धर्म कर्म: दिशाशूल समेत तमाम बाधाओं को अपने भक्तों के मार्ग से हटाने वाले, रात को जिनसे भाव, विश्वास के साथ प्रार्थना करके सोओ तो सुबह अपनी दया का अनुभव करा देने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि रात को जिनको दूर जाना हो, आप मत जाना। रात की यात्रा बहुत अच्छी नहीं होती है। और अगर अपनी गाड़ी से जाना ही पड़े तो रात 10-10:30 तक, हद से हद 11 बजे तक चलना चाहिए। सुबह 4 के बाद फिर चलना चाहिए। यह जो बीच का रात 12 से 2 का समय है या उसके आगे-पीछे एक-आधे घंटे का समय अच्छा नहीं रहता है। रात की यात्रा अच्छी नहीं होती है। आप यहां (सतसंग स्थल) पर रुक जाना और सुबह से अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार यहां से निकलना शुरू कर देना।

समर्थ गुरु बाधाओं को हटा देते हैं

कौन सी दिशा में कब नहीं जाना चाहिए: शनि सोम पूरब न चालू, मंगल बुध उतर दिश कालू, शुक्र रवि पश्चिम न चालू, बृहस्पति दक्षिण करें पयाना, उसको समझो घर फिर न वापस आना। कहते हैं इस दिन इस दिशा में दिशाशूल होता है। अपने लोग तो जयगुरुदेव बोल करके चल देते हैं तो ये सब दिशाशूल वगैरह काम नहीं करता है (क्योंकि) गुरु समर्थ होते हैं तो बाधाओं को हटा देते हैं। गुरु को हमेशा मस्तक पर सवार रखना। गुरु माथे पर रखिए, चलिए आज्ञा माहि, कह कबीर ता दास का, तीन लोक भय नाही। उसके लिए तीन लोक में भय नहीं होता है, जो गुरु को मस्तक पर सवार रखता है। तो अपने लोग तो गुरु को मस्तक पर सवार रखते हैं। लेकिन पहले के समय में लोग कहते थे इस दिन इस दिशा में नहीं जाना चाहिए। लेकिन अगर जाना ही पड़े तो उसका काट होता था। रवि को पान, सोम को दर्पण, अगर रविवार को पश्चिम दिशा में जाना है पान, कहते हैं शुभ होता है, खाकर जाओ। सोमवार को शीशा देखकर, मंगल को गुड़ करिए अर्पण, यानी मंगलवार को उत्तर जाना हो तो गुड़ खाकर चले जाओ तो दोष मिट जाता है। और बुध को धनिया बीफे जीर, बुधवार को धनिया खाकर उत्तर, गुरुवार को जीरा खाकर दक्षिण और शुक्र कहे मोह दही बिन पीर यानी शुक्रवार दही खाकर और कहै शनिचर अदरख पाऊं, सुख संपत्ति घर ले वापस आऊं यानी शनिवार को अदरक खाकर जाओ तो दोष खत्म हो जाता है।

बिना अलार्म के सुबह जल्दी कैसे उठे

यह नियम बना दिया गया है कि सुबह-शाम एक घंटा कम से कम, नहीं तो डेढ़ घंटा-दो घंटा तो सब (साधना पर) बैठते ही हैं। तो समझो विदेशों में जहां लोगों की बहुत व्यस्तता रहती है, कम समय के लिए उनको कहा गया है कि कम से कम बैठने की आदत तो बने। यहां भारत में तो डेढ़ घंटा कम से कम, दो घंटा सभी आश्रमों पर, सुबह-शाम जो भी लोग रहते हैं, बैठने की आदत डाली गई है और कहा गया है कि ध्यान भजन सुमिरन रोज करना रहेगा। सब जगह होता है। तो मन अपने आप चल पड़ता है, उठ कर के देखो, रात को आपको सोना है तो सो जाओ, देर से भी सोओगे, कहोगे ऐ मेरे मन, तू मुझे सुबह 4 बजे उठा देना, ऐ मेरे गुरु महाराज, दया कर देना, सुबह 4 बजे मुझे उठा देना तो सुबह 4 बजे आंख खुल जाएगी। बहुत नींद में होगे तो सो भले ही जाओ लेकिन 4 बजे का कह दोगे तो 4 बजे आंख खुलेगी। ऐसे ही नियम जब बन जाता है तो मन लग जाता है।

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