धर्म कर्म: पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मन तनिक देर में फिसल जाता है। जैसे चिकने घड़े के ऊपर पानी की बूंद डाल दिया जाए तो कब वह नीचे गिर जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसी तरह से यह मन फिसल जाता है। तो बराबर इसकी निरख-परख करते रहना चाहिए। अब मन क्यों फिसलता है? क्यों गंदा होता है? क्यों भाव खराब होते हैं? खान-पान के असर से होते हैं। इसीलिए शाकाहारी शुद्ध भोजन खाना चाहिए। मेहनत-ईमानदारी की कमाई का अन्न खाने से मन स्थिर रहता है। मन चंचल, भगता नहीं है। मन कामी, क्रोधी, लोभी, लालची नहीं बनता है। मन पर कंट्रोल रहता है। यह मन गुरु पर विश्वास कर लेता है। नहीं तो चंचल मन गुरु पर भी विश्वास नहीं करता है, गुरु को भी उतना नहीं मानने देता है। इसलिए मन को साफ, कंट्रोल में रखने के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए, अपनी मेहनत की कमाई का अन्न खाना चाहिए, दूसरे को ठगना नहीं चाहिए। खुद ठगा जाओ तो कोई बात नहीं, आप ठगे सुख होत है, और ठगे दु:ख होय। आप दूसरों को ठगोगे तो दु:ख पैदा होगा, कर्मों की सजा मिल जाएगी, कर्म खराब हो जाएंगे। और अगर आप ठग गए तो सुख होता है। जैसे चोर रुपया पैसा ले गया या आपका कहीं गिर गया तो उस समय मन खुश होता है, अगर जानकार समझदार है की भाई चलो आराम से चला गया। हमारे प्रारब्ध का, भाग्य का नहीं था। हम भी कहीं से ले आए होंगे। यह चला गया आराम से तो जाने दो। और नहीं तो कोई चाकू, गोली, लठमार के ले जाता तो जाता तो जाता ही और मार अलग लगाती। तो उससे बच गए तो चला जाने दो। तो मन यह संतोष कर लेता है। इधर-उधर से आ गया, मान लो बाप-दादा ही कहीं से लाकर रख गए, वही चला गया तो संतुष्ट रहना चाहिए। जाहि विधि राखे गुरु, वाहि विधि रहिए। गुरु को जब हाथ पकड़ा लेते हैं, गुरु के बताए हुए रास्ते पर चलते हैं, गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:, गुरु को ही सब कुछ मान लेते हैं तब गुरु जरूरत की चीजों को जाने भी नहीं देते हैं। अपने बच्चे की तरह से मानते हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपना ही बच्चा समझते हैं। तो खाने की चीज को जाने भी नहीं देते हैं। वह खुद आकर रखवाली करते हैं। आदमी को ताज्जुब होता है कि जल्दबाजी में ताला नहीं बंद कर पाए और (चोर) ताला खोल करके चले गए (फिर भी) एक पैसे का नुकसान नहीं हुआ। गुरु के प्रति प्रेम बढ़ने पर माया धीरे-धीरे खिसक जाती है लेकिन जरुरत की चीज रहती है। दुनिया वालों को दुसरे-तीसरे दिन (खाने को) मिलता है तो भगत को रोज मिलता है। संतुष्टि रहेगी।
साधना में मनचाही चीज दिखाई देती है
ध्यान लगाओगे तब पता चलेगा। (यहां सतसंग में) ज्यादा ऊपर (उपरी दिव्य रचना) का भेद खोलना ठीक नहीं रहता है। इसलिए आप करो और देखो, ऊपर जाओ। क्या दिखाई पड़ता है? चबूतरे, मोती से जड़े हुए महल दिखाई पड़ते हैं जिसमें कोई भी हैलोजन ट्यूबलाइट नहीं रहती है लेकिन जर्रे-जर्रे में रोशनी रहती है। ऊँचे-ऊँचे पहाड़, ऊँचे-ऊँचे पेड़, वो रूहों के जिसमें फल लगे दिखाई पड़ते हैं, सीन-सीनरी बदलती रहती है। टीवी में तो रिमोट का बटन दबाना पड़ता है तब चैनल चेंज होता है और वहां अपने आप चैनल चेंज होता रहता है। जिस चीज की इच्छा करो, वह चीज सामने दिखती है। चाहे राम को देखो, चाहे कृष्ण को, चाहे कबीर साहब, गुरु नानक साहब का दर्शन करो। सब तो मिलते हैं। और जिस रूप में उनका चाहोगे, उस रूप में मिलेंगे। कपड़ा ऐसा पहना हुआ चाहोगे, उस रूप में मिलेंगे। आप रूह को देखना चाहो तो रुह के रूप में मिलेंगे। तो करो तो खाओ नहीं तो भूखे रहो। अरे! जब (बताई गई साधना) करोगे तो दिखाई पड़ेगा। करोगे तो, कर्म प्रधान विश्व रची राखा, जो जस किन्ही सो तस फल चाखा। करोगे तो फल चखोगे। करोगे तो मिठास, वो आनंद, खुशबू मिलेगी। करोगे नहीं मुफ्त में चाहोगे तो कैसे मिलेगा। अजगर करे न चाकरी, यह मत सोचो कि अजगर चाकरी नहीं करता है। अजगर भी अपना काम करता है। अजगर भी शिकार खोजता है। सबको वह देता है, सब व्यवस्था तो वह बनता है लेकिन कर्म करना पड़ता है। आपको दे दिया, दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। न कुछ करो थाली परोस करके आ गई लेकिन हाथ से उठा करके तो मुंह में डालना पड़ता है। और कोई मान लो उसके हाथ से भी उठाकर आपके मुंह में डाल दे तो दांत से दबाना पडेगा, जीभ को हिलाना, निगलना तो पड़ेगा। तो कुछ न कुछ करना पड़ेगा।
हमारे यहां एक मानव जाति है
आपको मांस मछली अंडा नहीं खाना है। ये बहुत ही गंदी चीज है। शराब नहीं पीना है। शराब जैसे तेज नशे का सेवन नहीं करना है। जिससे मां बहन बहू बेटी की पहचान खत्म हो जाए, आदमी होश में न रह जाए। जमीन-जायदाद कोई लिखा ले, जेब में से मोबाइल, पर्स निकाल ले, रुपया-पैसा लेकर चला जाए, आप होश में न रहो मदहोशी में अपराध कर बैठो, लड़के, बाप, पत्नी, पति को मार दो नशे में, ऐसे नशे का सेवन नहीं करना है। बाकी आपको आजादी है। आपका जाति-धर्म कुछ नहीं छुडा रहा हूं। हमारे यहां तो सब एक मानव जाति है। बैठो, आपको नामदान दे देता हूँ।