लखनऊ। देश में हर साल लाखों लोगों की मौत अंगों की खराबी के कारण हो जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अगर समय पर दान किए गए अंग मिल जाएं तो ज्यादातर लोगों की जान बचाई जा सकती है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार शरीर के अंगों का दान कर सकता है। हालांकि कोरोना महामारी ने अंगदान के क्षेत्र पर भी बुरा असर डाला है, आलम यह है कि महामारी की अवधि के दौरान अंगों की विफलता के शिकार हुए लोग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करने और रोगियों की जान बचाने के लिए हर साल 13 अगस्त का दिन ‘विश्व अंगदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार, पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से दुनिया कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है। कोरोना ने दुनियाभर में अंगदान की प्रक्रिया को भी काफी हद तक प्रभावित किया है। चूंकि कोरोना संक्रमण के कारण लोग अंगदान करने और प्राप्त करने, दोनों से डर रहे हैं, ऐसे में यह सुचारू स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए बड़ी चिंता का कारण बनी हुई है। डॉक्टरों के मुताबिक, अंगदान की प्रक्रिया के बारे में लोगों में जागरूकता की कमी, कोरोना काल में चिकित्सा प्रणाली पर अविश्वास और उचित बुनियादी ढांचे की कमी के कारण अंगदान दर में भारी गिरावट आई है। इस बारे में लोगों को जागरूक कर अंगदान के लिए प्रोत्साहित करना बहुत आवश्यक है। अंग दाता-प्राप्तकर्ता के बीच बनती जा रही खाई आने वाले समय में बड़ी मुसीबत का कारण बन सकती है।

कौन कर सकता है अंगदान?
हम सबके लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि अंगदान कौन कर सकता है? भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) के मुताबिक, कोई भी स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से अंगदान के लिए नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांस्प्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) की वेबसाइट पर अपना पंजीकरण करा सकता है। 18 साल से अधिक आयु वाले लोग अंगदान के लिए रजिस्टर कर सकते हैं। किडनी, फेफड़ा, लीवर, आंख, अग्न्याशय या आंत के आंशिक हिस्से को दान किया जा सकता है।

कोरोना काल में अंगदान प्रभावित
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, दुनियाभर में पिछले डेढ़ साल से जारी कोरोना महामारी के कारण अंगदान पर खासा प्रभाव पड़ा है। कोरोना की दूसरी लहर ने शरीर के कई अंगों को प्रभावित किया है, ऐसे में दाता/प्राप्तकर्ता दोनों के मन में अंगदान को लेकर डर है। इस डर का असर उन लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है जो अंग प्रत्यारोपण की आश में बैठे हैं। कोविड की पृष्ठभूमि में प्रत्यारोपण के लिए इच्छुक/संभावित दाताओं की पहचान भी पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है।

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कोरोना काल में किडनी ट्रांसप्लांटेशन
कोरोना के दौर में अंगों के प्रत्यारोपण में आई कमी स्वास्थ्य संस्थाओं के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ट्रांसप्लांटेशन के विशेषज्ञों का कहना है कि स्वस्थ लोगों की तुलना में प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ताओं में कोविड संक्रमण का खतरा कितना अधिक हो सकता है, इस बारे में फिलहाल  विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, अध्ययन किया जा रहा है। माना जाता रहा है कि चूंकि प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ता इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं लेते हैं, ऐसे में इनमें संक्रमण का खतरा अधिक हो सकता है। इस बारे में जल्द से जल्द शोध करके गंभीरता की जांच करना आवश्यक है। फिलहाल अंगों के प्रत्यारोपण के दौरान डॉक्टरों को सभी पहलुओं पर गंभीरता से नजर रखना आवश्यक है।

रक्तदान में भी देखी जा रही है भारी कमी
राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार जिन लोगों ने टीके लगवा लिए हैं वह वैक्सीन की प्रत्येक खुराक के बाद 28 दिनों तक रक्तदान नहीं कर सकते हैं। कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन, शिक्षण संस्थान बंद होने और वर्क फ्रॉम होम के कारण ब्लड बैंक रक्त दान शिविर नहीं लगा सकते हैं। ऐसे में डोनरों की काफी कमी देखा जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक रक्तदान करने वाले ज्यादा लोग 19 से 44 की आयु वाले होते हैं, जिनके मन में कोरोना के कारण फिलहाल रक्तदान को लेकर कई तरह के डर भी हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लड बैंकों में रक्त को अनिश्चित काल तक संग्रहित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में भविष्य में आने वाली दिक्कतों से बचने के लिए रक्तदान शिविरों का संचालन कर लोगों को रक्तदान के लिए प्रोत्साहित करना होगा। कोरोना महामारी एक दिन खत्म हो जाएगी लेकिन उसके बाद ब्लड बैंकों में रक्त की कमी किसी विकट समस्या का कारण न बने, इस बारे में भी हमें सचेत रहने की जरूरत है।https://gknewslive.com

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