धर्म कर्म; बाहरी जड़ पूजा-पाठ से आगे आत्मा को लाभ मिलने के तरीके बताने वाले, उज्जैन वाले परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि नवरात्रि नौ दिनों की क्यों होती है? यह जो परमात्मा की अंश जीवात्मा सुरत के दुश्मन रजोगुण तमोगुण सतोगुण है उनको नष्ट करने के लिए क्योंकि तीनों की डोरी ऊपर बंधी है और देवता नहीं चाहते कि जीव ऊपर निकल जाए (तो पाप पुण्य के बंधन में बांधे रखते हैं)। तीन दिन में जब हल्का शरीर रहता है, ताकत में कमी आ जाती है तो मन नहीं कहता कुछ करो, सुस्त कमजोर पड़ जाता है क्योंकि यही मन सब कुछ करता है। आंख के पास बैठकर देखने, जीभ पर बैठकर स्वाद लेने, नभ्या का स्वाद, कान से सुनने का काम मन ही सब कुछ करता है तो व्रत से मन कमजोर हो जाता है।

नवरात्रि में उपवास करने वालों का मन भजन में ज्यादा लगता है

तीन दिन में तमोगुण फिर तीन दिन बाद रजो गुण खत्म होता है। फिर एकदम से कमजोर शरीर हो जाता है, चाहे रोग से ही हो फिर भगवान को याद करता है। कहा है- दीन गरीबी मांग तेरे भले की कहूं। कहा है सतगुरु से दीनता गरीबी मांगना चाहिए जिससे दुनिया की इच्छाएं खत्म हो जाए। तो सतोगुण भी खत्म होता है। जो सतसंगी नवरात्रा में उपवास करते हैं उनका मन भजन में ज्यादा लगता है। दुनियादार यदि इसी को अपना लेंगे तो वे जिनको भगवान मान लेंगे उसको याद करेंगे। तो नौ दिन में तीनों चीजें खत्म और शरीर की बाहरी इंद्रियों पर बैठ के रस लेने वाला मन हो जाता है कमजोर। सुरत को जब शब्द के साथ जोड़ते हैं तब मन उसका साथ दे देता है और इस पिंड (शरीर) से निकल करके सुरत अंड ब्रह्मांड लोक में शब्द को पकड़ करके जाने लगती है।

नवरात्रि में पूजा, हवन आदि करते हुए भी लोगों को फायदा क्यों नहीं मिल रहा है?

नवरात्र में लोग अपने-अपने तौर-तरीके, सोच के अनुसार पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ करते, फूल-पत्ती चढ़ाते हैं। नंगे पांव मंदिर जाने से कंकड़ पत्थर पैर के तलवे में लगने से हुए एक्यूप्रेशर और उपवास से पेट की तकलीफ में आराम आदि मिलता है लेकिन जो असला लाभ मिलना चाहिए, मिलता नहीं है। कारण? भटकाव में समय निकल जाता है। अगर वही समय बचा करके इस मानव मंदिर में सुख शांति को खोजा जाए तो इसी के अंदर खजाना भरा पड़ा है। सब कुछ इसी मनुष्य शरीर के अंदर ही है। अगर कोई जानकार मिले तब तो वह चीज मिल जाए नहीं तो ऐसे भटकना पड़ता है। फायदे की जगह पर कभी-कभी नुकसान भी हो जाता है। करते तो अपने हिसाब से पुण्य हैं लेकिन वही अनजान में पाप बन जाता है और तकलीफ देह हो जाता है। तो जानकार को खोजो। वस्तु कहीं खोजे कहीं, कही विधी आवे हाथ, भेदी लिजे साथ में, वस्तु अपने हाथ। वस्तु कहीं है, खोज कहीं और रहे तो वह चीजें नहीं मिलेंगी। धन, मान-प्रतिष्ठा आदि नहीं मिलती, बीमारियां जड़ से नहीं जाती। कर्मों की वजह से जो सजा, बीमारी, तकलीफ मिलती है, उनमें फायदा नहीं होता है। उसका कारण यही है कि वस्तु कहीं है और खोज कही और रहे हो।

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