लखनऊ: कर्मों का विधान क्या है, कैसे बना, किसने कब बनाया, इसके तहत कौन आता है, कैसे अच्छा-बुरा फल मिलता है और कैसे इससे बचकर जीते जी मुक्ति मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, इतनी गूढ़ बात को आम जन को सरल शब्दों में बताने समझाने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने  हापुड़ (उ. प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देखो यह दुनिया जब बनाई गई, इसका संविधान बनाया गया। जैसे भारत देश, आपके घर, समाज, बिरादरी, परिवार का संविधान नियम है ऐसे ही पूरे मृत्युलोक का संविधान बनाया गया।

चारों वेदों सब लिखा है सयंम नियम खानपान आचार व्यवहार कैसा रखना चाहिए

चार वेद बनाए गए। किस तरह से रहेंगे, कैसे खाएंगे, कैसे एक दूसरे से व्यवहार करेंगे, आचार विचार कैसा रखेंगे आदि नियम उनमें लिखे हैं। संस्कृत भाषा में उस समय लिखा गया था। ब्रह्मा को सुनाई पड़ा था। जिनको निरंजन भगवान, काल भगवान कहा गया उनको जीवात्माएं तो मिल गई थी, रचना तो उन्होंने कर दिया लेकिन (शुरू में) सब जीवों की दिव्य दृष्टि खुली थी। सब अपने घर सतलोक जयगुरुदेव धाम आते-जाते थे। जब मनुष्य शरीर का समय पूरा हो जाता था तो प्रभु के पास पहुंच जाते थे, जहां से भेजे गए हैं सतलोक जयगुरुदेव धाम जयगुरुदेव लोक पहुंच जाते थे।

जीवात्मा ओं को यहां रोकने के लिए काल ने कर्मों का विधान बनाया और पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा फल देने के नियम बनाकर रोक लिया

उनको (निरंजन काल भगवान को) फिक्र हुई (कि ऐसे तो सब चले जायेंगे और हमारा राज्य सूना हो जाएगा)। अब नियम संविधान बनाना पड़ेगा। (स्वयं) संविधान बना नहीं सकते थे, इतनी काबिलियत नहीं थी। तो उन्होंने ब्रह्म से प्रार्थना किया कि आप हमारी मदद कीजिए। तो उन्होंने आवाजें वहां से सुनाई। शब्द के द्वारा ही सब बना हुआ है। जैसे हमारे आपके मुंह से आवाज निकलती है उसी प्रकार उसी से सब बना हुआ, पूरी दुनिया उसी पर टिकी हुई है। यह देवी देवता ब्रह्म पारब्रह्म सब उसी पर टिके हुए हैं। शब्द से ही सबकी उत्पत्ति हुई है। शब्द को पकड़कर के ही जीव वहां जा सकता है। तो आवाज लगाई, शब्द के द्वारा भेजा। ब्रह्मा को सुनाई पड़ा। उन्होंने पूरा याद कर लिया।

काल भगवान ने ऋषि-मुनियों को आदेश दिया कि मनुष्यों को कर्मों के विधान के बारे में बता दो

काल भगवान ने कहा जो ऋषि मुनि मनुष्य शरीर में हैं, धरती पर तपस्या कर रहे हैं, ध्यान लगा रहे हैं, उनको सुना दो। उनको सुना दिया। ऋषि-मुनियों को आदेश दिया कि अब इसको प्रसारित कर दो, लोगों को बता दो तो बता दिया कि यह पाप है, यह पुण्य है, ऐसा रहन-सहन बनाओ, नियम-सयंम का पालन करो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो सजा मिल जाएगी।

कर्मों के अनुसार कीड़े, मकोड़े, सांप, बिच्छू, पेड़-पौधों में जीवात्मा को होना पड़ता है बंद

मौसम के बदलाव से, खाने-पीने के बदपरहेजी से हुए रोग दवा से ठीक हो जाते हैं लेकिन जो कर्म रोग होते हैं, जान-अनजान में बने बुरे कर्मों की सजा मिलती है। जैसे तीखी मिर्च जान में खाओ या अनजान में तीखा लगेगा ही। ऐसे ही कर्म फल भोगना पड़ेगा। अच्छे कर्म का मीठा और बुरे कर्म का फल तीखा होता है, सजा भोगनी पड़ती है, नर्कों चौरासी में जाना पड़ता है, कीड़ा मकोड़ा सांप गोजर बिच्छू के शरीर में जीवात्मा को बंद होना पड़ता है। पेड़ बनाकर के खड़े कर दिए गए, सैकड़ों वर्षों तक खड़े रहो, आगे-पीछे नहीं जा सकते हो, इस तरह से सजा मिल जाती है।

कर्मों के विधान को जानने समझने के लिए बराबर सतसंग सुनते रहो

कर्मों का विधान जब बना तो उसके अंतर्गत सब आ गए। आप लोग बहुत सी चीजों को नहीं समझ पाते हो कि अच्छा बुरा क्या है। पूरा जानने के लिए बराबर सतसंग सुनते रहना चाहिए। आजकल तो तमाम साधन जैसे मोबाइल यूट्यूब व्हाट्सएप आदि हैं जिनसे आप तमाम सतसंग देख सुन पढ़ सकते हो। अपना समय इधर-उधर गंदी तस्वीरों को देखने में, गंदी बातों को पढ़ने में लगाते हो, सतसंग की बातों को पढ़ो, सुनो समझो तो आप समझ जाओगे कि किस तरह से, कहां हमको सुख मिलेगा। सुख देने वाली यह जितनी भी चीजें दिखाई पड़ती हैं, यह दुख देने वाली ही है।

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