धर्म कर्म: सेवा करवा कर कर्मों को कटवा कर दुःख तकलीफों में आराम दिलाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जयपुर राजस्थान में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सेवा करो। लेना-देना पूरा हो जाएगा। कई तरह की सेवा होती है। लोगों को पानी पिला दो, रोटी बना कर, परोस कर खिला दो। देख लो कहीं किसी चीज की कमी है भंडारे में, आटा दाल आदि की पूर्ति कर दो। यह भी एक सेवा है। भटके हुए को रास्ता बताना भी एक सेवा है। यहां कार्यक्रम में बहुत से लोग आते हैं, जानकारी नहीं होती है तो जानकारी करा दिया। बारिश होने लगी, कोई सामान कही पड़ा हुआ है, किसी का भी हो, उसको संभाल दिया, छाया में कर दिया तो यह भी एक सेवा है। यदि सेवा करना चाहे तो सेवा बहुत तरह की है। जो भी अभी तक आपने सतसंग सुना, नए लोगों को बताते, समझाते रहो। सतसंग सुनने की दुनिया की हर तरह की जानकारी मिलती है। सतसंग सुन कर वो जानकारी प्राप्त करने की नयों की इच्छा बनी रहे, यह भी एक सेवा है। भजन ध्यान सुमिरन का जो सही तरीका आपको मालूम है तो लोगों को बताते रहो। अपना समझ कर के करो। अपने मेहमान समझ करके करोगे, हम किसी को खिला रहे हैं या नामदान समझा रहे हैं या सतसंग के बारे में बता रहे हैं या गुरु भक्ति भर रहे हैं तो यह अपनत्व होगा, अपना होगा। इसका लाभ मिलता है और उससे कर्म कटते हैं।
तन की सेवा में भी कई चीजें आती है
तन की सेवा में भी कई चीजें आती है जैसे कोई फावड़ा चला रहा, कोई गड्ढा खोद रहा, कोई टेंट लगा रहा, रोटी बना रहा, कोई गुरु महाराज के, जयगुरुदेव के बारे में लोगों को बता समझा ही रहा, कह रहा है वक्त का नाम है और वक्त के गुरु की, वक़्त के नाम की जरूरत होती है। वक्त की कीमत होती है। यह वर्णनात्मक नाम जयगुरुदेव इस समय पर जगाया हुआ नाम है। इस पर विश्वास करो। मुसीबत तकलीफ में इस नाम को बोल कर के देख लेना, बचत होगी। तो कोई यही समझा रहा है। कोई मनुष्य शरीर के बारे में बता रहा है कि किराए का मकान है। एक दिन खाली कर देना पड़ेगा। चेतन शक्ति जीवात्मा जब निकल जाएगी तो यह शरीर तो जड़ है। इसके पुर्जे-पुर्जे जड़ हैं। हाथ, पैर, आंख, कान सब जड़ है, चेतन जीवात्मा इसको चला रहा है। वह चेतन शक्ति जब निकल जाएगी तो यह मिट्टी हो जाएगा, सारा खेल खत्म हो जाएगा। सारा धन, दौलत, पुत्र, परिवार, मान-प्रतिष्ठा सब यही रखा रह जाएगा, कोई चीज काम नहीं आएगी। कोई इसी को बताने में लगा हुआ है। तो सेवा कई तरह की होती है। मन की सेवा भी है। मन भी जिनका लगा रहता है, देखो हम बुड्ढे हैं, चल-फिर नहीं सकते हैं, हमको सहारा की जरूरत है। लेकिन मन लगा हुआ है- सतसंग हो रहा होगा, पूजन गुरु का होगा, लोगों को प्रसाद मिलेगा, गुरु याद आ रहे होंगे तो उनकी भी मन की सेवा होती रहती है। तो मन से भी सेवा करते रहते हैं। नहीं कुछ होता है, नहीं पहुंच पाते है तो समझा बता करके किसी न किसी को भेजते ही रहते हैं। और यह भी कह देते हैं, आप चले जाओ, थोड़ा सा प्रसाद हमारे लिए भी ले आना। हमारे लिए भी गुरु महाराज से दया मांग लेना। तो वह भी मन लगाए रहते हैं। तो मन से समझाते हैं, उनको भेज देते हैं तो वह (कार्यक्रम में) आते हैं तो समझो यह मन की सेवा हो जाती है। धन की सेवा निकृष्ट सेवा मानी जाती है। लेकिन जो इस चीज को सोचते हैं कि हमारा धन अच्छे कामों में लगता रहे, उससे लोगों की भलाई परोपकार होती रहे, लक्ष्मी को अच्छे कामों में लगा कर के खुश कर ले, जिससे हमको खाने-पहनने की दिक्कत न हो, वह लोग धन की भी सेवा करते रहते हैं। जितने भी सन्त आए, कर्मों को काटने के लिए बराबर सेवा करवाते रहते हैं। नामदान दिलवाना आत्मा की सेवा है। जीवात्मा आशीर्वाद देती है। वो सेवा भी करो।
जब से सेवा भाव खत्म हुआ लोग दुखी हो गए
महाराज जी ने जयपुर (राजस्थान) में बताया कि इस समय पर देखो सेवा भाव खत्म होता चला जा रहा है। पहले कोई किसी के यहां पहुंच जाता, कहते देखो बगैर बुलाए मेहमान नहीं भगवान आ गए। अतिथि देवो भव:। हमारे यहां देवता आ गए। इनका स्वागत सत्कार करना चाहिए। लेकिन अब यह जो फटा पेंट पहनने वाली, अंग्रेजी का सर्टिफिकेट लेकर के कागज का टुकड़ा जिनकी कोई कीमत नहीं, यह जो बहुएं आती है, अगर समझो देर से कोई पहुंचा, खास रिश्तेदार ही क्यों न हो तो भन-भन करने लगती है। कहती है मेहमान नहीं, टेंशन आ गया है। अब फिर बनाओ, खिलाओ, बर्तन धोओ। कब सोएंगे, कब बच्चों को सुबह उठकर के नाश्ता बनाएंगे। लेकिन उस समय लोग खुश हो जाते थे। सेवा भाव जब से खत्म हुआ तब से लोग दुखी हो गए। पहले क्या था? खिलाकर लोग खाते थे, उसमें बरकत हो जाती थी। नीयत खराब हुई तो देखो बरकत खत्म हो रही है। हाय-हत्या घरों में लगी हुई है। कहते हैं आमदनी बहुत होती है, पता नहीं कहां चला जाता है। अब आप यह सोचो कारण क्या है। उसी तरह का रुपया पैसा, घर,आदमी है लेकिन ऐसा क्यों होता है।