरु महाराज के नामदानी हो या उनके बाद के नामदानी हो, आपको चेतन की जरूरत है कि इस समय जो भी आप षट कर्म, पूजा-पाठ, तीर्थ-व्रत, यज्ञ-अनुष्ठान करते हो, यह आपको बंधन में और बांधेगा। उदहारण के लिए मान लो कोई शालिग्राम की मूर्ति रख लिया या कोई मंदिर बना लिया। अब उसकी साफ-सफाई, फूल-पत्ती लाना जरूरी हो गया। जिस दिन फूल, अक्षत, दूध नहीं मिला, सेवा नहीं कर सकते हो। तो यह सब बंधन हो गया। इन सब बंधन से क्या होगा? आपको अपने शरीर को इन सब में लगाए रहना पड़ेगा। तो जीवात्मा पर चढ़े चार शरीर के बंधन- स्थूल शरीर, लिंग शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर, इन बंधनों से आप मुक्त नहीं हो सकते हो। इसीलिए तो ऐसा रास्ता बता दिया कि किसी चीज की कोई जरूरत ही नहीं है। जो यह कहता भी है कि यह देवता भगवान, त्रिदेव मुक्ति-मोक्ष दे देंगे, इन्होंने इनका उद्धार किया, वो खुद बंधन में है। ये सब बंधन में है। यह सब प्रलय में, महा प्रलय में समाप्त, खत्म होने वाले हैं, सिमट जाते हैं। जब उस मालिक की मौज सिमटाव की होती है तो यह सब सिमट जाते हैं। और पुण्य क्षीणे, मृत लोके। जब पुण्य क्षीण हो जाता है तो देवलोक की आत्माओं को इसी पांच तत्वों के मनुष्य शरीर, जिसमें यह जीवात्मा बंद है, तो इसी में आना पड़ता है। तो वो कहां से बंधन से मुक्त है? अरे बंधन से मुक्त तो तब होगा, जब स्वर्ग बैकुंठ के ऊपर, पार ब्रह्म के ऊपर, जब यह जीवात्मा, जीव जाएगा तब तो बंधन से तब मुक्त होगा।
जब सब लोग अपने धर्म-कर्म को समझ जाएंगे तब सुख-शांति मिल जाएगी और मुक्ति-मोक्ष का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा
एक काम यही हो जाए कि धरा पर ही सतयुग उतर आए। उसी को अगर आप ले आओ तो सारी व्यवस्था सही हो जाएगी फिर और कोई व्यवस्था करने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ेगी। फिर जब सब लोग अपने-अपने स्थान के धर्म-कर्म को समझ जायेंगे, कि हमको वैसा कर्म करना चाहिए तब सबको सुख-शांति मिल जाएगी, मुक्ति-मोक्ष का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा तो वही एक काम कर लो। लोगों को सतयुग के लायक बना लो। तो सतयुग तो अपना असर धरती पर जताने के लिए इंतजार कर रहा है। इसलिए लोगों को शाकाहारी नशा मुक्त बनाने का प्रयास बराबर करते रहो। जब देश में गौ हत्या बंद हो जाएगी तो समझ लेना सतयुग की किरण धरती पर दिखाई पड़ने लग गई, अब सतयुग का विस्तार बढ़ जाएगा। सतयुगी गुण लोगों में अब आने लगेंगे, जीव हत्या, गौ हत्या बंद होगी। पूरे विश्व में जीव हत्या बंद हो जाएगी। कैसे भी बंद हो, कुदरत बंद करावे, शासन-प्रशासन बंद करावे, परिस्थितियां ऐसी आ जाए कि बंद हो जाएगा। कैसे बंद होता है? जब मुर्गियों की बीमारी चली तब लोग पूछते थे- मुर्गा खाओगे? कहता- राम राम बोलो, भगवान का नाम लो। तौबा तौबा करो, मुर्गा का नाम क्यों लेते हो? जब बीमारी फैली, पता चला मर जाएंगे, तब समझो मुर्गा बंद किए। लोगों को सुधारने के बहुत हाथ, तरीके, चाबुक हैं, उसके पास, जिसने ये दुनिया बनाया, वो इसको बिगाड़ना भी जानता है। जब उसका चाबुक चलता है तो आदमी का बस नहीं चलता। वो सब करता है। आगे बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। भविष्यवाणी तो हम नहीं करते हैं, लेकिन आगाह करने में, बताने में हम संकोच नहीं करते हैं। रातों-रात बहुत बड़ा परिवर्तन दिखाई पड़ेगा। हर जगह, हर लोगों में परिवर्तन दिखेगा। वो समय ऐसा आएगा। आपके स्थान पर, आज पूर्णिमा के दिन हम बता करके जा रहे हैं। काम करने वाले का नाम तो होता ही है, उसका साथ देने वाले का ज्यादा नाम हो जाता है। हनुमान गढ़ी पर ज्यादा प्रसाद चढ़ता है। राम से अधिक राम का दासा। जहां राम की मूर्ति है तहां हनुमान को जरूर लोग बिठाते हैं, इनके बगैर काम नहीं होगा। लक्ष्मण को, सीता को भले भूल जाए लेकिन लोग हनुमान को नहीं भूलते हैं। क्यों? क्योंकि उनका साथ दिए थे। गोवर्धन कृष्ण ने उठाया, गोपी-ग्वालों ने लकड़ी लगाईं। आज हर जगह, हर रासलीला में गोपी-गवाले जुड़े हुए हैं। साथ में लगने वाले का भी नाम, कीर्ति, पूजा होने लगती है, यही बात आप समझ लो।