धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जिनके पास अब कर्मों को, पापों को क्षमा करने की, काटने की, कटवाने की पॉवर है, ऐसे पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, दुखों को हरने वाले, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मनुष्य के कर्म कैसे और किससे बनते हैं। मनसा, वाचा और कर्मणा- मन में जो आदमी सोचता है कि इनका अनिष्ट कर दूंगा, मार-काट दूंगा, इनकी बहन बहू के साथ ऐसा कर डालूंगा, उसका लगता है मनसा पाप। वाचा पाप- मुंह से बोल करके, प्रोत्साहन देकर के किसी को मरवा-कटवा दिया, बोल बोलकर के किसी का दिल दुखा दिया तो वह भी पाप लगता है। और कर्मणा- शरीर से जो कर्म करता है। तो यह जितने भी कर्म है, यह प्रारब्ध के अनुसार ही आदमी करता है। उसी तरह से उसकी आदत बन जाती है। इसीलिए यह भी कहा गया है आदमी का स्वभाव जल्दी नहीं छूटता है। जब बहुत सतसंग सुनता है तब स्वभाव में परिवर्तन आता है। इसीलिए कहा गया है बराबर सतसंग सुनते रहना चाहिए। क्रियामान कर्म किसको कहते हैं, इस शरीर से ज्यादा कर्म बनते हैं। इस शरीर में कर्म इंद्रियां है- आंख, कान, मुंह, नभ्या आदि इंद्रियां है। हाथ-पैर भी इसी शरीर के अंग है तो इससे भी कर्म बनते हैं। और वह कर्म कुछ जान में, कुछ अनजान में बन जाते हैं। अनजान में बने कर्म भी असर करते हैं। जान में बने कर्मों की माफी जल्दी नहीं होती है। तो इससे कर्म बनते हैं और उसकी सजा आदमी को भोगनी पड़ती है, वह जल्दी कटती नहीं है।

जो जानकर गलती करता है उसे सख्त सजा मिलती है

जो जानकर के गलती करता है,उसे सख्त सजा मिलती है। इसीलिए कभी भी किसी भी पशु-पक्षी का, जमीन पर चलने वाले जानवर, आसमान में उड़ने वाले पक्षी, जल में रहने वाले जीवों के मांस को मत खाना। अंडा मत खाना। ऐसे किसी भी नशे का चाहे, शराब, अफीम हो या तमाम नशे की गोलियां चल गई है, जो बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है, ऐसे बुद्धि नाशक नशे का सेवन मत करना नहीं तो आपको ज्यादा सजा मिलेगी। जो अनजान होता है, उसको माफी भी मिल जाती है। जैसे यह जानवर है, जानवर अगर किसी को मार दे तो उनकी बुद्धि ही नहीं है, उनका तो स्वभाव ऐसा है तो उनको तो वह पाप नहीं लगता है जो पाप जानकार, इंसान को लगता है। अनजान जो होते हैं, गलती कर बैठ देते हैं, उनकी सजा की तो माफी हो जाती है लेकिन जानकार के जो गलती करते हैं, उनकी सजा की माफी नहीं होती है। मैंने देखा सतसंगी गलती करके आया और गुरु महाराज से कहा, गुरु महाराज मुंह फेर लिये। जानकर के ऐसी गलती करते हो, क्या मतलब है। और अनजान आया, बोला महाराज मुझसे गलती बन गई, मैं जानता नहीं था, मैं तो पहली बार आपके आया, मेरे ऊपर अब दया, कृपा, मेहरबानी कर दो, बोले दोबारा मत करना, माफी हो गई। तो अनजान की माफी हो जाती है, जानकार की माफी नहीं होती है। इसलिए जान करके ऐसी कोई गलती मत करना कि जिसकी सजा शरीर, जीवात्मा को भी मिल जाए, ऐसा कोई काम आप मत करना।

पाप कर्म कैसे कटते हैं?

गृहस्थ आश्रम में कुछ अनजान में भी पाप बन जाते हैं। किसी जीव को न मारो लेकिन पैदल जा रहे हो, चींटी मर गई, घर में लिपाई हो रही है, कीड़े-मकोड़े लिपाई में मर गए, लकड़ी में कीड़े हो, नहीं देख पाए हो, चूल्हे में जल गए हो आदि तो पाप तो लगा। तो वह पाप, आप किसी भूखे को रोटी खिला दो, प्यासे को पानी पिला दो, कोई दुखी है उसके दु:ख को दूर कर दो, उससे यह पाप क्षमा हो जाता है। तो यह भी बताया गया कि छोटे-मोटे कर्मों को आप इससे काट लो। बड़े कर्म, जो पूर्व जन्मों के हैं या जब तक सतगुरु के पास नहीं पहुंचे और आपके शरीर से बन गए, उन कर्मों को सेवा करके, लोगों को समझा-बता करके, नामदान दिला करके, भजन करा करके, उन कर्मों को काट लो।

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