उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मेंअखिलेश यादव को करारी हार मिली है। इतने हाथ पैर मारने के बावजूद अखिलेश इस बार इस चुनाव को जीतने से चुक गए । इनशॉट हम कह सकते हैं कि योगी मोदी का ऐसा मैजिक चला की अखिलेश की साइकिल की हवा निकल गई।

अब सोचने वाली बात यह है कि ,बीते वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि महंगाई ,बेरोजगारी , किसानों के आंदोलन जैसे ज्वलंत मुद्दे उठाने वाली सपा सरकार को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा ।

  • विपक्ष की भूमिका निभाने में‌ रहे नाकामियाब :-

1) पार्टी के कुछ नेताओं और राजनीति विशेषज्ञ्यों की माने तो अखिलेश की हार के पीछे सबसे बड़ा हाथ अगर किसी का है तो वह स्वयम अखिलेश का है । सभी का यही कहना है की , चुनाव हारने के पीछे सबसे पहली गलती थी उनका विपक्ष के तौर पर ठीक तरह से काम ना करना । राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो बीते 5 सालों में अखिलेश यादव ने विपक्ष के तौर पर अपनी भूमिका को सही रूप से नहीं निभाया है । जिस वक्त उन्हें जनता के बीच होना चाहिए था उस वक्त वह करोना के डर से घर के कोने में दुबके बैठे थे। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे पंचवर्षीय में जनता से अपना संपर्क बनाए रखा । जिससे ये बात तो साफ तौर पर स्पष्ट होती है की अखिलेश यादव यूपी में केवल मुख्यमंत्री बनकर रहना चाहते हैं। विपक्ष के नेता के रूप में काम करना उन्हें पसंद नहीं आ रहा है।

  • निष्क्रिय राजनीति :-

2) चुनाव में अखिलेश यादव की हार की दूसरी सबसे बड़ी वजह रही निष्क्रियता । साल 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बनकर लोकसभा पहुंच गए। उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधान सभा या विधान परिषद में प्रतिपक्ष का नेता बनना मुनासिब नहीं समझा। साढ़े चार साल राजनीति से गायब रहने के बाद अखिलेश यादव आखरी कुछ महीनों में सक्रिय हुए। हम कह सकते हैं की जिस तरह एक स्कूल का बच्चा पूरे साल पढ़ाई से मन चुराने के बाद इक्जाम से एक महीना पहले पढ़ाई शुरू कर क्लास में फस्ट आने का ख्वाब देखता है ठीक उसी प्रकार अखिलेश यादव ने भी 5 साल का सारा सेलेबर्स 5 महीने मे पूरा कर चुनाव जीतने का ख्वाब देख लिया जिसके कारण चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

  • परिवार का बिखराव :-

3) राजनीतिक विशेषज्ञ्यों की माने तो अखिलेश की हार के पीछे की एक बड़ी वजह उनके अपने परिवार में आपसी मतभेद भी हैं। पहले तो अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव ही आपस में भिड़ा करते थे । लेकिन इस बार ये मतभेद उनकी अपनी भाभी अपर्णा से भी हो गया और अपर्णा अपने परिवार के विरुद्ध जाकर भाजपा का दामन थाम लिया। अब जो इंसान अपने रिश्तों को सम्भालकर नहीं रख सकता वो प्रदेश कैसे संभालेगा ये सवाल उठना तो लाज़मी है।

  • संघ ने निभाई बड़ी भूमिका :-

4) चुनाव में अखिलेश की हार की चौथी सबसे बड़ी वजह रही उनके आस पास रहने वाले लोग और भारतीय जनता पार्टी मातृ संगठन आरएसएस। अखिलेश के आस पास रहने वाले लोगों को जनता से ज्यादा सोशल मीडिया से प्यार है। अखिलेश यादव के पास ना तो बीजेपी के तरह आरएसएस जैसी संगठनात्मक शक्ति है और ना ही उनकी सेना में एसे लोग हैं जिन्होंने जनता के बीच जाकर अपनी पार्टी का प्रचार प्रसार किया हो । हलांकि छोटे दलों के साथ गठबंधन कर अखिलेश यादव ने संगठन की कमजोरी को दूर करने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी के खिलाफ पैदा असंतोष को वे वोटों में बदलने में फेल हो गए। “डूर टू डोर कैंपेन के दौरान संघ कार्यकर्ताओं ने हर घर पर दस्तक दी, और योगी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ गिनाए, और यही बीजेपी के पक्ष में काम कर गया।” जिसके कारण अखिलेश को मूकी खानी पड़ी |

  • हिंदुत्व की राजनीति :-

5) अब अंत में हम बात करेंगे हिंदुत्व की राजनीति की, हिंदुत्व की राजनीति पांचवी और सबसे बड़ी वजह है जिसने अखिलेश की तमाम योजनाओं को धराशाही कर दिया, जिस कारण अखिलेश को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस वक्त बीजेपी हिंदुत्व राजनीति कर रही है जिसका कोई भी तोड़ विपक्ष के पास नहीं है । अखिलेश यादव समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने बेरोजगारी, कोविड के दौरान हुई मौतों और अव्यवस्खा, बेरोजगारी, नौकरियां जाने, लॉकडाउन जैसे अहम मुद्दों को लोगों के सामने रखा, लेकिन उनमें से कोई भी हिंदुत्व की प्रभावशाली रणनीति के सामने टिक नहीं पाए। इसी चुनाव प्रचार के दौरान हिजाब का विवाद भी सामने आया, जिसने हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा दिया, और अखिलेश समेत सभी विपक्षियों की हार सुनिश्चित कर दी।

(ब्यूरो रिपोर्ट जी. के. न्यूज़)

लेखिका – कीर्ति गुप्ता

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