धर्म कर्म: जीव के गलत कर्मों की काल द्वारा दी जाने वाली सजा से बचने का उपाय पहले ही बताने वाले, इस वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन के बाबा उमाकान्त जी महाराज ने रक्षाबंधन कार्यक्रम में अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ज्यादातर पाप तन से ही होता है और पाप कटते हैं तो तन की सेवा से, नहीं तो पाप की सजा भोगनी ही पड़ती है। जब तक पुण्य ज्यादा इकट्ठा रहते हैं तब तक उसमें से खर्च होता रहता है। और जहां पुण्य खत्म हुआ तहां तकलीफ आनी शुरू हो जाती है, कर्मों की सजा मिलने लग जाती है।

आगे बढ़कर होड़ लगाकर सेवा करनी चाहिए

कोई भी संगत की सेवा हो, शरीर की सेवा में पीछे नहीं रहना चाहिए। आगे बढ़कर के होड़ लगाकर के सेवा करनी चाहिए। रोज कर्म करते हो, रोज कर्म बनते हैं, तो रोज इस तरह के कुछ नियम बन जाए कि हमको अपने तन से कुछ न कुछ सेवा करनी है, परमार्थी काम करना है, दूसरे के लिए करना है, जिनसे हमारा कोई स्वार्थ न हो, लोगों को बताना, समझना, नामदान दिलाना है, भजन, सुमिरन, ध्यान करना, कराना है। अपने परिवार वालों के लिए तो आदमी सब कुछ करता है लेकिन दूसरों के लिए करना परमार्थ कहलाता है। तो अपने तन को परमार्थ में लगाओ।

बेईमानी करने में भी बिजनेस मैन नहीं चूक रहे हैं

आप धन के कमाने में भी नहीं देखते हो कि कहां से ला रहा है, कैसे ला रहा है, हराम का है या मेहनत करके ला रहा हूं, या मार-काट के ला रहा हूं या रिश्वत लेकर के ला रहा हूं, या दिल दु:खा करके ला रहा हूं, किस तरह से ला रहा हूं। सतसंगी जो हो जाता है तो तो कहता है कि गुरु महाराज बचत, रक्षा करेंगे। अब हमको क्या (डर) है। मोहर, ठप्पा लग गया है कि यह तो जयगुरुदेव वाला है। एक बार तो (लोग) विश्वास करेंगे ही करेंगे। तो मिला(वट कर लो)। एक किलो दूध का डेढ़ किलो बना दो, काली मिर्च में पपीता का बीज मिला दो, मिठाई में साबूदाना उबाल करके मिला करके डाल देते हैं, पता चलता है? नहीं चलता। कहते हैं एक बार तो जयगुरुदेव नाम से कमा लो। लेकिन ये नहीं मालूम है – साजन से चोरी नाहीं चली। वह तो सब देख रहा है। सजा देगा ही देगा। काल के देश में हो, काल की कमाई कर रहे हो, काल के धन को बेईमानी से इकट्ठा कर रहे हो तो वो छोड़ेगा नहीं। उस समय पर गुरु भी आंख बंद कर लेंगे कि इसे समझाया, बताया गया तो भी नहीं माने।

धन सेवा कहां कैसे करें

तो भाई चलो ऐसा ऐसा हो ही गया तब क्या करें? आप अगर अपने रिश्तेदार, मित्रों को खिला दो तो जब उनके यहां जाओगे तो आपको भी खाने को मिलेगा। लेकिन अगर आप ऐसे को खिला दोगे जिससे आपको खाने की उम्मीद न हो, उसमें लगा दो, खर्च कर दो। संगत का बहुतेरा काम होता रहता है, भंडारे चल रहे हैं, (लोगों को भोजन) बांटते रहते हो, उसी में लगा दो। पर्चा छपवा करके बांट दो, आदमी पढ़ेगा। कितने बुरे आदमी सुधर गए। गुरु महाराज ने बहुतों को सुधार दिया। उनके जाने के बाद भी बहुत लोग सुधर गए। पर्चा पढ़ेगा, सुनेगा। कब किसके मन में क्या बात आ जाए, सुधर जाएगा। तो इन सब काम में खर्च कर देना चाहिए। नाम की कमाई में भी कुछ खर्च कर देना चाहिए। मन से भी सेवा करनी चाहिए। ये करके देखो, और भजन में बैठो, फिर देखो। अब जो नये लोग आये हुए हैं, उन्हें नामदान दूंगा।

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