धर्म-कर्म: तन मन धन को परोपकार में लगाने की प्रेरणा देने वाले, पाप से बचाने वाले, गृहस्थ आश्रम में प्रभु प्राप्ति का रास्ता बताने वाले, अपने असली घर सतलोक जयगुरुदेव धाम पहुंचाने वाले इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि मिट्टी-पत्थर के घर को जिसको आप अपना घर कहते हो देखो यह घर सच पूछो तो अपना नहीं है।

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मौत के बाद इस घर में और कोई रहेगा। जो बाप-दादा के बनाए हुए घर में रहते हो, बाप-दादा भी यही कहते थे- यह घर मेरा, यह घर मेरा। घर उनका नहीं हुआ तो आपका कैसे होगा? बाप-दादा का छोड़ा सामान उपयोग में लेते हो। तो यह घर, सामान, दुनिया की चीजें आपकी नहीं है, सब यहीं छूट जाएंगी। यहां की कोई भी चीजें अपने न काम आने वाली है न अपनी है। तो अपना घर कहां है? जहां जाने के बाद फिर इस मृत्युलोक, दुःख के संसार में दुःख झेलने के लिए आना न पड़े, वो है अपना घर। तो जब तक यह शरीर चलता है तब तक इस आत्मा को अपने घर पहुंचाया जा सकता है, इसका आना-जाना वहां किया जा सकता है और जब मौत हो जाए, शरीर छूट जाए तब इस आत्मा को उस प्रभु में विलीन किया जा सकता है, उसकी गोदी में हमेशा-हमेशा के लिए बैठाया जा सकता है।

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