लखनऊ: आध्यात्मिक शिक्षा के साथ साथ भौतिक सामाजिक आदि सभी तरह कि शिक्षा देने वाले, अपने प्रेमियों में संकल्प शक्ति भर कर दुनिया जिन्हें चमत्कार कहती है वो कौतुक नित्य प्राय: कर दिखाने वाले, जीते जी परमात्मा से मिलाने वाले, नामदान देने के इस समय धरती पर एकमात्र अधिकारी, वक़्त के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दयालु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिये व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सदेश में बताया कि आप अपने भजनानंदी (भजन करने वालों की) टीम क्यों नहीं बनाते हो? जिसके अंदर इच्छा जग रही है उसको बुझने क्यों देते हो? उसके अंदर इच्छा और पैदा करो। भजन ध्यान करो। इकट्ठा करके बैठने लग जाओ तो देखा-देखी गांव के और भी नामदानी बैठने लग जाएंगे। संकल्प क्यों नहीं बनाते हो कि हम अकेले ही बहुत कुछ कर सकते हैं। देखो! हनुमान ने संकल्प ही तो बनाया, गए और रावण को धूल चटा दिया। रावण घबरा गया, अंदर ही अंदर एकदम से भय पैदा हो गया। एक बंदर पूरे पेड़ को उठा-उठा करके, उखाड़ करके फेंकता चला जा रहा है। कहां से इसके अंदर इतनी ताकत आ गई? जब उसका कोई भी उपाय न चला तब उसने क्या भेजा? ब्रह्मास्त्र। ब्रह्मास्त्र यानी जो रजोगुण सतोगुण तमोगुण को बस में रखता है, जो इंद्रियों का दमन करता है, जो रोग से बचाता है, जिसको ब्रह्मास्त्र, जनेऊ यज्ञोपवीत कहते हो, उसको भेजा। कहा जाओ इसमें उस बन्दर को बांध कर लाओ। इस धागे की क्या औकात? पकड़ कर ऐसे ही तोड़ दो लेकिन ब्रह्मास्त्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए उन्होंने उसको नहीं तोड़ा।

संकल्प ही तो बनाया था अकेले हनुमान ने, आप भी बनाओ

तो उन्होंने तो संकल्प बनाया था- राम काज कीन्हे बिना मोहि कहां विश्राम। राम का कार्य पूरा किए बिना मुझे विश्राम नहीं है चाहे कुछ भी हो जाए। पहले तो रावण ने कहा मार दो इसको फिर लोगों ने कहा नीति विरोध न मारीये दूता, यह आपको बताने आया है, कहने आया है कि मत टकराओ नहीं तो राम आपको परास्त कर देंगे। महापुरुष पहले चेतावनी देते हैं, जब नहीं मानते तब संहार करवाते हैं। तब कहा इसकी पूंछ में आग लगा दो। पूंछ मक्खी मच्छर से अन्य चीजों से शरीर की रक्षा करती है, रक्षक होती है। जब पूंछ हीन हो जाएगा तो जैसे मूंछ की कीमत होती है, पहले मूंछ का एक बाल निकाल कर के गिरवी रखकर के लोग लाख-पचास हजार ले आते थे। लोगों को विश्वास था की इज्जत को बनाए रखने के लिए हमारा पैसा हड़प नहीं करेगा, समय पर दे जाएगा। जैसे मूंछ की कीमत वैसे ही पूंछ की कीमत होती है। तो जब बिना पूंछ के बंदर जायेगा, राम देखेंगे तब उनकी इज्जत खत्म हो जाएगी, निराश हो जाएंगे, हम लड़ाई नहीं लड़ेंगे। जब पूंछ में कपड़ा लपेटने लगे तो शरीर बडा कर देने, भारी कर देने वाली गरीमा शक्ति के द्वारा उन्होंने पूंछ को बढ़ा दिया। अणुमा, महिमा, गरिमा, लघुमा, वशीकरण आदि यह सब सिद्धियां है। तनिक नहीं घबराए की पूंछ में आग लगाए जाने को है। हनुमान को तो धुन सवार था कि जिस काम के लिए मुझे भेजा है मुझे वह पूरा करना है। राम ने साढ़े बारह वर्षों तक गुरु के शरण में जो सिद्धि प्राप्त की थी वह उन्होंने हनुमान में भर दिया लेकिन अगर मनोबल हनुमान का डाउन होता, वह लंका न गए होते तो कैसे इस तरह से उनका नाम होता? इसलिए आदमी को अच्छे काम में हमेशा अपना मनोबल ऊंचा रखना चाहिए। मन के हारे हार है मन के जीते जीत, पारब्रह्म को पाइए मन ही के परतीत। जिनको मिला, मन ने साथ दिया, मन से संकल्प बनाया कि हमको परमात्मा को प्राप्त करना है। तो आप प्रचार में लगो और यहाँ आने का फल अपने स्थान से ही ले लो।

अनुभव करके सामाजिक काम करना चाहिए

बिज़नस व्यापार वोही करो जिसमें आपकी आमदनी हो सके। एजेंट तो घूमते रहते हैं, सामान बिकवाने वाले, वो खरीदवा देंगे, ये चीज दिलवा देंगे, तुम्हारा लाइसेंस बनवा देंगे, तुम दुकान खोल दो लेकिन अनुभव नहीं है तो व्यापार मत करना। अनुभव करके करो, जो सामयिक चीज है, उसका काम करो। समय के हिसाब से अगर पैसा कमाना है तो। अगर आपके पास पैसा बहुत ज्यादा है, फंसा देना है कि पड़ा रहेगा, नहीं चलेगा तो दूसरे धंधे से हमको काम चलाना है, आमदनी दूसरे धंधे से हो रही है तो उनके लिए तो हम नहीं कह सकते। लेकिन आपको कमाना खाना है गृहस्थी चलानी है, बिजनेस व्यापार में तरक्की करना है तो उस हिसाब से सीख कर के धंधा कर लो तब उसमें कामयाब रहोगे। मुनाफा भी अगर कम हो जाए तो भी बिजनेस में घाटा माना जाता है। और पार्टनरशिप साझे में कोई भी काम मत करना। साझे का काम अच्छा नहीं होता है। अगर दोनों बहुत अच्छे, ईमानदार मेहनती भी है तो भी किसी न किसी दिन किसी बात पर मनमुटाव हो जाता है और फिर झगड़ा होता ही है। एक पुश्त मान लो चला भी ले गए तो जब दुकान पर कारोबार पर एक-दूसरे के बच्चे बैठने लग गए तो फिर मनमुटाव कहीं न कहीं हो ही जाता है। इसलिए जो भी करो स्वतंत्र रूप से करो। अकेले करो, पूंजी नहीं है तो छोटे पैमाने से शुरू करो। फिर उसी को बढ़ाते जाओ। जो भी मुनाफा हो, आधा खर्च करो, आधा बिजनेस में लगाओ। जब पैसा आने लगता है तब लोग खर्चा बढ़ा देते हैं, जीवन के स्तर को ऊंचा उठा देते हैं, बिजनेस में घाटा, ठप हो जाता है, आमदनी कम होती है तो हाय-हत्या मच जाती है। इसलिए उसी में से बचाने की कोशिश करो। जो रहन-सहन है उसी में रहो। आगे मत बढाने कि सोचो कि पैसा आ रहा है लाओ चार लाख की गाड़ी में चलते थे अब हम चालीस लाख की गाड़ी में चलेगे। तो पैसा तो उसी में से खर्च होगा। थोड़ा सा इस चीज का ध्यान रखो।

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