1975 Emergency: आज ही के दिन आज से 48 साल पहले देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था। साल 1975 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के एक फैसले के कारण भारत की गतिविधियां ठप हो गई थीं। बता दें आपातकाल 18 महीनों से अधिक समय तक लागू रहा। इंदिरा गांधी के फैसले के बाद राष्ट्रपति ने 25 जून, 1975 को आपातकाल लागू होने के फैसले पर साइन किए थे। बता दें इस फैसले के बाद हिंदुस्तान की पत्रकारिता, सार्वजनिक रूप से सरकार की आलोचना जैसी चीजों पर नकेल कस दी गई।
आपातकाल की खास बातें
आज आपातकाल की 48वीं बरसी है। इसको लेकर तत्कालीन पत्रकार कुलदीप नैयर की किताब में बेहद दिलचस्प बातों का जिक्र है। इंदिरा गांधी के फैसले के बाद 25 जून, 1975 को राष्ट्रपति की तरफ से संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इमरजेंसी की घोषणा की गई। फखरूद्दीन अली अहमद के राष्ट्रपति रहते आपातकाल की घोषणा के बाद इंदिरा का बयान बहुत चर्चा में रहता है।
बता दें उस समय के अखबारों और मीडिया रिपोर्टस में इस बात का जिक्र है कि इंदिरा ने कहा कि इमरजेंसी लगाने के बाद एक कुत्ता तक नहीं भौंका। विपक्षी राजनेताओं समेत करीब एक लाख से अधिक लोग जेलों में डाले गए। इमरजेंसी के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दो दर्जन से अधिक संगठनों को देशविरोधी बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया गया। बता दें आपातकाल 23 जनवरी 1977 तक यानी 18 महीने और 28 दिनों तक प्रभावी रहा। इमरजेंसी 40 साल बाद भी क्यों प्रासंगिक है? इसका जवाब है बेलगाम करप्शन।
दरअसल, जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के दौर में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जिस पर अपेक्षित कार्रवाई नहीं हुई। इसी के बाद जनता और सरकार का टकराव शुरू हुआ। कुलदीप नैय्यर बताते हैं कि आपातकाल से करीब तीन साल पहले 1972 में तत्कालीन उड़ीसा में हुए उपचुनाव में नंदिनी निर्वाचित हुईं। लाखों रुपये खर्च किए गए। गांधीवादी जेपी ने इंदिरा के सामने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। टालमटोल करते हुए इंदिरा ने जेपी को जवाब दिया कि कांग्रेस के पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि पार्टी का दफ्तर ठीक से चलाया जा सके। इसी के बाद जयप्रकाश नारायण ने कहा, जनता जवाबदेही चाहती है, लेकिन सरकार की नीयत बेदाग साबित होने की नहीं।
वहीं 1972 की घटना के बाद कहना गलत नहीं होगा कि आपातकाल की दूसरी बुनियाद 12 जून, 1975 को रखी गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 55 साल के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा को अपने फैसले से अपदस्थ करने का फरमान सुनाया। फैसले में इंदिरा को छह साल के लिए किसी भी निर्वाचित पद से वंचित कर दिया गया था। आपातकाल से पहले हाईकोर्ट के फैसले में इंदिरा को दो भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया गया।