धर्म कर्म: महाराज नेनिजधाम वासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के मासिक त्रियोदशी भंडारा कार्यक्रम में उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी वक़्त के सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी  लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इस समय पर गुरु का याद आना बडा मुकिल है तो रास्ता, तरीका निकाला जात है। जब आप त्रयोदशी पर कार्यक्रम, ध्यान, भजन, सुमिरन करते हो तो गुरु याद आते हैं। पहले लोगों का खान पान चरित्र ठीक था तब इतने प्रचार-प्रसार की, लोगों को शाकाहारी नशामुक्त बनाने की जरूरत नहीं थी। जब प्रभावशाली लोग सन्तमत में जुड़े तक लोगों पर प्रभाव पड़ा, लोग विवश हो गए सन्तमत में जुड़ने के लिए। जैसे जब क्षत्राणी रानी मीरा अन्दर की बात बताने, गुरु की महिमा गाने लगी तब लोग मजबूर हो गए। गुरु नानक जी ने भी उसी रास्ते को बढ़ाया जो कबीर जी ने बताया था। लेकिन अब लोग असली अंदर की आध्यात्मिक चीज छोड़ कर मत चलाने लग गए। किताबों, जमीन, जायदाद, मठ, बाहरी जड़ पूजा-पाठ में फंसने लग गए। वाल्मीकी जी ने मरा-मरा नहीं जपा था बल्कि बल्कि बाहरमुखी की बजाय अन्दरमुखी साधना की थी तब वो ब्रह्मा के समान हो गए थे, ब्रह्मा की ताकत उनमें आ गई थी।

कोई खाली हाथ नहीं जाएगा

ये बाबा जयगुरुदेव जी का का दरबार लगा है। यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाएगा। जो जैसी श्रद्धा भाव से (बताई गई साधना) करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। सन्तों को कर्म काटने का तरीका मालूम होता है। त्रियोदशी व पूर्णिमा को आश्रम पर आते रहो। अन्य कार्यक्रमों में भी आते-जाते रहो। इससे जान-अनजान में बने कर्म कटते हैं।

बच्चों पर ध्यान दो

मांसाहारी, नशे की गोलियों की आदतों से नौजवानों को पहले न सुनी गई असाध्य बीमारीयां आ रही। नशे की वजह से मातृ भक्ति, पितृ भक्ति, देश भक्ति, गुरु भक्ति कुछ नहीं हो पा रही है। जैसे कांटे का पौधा लगते ही उसे तुरंत उखाड़ दोगे तो उससे छुट्टी पा गए। बाद में ज्यादा तकलीफ होगी। बच्चे, बच्चियां कम कपड़े पहन कर बजार, बाहर जा रहे, बिगड़ रहे, ध्यान दो। गलत संगत मिल जाती है। जवानी में नहीं पता चलता, लेकिन बाद में नशे की वजह से आई बीमारीयां उभरती है।

मन को थोड़ा रस देने की बजाय तुरंत मारो

प्रचार प्रसार से जान-अनजान में बने कर्म कटते हैं। जयगुरुदेव मत को लोग मिटा नहीं पाएंगे। ये बढ़ेगा, बहुत बढ़ेगा। लोग ताज्जुब करेंगे कि जो काम के सौ सालों में नहीं हुआ वो इतना जल्दी इतना ज्यादा कैसे बढ़ा। मन जहाँ (विषयों की तरफ) जाए उधर देखे ही नहीं तो मन उधर नहीं जाएगा। तुरंत मन को मारो नहीं तो बढ़ता चला जाता है। थोड़ा रस मिलेगा तो आगे और बढ़ता चला जाता है। आग को घी से नहीं बुझा सकते है।

 

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