जीवन शैली : प्रेम क्या है? क्या प्रेम केवल एक लड़का और लड़की के बीच में ही हो सकता है, या फिर पति और पत्नी के बीच के संबंध को ही प्रेम कहते हैं ? नहीं, प्रेम शब्द इतना आसान भी नहीं कि हम इसे किसी भी सामाजिक रिश्ते से जोड़कर उसका अर्थ समझ सकें प्रेम का दायरा सीमित नहीं है यह असीमित है।
प्रेम तो हर तरफ है प्रेम का कोई एक रूप नहीं है ।
कभी हम इसे माता पिता के रूप में देखते हैं ,तो कभी एक दोस्त के रूप में प्रेम से हमारा साक्षात्कार होता है। एक विद्यार्थी और शिक्षक के बीच भी प्रेम का संबंध होता है जो भले ही दिखाई ना दे परंतु उसे महसूस किया जा सकता है ।
अनेक लोगों को तो अपने सपने अपने काम से प्यार होता है और वह उसे पूरा करने के लिए पूरी मेहनत भी करते हैं। ऐसे ही प्रेम के अनेक रूप हैं जिनमें से एक रूप समलैंगिकता भी है।लेकिन कोई भी प्रेम के इस रूप को अपनाना नहीं चाहता अपनाना तो दूर, कोई इसके बारे में बात तक नहीं करना चाहता।
लेकिन क्यों ? सिर्फ इसलिए कि यह समाज द्वारा बनाए गए नियमों को तोड़कर अपने समान्तर लिंग के व्यक्ति से प्यार करने लगते हैं। जिस प्रकार एक ही परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहते हुए भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं, उनकी पसंद नापसंद स्वभाव सोच अलग होते हुए भी हम उन्हें स्वीकार करते हैं उन्हें अपनाते हैं क्योंकि यह उनका व्यक्तिगत निर्णय है कि वह क्या पसंद करते हैं और क्या नहीं।
ठीक उसी प्रकार यह हमारा व्यक्तिगत निर्णय है कि हम किसके साथ अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। किसके साथ रहकर हमें प्रेम की अनुभूति होती है। अपने समांतर लिंग के व्यक्ति के साथ या अपने से भिन्न लिंग के व्यक्ति के साथ और किसी को अधिकार नहीं कि वह हमारे निर्णय में हस्तक्षेप करें या प्रश्न उठाएं ।
जहां तक की हमारे माता – पिता को भी नहीं। हमारे माता पिता हमारे परिवार को चाहिए की वो हमारा साथ दें ना की हमे दोशी ठहरा कर हमें ये महसूस करवाएं की हमे कमी है।
कई वेस्टर्न कंट्रीज ने इस बात को समझा और इसे अपना भी लिया है परंतु भारतीय संस्कृति के लोग इसे विदेशी संस्कृति बता कर इससे दूर रहना पसंद करते हैं| इनका मानना है कि इन सब से उनकी भारतीय संस्कृति को क्षति पहुंचेगी इसलिए इसे अपनाना उचित नहीं । कई रूढ़िवादी लोग तो इसे बीमारी तक मानते हैं उनका मानना है कि संबंध केवल अपोजिट जेंडर के व्यक्ति के साथ ही हो सकता है और अगर सामान जेंडर के लोग संबंध बनाते हैं तो वह मानसिक रोगी हैं उन्हें इलाज की आवश्यकता है ।
“लेसबियन” या “गे” होना एक आम बात है क्योंकि यह हमारा निर्णय है कि हम किसे अपने जीवनसाथी के रूप में देखना चाहते हैं । पर हमारा समाज प्रेम के इस रूप को अपनाना नहीं चाहता इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें से एक होमोफोबिया भी है ।
होमोफोबिया एक तरह का डर है जो विशेषकर होमोसेक्शुअल या बायसेक्शुअल लोगों को देखकर पैदा होता है और हमारे समाज के ज्यादा तर लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं।इलाज की जरूरत होमोसेक्सुअल लोगों को नहीं बल्कि समाज के छोटी सोच वाले लोगों को है।
समाज का एक हिस्सा होने के नाते हमारा यह कर्तव्य है कि जिस प्रकार हमने प्रेम के अनेक रूप को अपनाया हैं उसी प्रकार इस रूप को भी अपनाएं और समलैंगिक लोगों को खुलकर जीने का मौका दें ।
लेखिका – कीर्ति गुप्ता