लखनऊ। आज देशभर में ईद-अल-अजहा का त्योहार मनाया जा रहा है। बता दें ईद-उल फित्र के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। इस मौके पर मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। फिर बकरे या दूसरे जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। दरअसल बकरीद के त्योहार को कुर्बानी के दिन के रूप में भी याद किया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान के दो महीने बाद कुर्बानी का त्योहार बकरीद आता है। आइए जानें बकरीद पर कुर्बानी का क्या इतिहास है।
कुर्बानी का सिलसिला कहां से हुआ शुरू ?
इस्लाम धर्म की मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद हुए। और उनके वक्त में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया, जो आज भी परंपराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं। हालांकि पैगंबर मोहम्मद से पहले भी कई पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार किया। लेकिन हजरत इब्राहिम के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ।
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जानवरों की कुर्बानी की पूरी कहानी
कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे, और उनके बेटे का नाम इस्माइल था। हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे। एक दिन इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान दो। इस्लामिक जानकार कहते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया। हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी। लेकिन इस्माइल की जगह एक दुंबा वहां प्रकट हो गया। जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनका बेटा इस्माइल सही-सलामत खड़ा था। कहा जाता है कि ये एक इम्तेहान था और उसमें हजरत इब्राहिम कामयाब हो गए। इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई।https://gknewslive.com