धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गोविंद (प्रभु) और गुरु में फर्क नहीं है। गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय। गुरु ने ही तो पहचान कराया कि यह भगवान है। अभी विष्णु भगवान आपके सामने खड़े हो जाए तो आप उन पर जल्दी विश्वास नहीं करोगे। लेकिन जो आपके दु:ख, तकलीफ, मुसीबत में मददगार है, जिस पर आपको विश्वास हो गया है, वह कह दे कि यह विष्णु भगवान है तो विश्वास हो जायेगा। नहीं तो कहोगे यह किसी नौटंकी कंपनी का आदमी होगा या सिनेमा का कोई हीरो होगा जो विष्णु भगवान बनाकर के आ गया, जल्दी विश्वास नहीं होगा। गुरु (प्रभु के ही) तदरुप होते हैं। इसलिए कहा गया सतपुरुष की आरसी, संतन की ही देह, लखना चाहो अलख को, इन्हीं में लख ले। उनमें प्रभु की पूरी ताकत होती है। तो गुरु जब जीवों को पकड़ते हैं तो काल के हाथ से सुरत यानी जीवात्मा की डोर को अपने हाथ में ले लेते हैं और जब तक उसका उद्धार नहीं होता है तब तक उसकी संभाल के लिए सतलोक से त्रिकुटी धाम तक बराबर आते रहते हैं। कुछ लोग आप इसमें (आए हुए भक्तगणों में) ऐसे भी हो जो सतसंग में आने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन उधर से डोर को खींचा, किसी के माध्यम से प्रेरणा हुई और आप सतसंग में आ गए। यह संभाल होती है। और जिसको कह कर जाते हैं कि ये संभाल करेगा, गुरु उसके (उत्तराधिकारी के) पास पहुंचा देते हैं। जो उनकी बातों को पकड़ लेते हैं, उनकी संभाल होती रहती है नहीं तो इधर-उधर भटकते रहते हैं क्योंकि कर्म कटते नहीं है बल्कि और कर्म आते रहते हैं। जैसे कहा गया है- तीर्थ गए चार जन्म, चित चंचल मन चोर, एको कर्म काटे नहीं, लाद लिया दस-बीस और। ऐसे होता है। दस-बीस कर्म और लद जाते हैं। जैसे सतसंग में लोग आते हैं, कर्म तो कटते हैं, हाथ, पैर से कर्म कटते हैं लेकिन कहीं नजर टेढ़ी हो गई, रुपया पैसा पर, किसी की औरत लड़की पर कहीं नीयत खराब हो गई तो दस-बीस कर्म और लद जाते हैं। इसलिए सतसंगी परमार्थी को बहुत होशियार रहना चाहिए।

ऊपरी रील, कर्मों की वजह से बीच-बीच में बंद हो जाती है

जब आप ध्यान लगाओगे, अंदर में देखोगे, ऊपरी लोकों में, स्वर्ग, बैकुंठ, देवलोक, सूर्य, चंद्रलोक में जाओगे और वहां का दृश्य नजरा जब देखोगे तो खुश हो जाओगे और खुश होकर के दूसरों को बताने लगोगे। जैसे ही बताओगे, वह बंद कर देगा। तो उस चीज को सुनने-देखने के लिए बड़ी तड़प पैदा होती है। मीरा रानी थी और रैदास गुरु जब मिले, उन्होंने युक्ति बताया तब अंतर में मीरा ने देखा। और कभी जब देखना बंद हुआ तो (विरह, तड़प के साथ) गलियों में घूमती थी क्योंकि यह रील बराबर नहीं चलती है। यह बीच-बीच में कर्मों की वजह से बंद हो जाती है क्योंकि जान-अनजान में कर्म बन जाते हैं। और इस समय पर तो बुरे कर्म की तरफ मन ज्यादा जाता है। इसी तरह का समाज, खान-पान हो गया है। साथ का असर होता है। जैसा साथ करते हैं, उसका असर पड़ जाता है तो बीच-बीच में (अंदर साधना में दिव्य दिखाई-सुनाई देना) रुक जाता है। तो मीरा का रुक जाता था तब वह गली-गली घूमती थी। कोई भी वैद्य मिल जाए, प्रीतम की याद सता रही है, तीर की तरह से साल रही है, उस प्रीतम का कोई दर्शन करा दे। अन्न-पानी कुछ नहीं भाता। रात दिना मोहि नींद न आवे। चिल्लाती थी, ऐसे तड़प जागती है। इसलिए आपको जो कुछ भी अंदर साधना में दिखाई सुनाई पड़े, बताना मत किसी को। अगर आप लगातार (साधना) करोगे तो आप कोई सौतेले बेटे तो हो नहीं। बड़े-बड़े कार्यक्रम होते हैं, लाखों की भीड़ होती है। वहां पर आप आओ, आपको लोग मिलेंगे। जो साधना करते हैं, बताएंगे नहीं वह। मैं बता सकता हूं कि इनसे पूछो यह बताएंगे आपको। तो जो करते हैं, उनको मिलता है। देखो आप कर्म नहीं करोगे तो आपको रोटी, सम्मान नहीं मिलेगा। कर्म करना पड़ता है। हाथ, पैर, आंख, कान, मुंह से कर्म करना पड़ता है। ऐसे आत्मा से भी कर्म करना पड़ता है। कर्म हीन नर पावत नाही। तो कर्म नहीं करोगे तो कहां से मिलेगा? नहीं मिलेगा। कर्म करोगे, ध्यान लगाओगे, भजन करोगे, अभी आपको (इसी सतसंग में) बताऊंगा। तो आप कोई सौतेले बेटे नहीं हो तो आपको भी मिलेगा। क्योंकि सब जीवात्मा उसी (प्रभु) की अंश है। सकल जीव मम उपजाया, सब पर मोर बराबर दाया। सब पर उस प्रभु की दया हो रही है।

व्यभिचारी का मुक्ति मोक्ष नहीं होता है

हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी। व्यभिचारी आदमी को मुक्ति-मोक्ष नहीं होता है। सेवक सुख नहीं मान भिखारी और व्यसनी धन नहीं, शुभ गति व्यभिचारी। व्यभिचारी को मुक्ति-मोक्ष नहीं होता है। उसको तो नरकों में जाना ही जाना होता है। जो दूसरे की स्त्री के साथ गलत काम करता है, व्यभिचारी कहलाता है। ब्रह्मचारी का मतलब क्या होता है? आप तो कहोगे बाबा ब्रह्मचारी बना रहे हैं, बच्चे पैदा न करो, अपनी औरत के पास भी न जाओ- ऐसा नहीं है। बच्चे पैदा करो, नीयत सही रहेगी तो बरकत होगी। द्वापर में एक ही परिवार के 56 करोड़ यदुवंशी, एक ही खानदान, एक ही समाज के थे। तो बच्चे पैदा करो, हम यह नहीं कहते हैं की मत करो। खिला, पहना ले जाओ तो कहते हैं दूधों नहाओ पूतो फलो। लेकिन न अगर कर पाओ, न संभाल पाओ तो हम जबरदस्ती भी नहीं कर रहे कि आप पैदा करते चले जाओ। ब्रह्मचारी का मतलब ब्रह्म में विचरण करने वाला, बह्म लोक में आने-जाने लग जाए, उसको ब्रह्मचारी कहते हैं। सतयुग में सब ब्रह्मचारी थे। ऊपर ब्रह्मांड में घूमते रहते थे। उनकी दिव्य दृष्टि खुली हुई थी। सतयुग योगी सब विज्ञानी। सब योगी विज्ञानी थे तो सतयुग लाने की करो तैयारी।

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