धर्म-कर्म: विभिन्न तरीकों से अपने अपनाए जीवों के कर्म कर्जों, लेने-देने को आराम से, हलके में ही अदा करवा कर जीवात्मा की मुक्ति मोक्ष का रास्ता प्रशस्त करने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि खानपान सही रखो। खानपान में जब गड़बड़ी हो जाती है तब यह मन वही काम कराता है, खाने का, सोने का, घूमने का और शरीर के अंगों से अन्य काम करने का, जिससे पाप बनते हैं, विकार आते हैं, अंदर की आंख पर मैल जमा होती है। अब गंदी (शराब, मांस आदि) चीज अंदर न जाने पावे। और कोई भी चीज खाओ-पियो तो सोच समझ करके कि कैसा है, क्या है। इसका असर मन के ऊपर कैसा पड़ेगा। आप खुद देख लो। तीन-चार घंटा बैठ कर के भजन करो तो बहुत बढ़िया मन रहेगा। क्योंकि मन उधर लग गया। आपने इधर (दुनिया) से हटाया और उधर अपने घर, प्रभु की तरफ लग गया, जहां आपको शरीर छोड़ कर के जाना है, जहां जाने का लक्ष्य आपको बनाना है कि शरीर जब छूटेगा तो हम वहां जाएंगे। उधर जब मन लगता है तो बहुत बढ़िया, शुद्ध रहता है, लेकिन जब कोई चीज पेट में पड़ जाती है तो उसी तरह का मन हो जाता है। कहा गया है- जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन, जैसा पियो पानी, वैसी होवे बानी।
मन किसके कब्जे में आया ?
मन की दौड बहुत दूर तक जैसी लहर समुद्र की तैसी मन की दौड़। जैसे समुद्र के लहर बराबर चलती है और समुद्र कहां तक है किसी को कुछ पता है? दुनिया में समझ लो एक तरह से एक चौथाई हिस्सा धरती है, बाकी तो सब पानी ही पानी है समुद्र ही समुद्र है तो जहां तक लहर जाती है समुद्र की वहां तक मन की दौड़ है। अगर मन रुका तो किसके रोकने से रुका जो साधना में पूरे हो गए, जो सन्त गति को पा गए, मन उन्हीं के कब्जे में आया, उन्हीं के रोकने में रुका और नहीं तो साधारण आदमी की कोई औकात नहीं है कि मन के ऊपर काबू पा ले।
धन की सेवा क्यों करवाई जाती है?
बहुत सा अपराध धन से बन जाता है। बहुत से कर्म धन को सही जगह पर लगाते हुए भी न जानकारी में गलत जगह लग जाता है। उसका कर्म आ जाता है तो उसको धन की सेवा करवा करके कटवा देते हैं। भुखे दुखे को खिलवावें, सन्त न भूखा तेरे धन का, उनके तो धन है नाम रतन का, जो हम आप कुछ देते रहे गुरु महाराज को, वो किसके लिए उन्होंने किया, हमारे-आप के लिए किया। जो कुछ भी किया आने वाली पीढ़ी के लिए किया। उसको उन्होंने अच्छे कामों में लगाया। आपका जो लेना-देना था, एक-दूसरे का कर्जा था, वो अदा करा दिया। अगर धन का मालिक किसी को बना दिया जाए और कहा जाए तुम इसको खर्च करो तो उसकी बुद्धि उसका दिमाग जैसा रहेगा, वैसा ही तो खर्चा करेगा। अब लेना-देना अदा करने को हुआ तो कोई तो मान-सम्मान के लिए उसको खर्च कर देगा, कोई अपना धन बचाए रखने के लिए खर्च कर देगा और कोई परमार्थ बनाने के लिए खर्च करेगा तो जहां भी जैसे खर्चा होगा वो जो जायेगा, उसमें समझो कि लेना-देना अदा हो जाए। तो गुरु महाराज को जो भी हमने-आपने दिया, उन्होंने उसे कहां-कहां पहुंचवा दिया, अभी आपको नहीं मालूम है। ऐसे ही धन को अच्छे जगह पर खर्च करा करके, लगवा करके कर्मों को कटवा देते हैं। और शरीर से जो बुरे कर्म बन गए, उसको शरीर से सेवा करा करके, धुलवा करके खत्म करा देते हैं। और जीवात्मा के ऊपर जो मैल लग गई, जो गंदगी आ गई, वह जीवात्मा की गंदगी को साफ कराते हैं। तो वो कैसे साफ होती है? वो शब्द के पकड़ने में साफ होती है। जो हम-आप नाम जपते हैं, नामदान जिनको मिल गया है, नये लोगों को दिया जायेगा, इस नाम की कमाई से, सुमिरन, ध्यान, भजन करने से जीवात्मा के ऊपर लगे हुआ जो कर्म है वह धुलता, खत्म होता है तो ये जीवात्मा जब साफ होती है, तब यह शब्द को पकड़ पाती है। और नहीं तो शब्द को यह नहीं पकड़ पाती है बहुत बाधाएं आती हैं।