Jitiya Vrat 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस व्रत को मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र और अच्छी जिंदगी के लिए रखती हैं. जीवित्पुत्रिका का यह व्रत तीन दिनों के लिए रखा जाता है. पहले दिन महिलाएं नहाय खाय करती हैं, दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत आज रखा जा रहा है.
जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर यानी आज सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा. इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. आप इस अबूझ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन विधि ….
यह व्रत तीन दिन किया जाता है, तीनो दिन व्रत की विधि अलग-अलग होती हैं.
नहाई खाई: यह दिन जीवित्पुत्रिका व्रत का पहला दिन कहलाता है, इस दिन से व्रत शुरू होता हैं. इस दिन महिलायें नहाने के बाद एक बार भोजन लेती हैं. फिर दिन भर कुछ नहीं खाती.
खुर जितिया: यह जीवित्पुत्रिका व्रत का दूसरा दिन होता हैं, इस दिन महिलायें निर्जला व्रत करती हैं. यह दिन विशेष होता हैं.
पारण: यह जीवित्पुत्रिका व्रत का अंतिम दिन होता हैं, इस दिन कई लोग बहुत सी चीज़े खाते हैं, लेकिन खासतौर पर इस दिन झोर भात, नोनी का साग एवम मडुआ की रोटी अथवा मरुवा की रोटी दिन के पहले भोजन में ली जाती हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का महत्त्व …
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर से जीवित कर दिया. बाद में उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. कहते हैं कि तभी से अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगी.
कथा के मुताबिक, एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं. दोनों की आपस में खूब बनती थी. चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का एक हिस्सा जरूर रखती थीं. एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं. उन्हें देखकर चील का भी मन व्रत करने का कर गया. फिर चील ने सारा वाक्या सियारिन को जाकर सुनाया. तब दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया का व्रत रखेंगी.