1. यहाँ (साधना स्थल पर) अगर नहीं बैठोगे तो गुरु की दया से महरूम रह जाओगे
जब बंधन हो जाता है, जैसे यहाँ होता है; सुमिरन-ध्यान-भजन में जो बैठाया जाता है, यहाँ आओगे तो कुछ ना कुछ करोगे ही, घर पर नहीं हो पाता है। देखो! हमारी तबियत खराब हो गई, तो इन दिनों में मैं नहीं आ पाया, इतनी देर वहाँ नहीं बैठ पाता हूँ, बैठता तो हूँ लेकिन इतनी देर नहीं बैठ पाता हूँ। यहाँ आऊँगा थोड़ी और तबियत ठीक होगी, यहाँ आना शुरु करूँगा, यहाँ भी मैं आ करके बैठूँगा। तो बैठने से उतनी देर के लिए बंधन हो जाता है। अब आप कोई ये सोचो कि हम मैनेजर हैं, हम वकील हैं, हम डॉक्टर हैं और हम जो हैं अच्छी जगह पर हैं, लोग हमको सम्मान देते हैं, हमारी इज्जत करते हैं, हमको काम मिला हुआ है, उसी में अगर फँसे रहोगे और साधकों के बीच में अगर नहीं आओगे, कुर्सी अगर आप नहीं छोड़ोगे और उन्हीं लोगों के बीच में रहोगे, जो पोस्ट पर हो, डॉक्टर हो, वकील हो जो भी यहाँ पर या अन्य आश्रमों पर रहते हो, आपको इस चीज को समझने की जरूरत है कि अगर यहाँ नहीं आओगे, अगर यहाँ नहीं बैठोगे तो गुरु की दया से महरूम हो जाओगे, यह दया नहीं मिलेगी। उस काम में तो दया मिलेगी, जिसमें लगे रहोगे उसमें तो दया मिलेगी, उसमें तो कामयाबी दिखाई पड़ेगी लेकिन उसमें केवल नाम होगा आपका, आपका कोई काम ऐसा नहीं होगा कि जिससे आत्मा का कल्याण हो जाए, इसीलिए यहाँ आना चाहिए।
2. जो सेवा करते हो, आपको भी समय निकाल लेना चाहिए
आप कहीं भी किसी भी विभाग में सेवा करते हो, यह समय (साधना का समय) आपको खाली रखना चाहिए। मान लो आपकी सुरक्षा में ड्यूटी है या भंडारे में ड्यूटी है या गौशाला में ड्यूटी है कि जहाँ पर आप सेवा करते हो, जहाँ आप गऊओं को खिलाते हो, उनकी देख-रेख करते हो, भंडारे में सेवा की जरूरत है जहाँ प्रेमियों अभी आप जाओगे जैसे ये भजनानंदी जाएँगे, दो रोटी मिल जाएगी, खा लेंगे फिर ये भजन में लग जाएँगे, सो भी जाएंँगे तो सुबह चार बजे आँख खुलेगी और फिर आ करके यहाँ बैठ जाएँगे। तो जो सेवा करते हो आपको भी समय निकाल लेना चाहिए, ड्यूटी बाँट लेनी चाहिए, उस काम को जल्दी निपटा लेना चाहिए, यह समय हमारा दोनों समय (सुबह और शाम) का खाली रहे। और इसी समय अगर काम होता है, जैसे भंडारे में सुबह जलपान की व्यवस्था आपकी होती है, नाश्ता बनता है, शाम को भोजन बनता है, सुबह गऊओं की सेवा होती है तो दो हिस्सों में बाँट लो; कह दो हम थोड़ा ज्यादा मेहनत कर देंगे भाई जाओ तुम ध्यान-भजन कर आओ और एक टाइम वो चले आएँ और दूसरे टाइम दूसरे चले आएँ। मौका मिल जाए सबको। हमारी कुटिया में झाड़ू लगाने के लिए दो जने आते हैं, तो हमने देखा कि जब झाड़ू लग गया; सब हो गया तो वो वहीं बैठ गए। वहीं बैठ के ध्यान-भजन कर लिया। वहीं सुरक्षा वाले मान लो बैठे हैं, तो एक भजन में चला गया और एक वहीं बैठा है; देख रहा है, दरवाजा बंद कर दिया, कोई आया तो खोल दिया जरूरत पड़ी तो। इस तरह से आप सेट करो। देखो! सौ बातों की एक बात समझो; चाहे आप आश्रम पर रहते हो, चाहे संगत के लोग हो, जहाँ कहीं भी आप लोग रहते हो, आप प्रेमियों जो दूर से कल झंडा फहराने के लिए यहाँ पर आए हो, आप जाना तो लोगों को बताना कि सतसंगों में जाय करो, ध्यान-भजन जहाँ होता है वहाँ जाया करो। और आप खुद भी समय निकाल करके जाया करो, क्योंकि समय किसी का इंतजार नहीं करता है। समय यह निकल जाएगा आपका तो समय फिर ऐसा नहीं आएगा, बताइएगा कि अब भजन करने का तुम्हारा समय है तो उसमें से समय निकाला करो।
3. जहाँ ध्यान भजन प्रेमी करते हैं, वहाँ शब्द रूप में गुरु महाराज मौजूद रहते हैं
मुख्य बात आप समझो कि वहाँ गुरु की दया रहती है या यूँ समझ लो कि वहाँ गुरु शब्द रूप में विराजमान रहते हैं; जहाँ ध्यान-भजन प्रेमी करते हैं, जहाँ सतसंग होता है वहाँ शब्द रूप में गुरु विराजमान रहते हैं। बहुत से लोगों को अनुभव इस बात का हो जाता है कि गुरु महाराज देखो मानो ये बैठे हुए हैं, यह हमको मानो देख रहे हैं। बाहर से भी इसकी कल्पना हो जाती है, बाहर से भी अनुभूति हो जाती है, अंदर में आँख बंद करते ही मालूम पड़ा कि बैठे हैं, आँख खोलोगे तो नहीं दिखाई पड़ेंगे लेकिन गुरु की दया उस समय होती है। फिर वो रास्ता खोलते हैं कि ठीक है तुझको विश्वास हो गया तू यहाँ बैठ करके करता रह, अंदर मेरा साक्षात भी दर्शन हो जाएगा, यह विश्वास दिला देते हैं। किस पर विश्वास दिलाते हैं –
“निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहे कपट छल छिद्र ना भावा”।।
जिनके अंदर निर्मलता होती है, सच्चा हृदय होता है, गुरु को पाने की लगन होती है, प्रभु को पाने की तड़प होती है, उनसे मिलने के आँसू बहते हैं उनको गुरु सब दिखा देते हैं, बता देते हैं, अनुभव करा देते हैं।