लखनऊ। बात कोई पांच दशक पुरानी है,उन दिनों पुरवा क्षेत्र खास प्रकार के वातावरण से सराबोर था ऐसा मैं नहीं कहता बुजुर्ग बतातें है कांग्रेसी विधायक के एक छत्र राज्य में आमजनमानस त्राहिमाम कर रहा था।उन्हीं दिनों राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की शाखा से निकला एक नौजवान जो आज उत्त्तर प्रदेश की राजनीति में सर्वोच्च पद पर है।   गरीब कमजोर की आवाज बनकर उभर रहा था। यह नौजवान अपने ग्रह क्षेत्र हिलौली से ब्लाक प्रमुख का जीता हुआ चुनाव हार गया था।या यह कहिए सत्ता की सहयोगी मौरावां पुलिस के एक खूंख्वार दरोगा ने हरवा दिया था।लोग बतातें हैं तब प्रमुख के चुनाव में प्रधानगणों को ही वोट देने का अधिकार था। समय बदला उसी ब्लाक की प्रमुखी पुत्र ने निर्विरोध जीतकर न सिर्फ पिता के अपमान का बदला  लिया बल्कि यह संदेश भी दिया कि सब दिन एक समान नहीं होते।समय का पहिया घूमता है और घूमता रहेगा।आज बुजुर्ग हो चुके पिता के ह्रदय को टटोले औऱ अनुभव बयाँ करें तो निश्चित ही सत्ता के सर्वोच्च पद से अधिक सुख उन्हें इस समय मिल रहा होगा। इस आनन्द को हम शब्दों की सीमा में बांधने की कोशिश में बार बार असफल हो रहें हैं।

हम बात सात दशक से अधिक उम्र पार कर चुके अध्यक्ष विधानसभा ह्र्दय नारायण दीक्षित की कर रहें हैं यादों के झरोखे से हमने जो कुछ जुटाया उसके कुछ अंश शब्दों की माला में गूंथने की कोशिश की है। छात्र जीवन से ही अत्याचार के विरूद्ध आवाज बुलंद करते करते गरीबों, कमजोरों के लिए तारणहार बन गए दीक्षित जी संघ की शाखा से निकली वह चिंगारी थी जिसे आग का शोला बनते देर नहीं लगी। आंदोलनों का असर यह  हुआ कि तत्कालीन राजनेताओं की नींद हराम हो गई उन्नाव जनपद में श्री दीक्षित उभरता हुआ चेहरा थे। बताया जाता है कि हिलौली में ब्लाक प्रमुख का चुनाव होना था कुछ मित्रों ने चुनाव लड़ने की सलाह दे दी माहौल अच्छा होने के बावजूद श्री दीक्षित तुच्छ राजनीति से अनजान थे उन्होंने जीत से अधिक मत जुटा लिए थे हर तरफ परिणाम चर्चा में था मगर तत्कालीन विधायक बाबू गया सिंह की कुटिल चाल में वह छले गये। चुनाव के एन वक्त पर प्रधानों को एक सरकारी भवन में नजरबंद कर दिया गया था इससे भी आगे यह कि ज्यादातर वोटर अंधे हो गये और उनका वोट उनके सहायकों ने डाला था नतीजा श्री दीक्षित चुनाव हार गये ,और कम्यूनिस्ट पार्टी के तत्कालीन कार्यकर्ता राम सिंह चुनाव जीत गये थे।

तत्कालीन दरोगा रामपाल यादव और बाबू गया सिंह की गुण्डागर्दी के आगे लोकतंत्र चिन्धी चिन्धी हो गया। अर्श से फर्श तक एक ही आवाज थी चुनाव हरा दिया गया। नतीजे से मिली असहनीय पीड़ा को हम समझ सकते हैं प्रियजनों से मिल रहे उत्साह और ढांढस के बावजूद श्री दीक्षित का मन आहत था मगर उन्होंने रास्ता नहीं बदला समय का पहिया घूमा श्री दीक्षित विधायक बने और आतंक की इति हुई लगातार चार बार की विधायकी मंत्रिमण्डल में संसदीय कार्यमंत्री का ओहदा मिलने के बाद भी प्रमुखी की जबरन हार अक्सर भाषणों का हिस्सा होती थी शायद उम्मीद से अधिक ऊंचाई मिल जाने के बाद भी श्री दीक्षित का मन हमेशा व्यथित ही रहा।

समय बदला जिस हिलौली के ब्लाक प्रमुख का पद श्री दीक्षित से सत्ता की गुंडई ने जबरन छीन लिया था उसी हिलौली में पुत्र दिलीप दीक्षित ने निर्विरोध चुनाव जीतकर पिता के अपमान का बदला ले लिया। परिणाम से श्री दीक्षित के प्रियजनों को जो प्रशन्नता हो रही होगी उससे भी कई गुना श्री दीक्षित का मन भी प्रफुल्लित हो रहा होगा इस प्रशन्नता को हमने शब्द देने की कोशिश की है यद्यपि मेरे लेखन,आंदोलन व सामाजिक कार्यो के प्रेरणाश्रोत वही हैं।

 

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